Wednesday, December 29, 2021

अंधेरे उजाले और आदमी

.                   ।🍀।

रौशनी में खड़ा हो तो काले लिबास में भी आदमी साफ़-साफ़ दिखाई देता है।अंधेरे में हो तो सफे़द  साफ़ आदमी भी धूमिल या शायद ही दिखाई पड़ता है।

                     यह                             नेता और जनता के बीच की बात है।

                    🌓
         #उचितवक्ताडेस्क।

               गंगेश गुंजन


Monday, December 27, 2021

ठंढ और बरसात : तीन स्वतंत्र दो-पँतियाँ

🌧️       ठंढ और बरसात !

      दुःख देता है ये ठंढा मौसम
      पेड़ों को भी
      खड़े रहते हैं कि कोमल परिन्दे
      कहाँ जाएँगे।

      इक झीनी चादर में लावारिस
      औ शीतलहर
      रात भर रोये शजर आँसू टपके
      हैं पत्तों से।

      ग़म की बरसातें छातों से नहीं
      गुज़रती हैं
      और सबके पास होता है
      मुकम्मल घर कहाँ !

                २८दिसंबर,'२१.
               #उचितवक्ताडेस्क।

                    गंगेश गुंजन

वक़्त क़ब्रिस्तान है

 🌓      यह वक़्त क़ब्रिस्तान है।

     यह समय एक क़ब्रिस्तान है। हम
     सब इसी की क़ब्र में हैं। एक क़ब्र
     में मैं भी हूँ। और इस कोरोना काल मे         जो बाहर हैं वे महज़ क़ब्र के अगल-           बगल पनप गई दूब,खर-पतवार        

     वनस्पति जैसे हैं।

           #उचितवक्ताडेस्क।

                गंगेश गुंजन

Saturday, December 25, 2021

सुलूके खुरदुरापन आ गया है : ग़ज़ल नुमा

                    |🌵|
    सुलूके खुरदुरापन आ गया है
    बे ज़रूरी नयापन आ गया है।

    यों तो रहता है वो पटना में
    कहाँ से ये गयापन आ गया है।

    सिला वो दोस्ती में चाहता है
    य' कैसा परायापन आ गया है।

   अभी पिछले दिनों तक थी नहीं जो
    सियासी बेहयापन आ गया है।

    हो गये दूर जितने थे क़रीब अब
    इक अनाम अपनापन आ गया है।

    हो गई मुँह बोली क्या उनमें
    राब्ते में नयापन आ गया है।

    ख़ौफ़ के मंज़र से उबरे गुंजन
    ज़ुबांँ में इक खरापन आ गया है।
              ०९.१२.'२१.

              गंगेश गुंजन,

         #उचितवक्ताडेस्क।




Thursday, December 16, 2021

गंगा यमुना और राजनीति

गंगा-यमुना को पवित्र करने से पहले तो दलीय राजनीति का शुद्धिकरण ज़रूरी है।
जनता का योगदान अनुवर्ती पहल है।
                         ⚡
       #उचितवक्ताडेस्क। गंगेश गुंजन

Sunday, December 12, 2021

रोज़ मेरे घर के आगे से गुज़रता है। ग़ज़ल

                     🔥|
    रोज़ मेरे घर के आगे से गुज़रता
    है
    बच के हसरत की नज़र से इधर
    तकता है।

    ख़त्म है सब कुछ जहांँ वीरानगी
    हर ओर
    बिया बाँ को या ख़ुदा गुलज़ार
    कहता है।

    लोग कुछ कहते हैं कैसा वक़्त है
    और क्या
    एक कवि क्या सोचता क्या
    लिखा करता है।

    सियासत पे तो नहीं ही अपनों
    पर भी अब
    भरोसा रख कर कोई शायद ही
    चलता है।

    चैन से कुछ चुस्कियाँ लेते घरों में
    लोग
    सुकूँ से फ़िक्रे अवामी ज़िक्र
    चलता है।

    तस्करा बेहाल लोगों पर तो कम
    ही अब
    संसदों में मज़हबी तक़रार
    चलता है।

    ड्राइंग रूमों में तो बेशक़ गर्म हैं
    चर्चे
    रहवरों से कौन सड़कों पर
    उतरता है।

    कह रहा था कोई बाँधे पाँव में
    चक्के
    वो शहर दर शहर में बेज़ार
    फिरता है।

    ग़म नहीं गुंजन न घबराना कि
    ऐसा दौर
    मेरा गौआंँ शिवजिया तक सब
    समझता है।
                       *
    गंगेश गुंजन,१३.१२.'२१.

Friday, December 10, 2021

हम तो रहते जाएँगे हम प्यार... ग़ज़लनुमा

                    🌍

    हम तो रहते जायेंगे वो प्यार के
    बन्दे नहीं हैं
    जो बदल जाते हैं दु:ख में हम तो
    वो रस्ते नहीं हैं।

    एक बस्ती है मचलता मन इसे
    समझो न तन्हा
    साथ में देखो मेरे हमराह के मेले
    यहीं हैं।

    काफ़िले के ख़ून से सींचोगे
    कबतक ये मरुस्थल
    गाँव भर पनपे हैं बिरवे जो
    अकेले ही नहीं हैं।

    तुमने चिड़िया घर बसा के कर
    लिया हो जो कमाल
    हम तो हैं इनसान पिंजड़े में 
    कभी पलते नहीं हैं।

    रात की औक़ात पौ फटने से
    पहले तलक ही है
    और हम सूरज उगे तो शाम तक
    ढलते नहीं हैं।
                      *
                गंगेश गुंजन
[अपनी यह एक बहुत पुरानीरचना]

Monday, December 6, 2021

हुनर जो कहीं निभाना होता : ग़ज़ल नुमा

                    । |🌈|।
       हुनर जो भूलना कहीं होता। 

       भूलना निभाना नहीं होता।

      ख़ुशी का होता होगा गाना
      बिना दु:ख गाना नहीं होता।

      अग़र्चे सियासत में है तो हो
      दोस्ती में बहाना नहीं होता।

      वक़्त बदरंग लोग बेदिल हैं
      कहीं वो तराना नहीं होता।

      अगर बस्ती में ही मस्ती नहीं तो
      फ़िज़ा कुछ सुहाना नहीं होता।

      हरेक ग़म की है ज़ात अपनी
      कोई ग़म अजाना नहीं होता।

      साथ आओ हम मिलकर चीन्हें।
      एक गुंजन सयाना नहीं होता।
                        *
                 गंगेश गुंजन

           #उचितवक्ताडेस्क।

Thursday, December 2, 2021

...सराय में ठहरे हो उसूल भी समझो

                    |🛖|
     गाने में आकर सुख-दुख दोनों
     समान हैं।
     मन्दिर में जो भजन मस्जिदों में
     अजान हैं।
     जिस सराय में ठहरे हो उसूल
     भी समझो।
     शबो रोज़ इस क़िस्से में हम
     मेहमान हैं।
                       |⛺|
              #उचितवक्ताडेस्क।

                    गंगेश गुंजन

Tuesday, November 30, 2021

......रो रो कर के जीना भी क्या जीना है

                    ।🔥।
      क़िस्मत क़िस्मत रो-रो कर के
      जीना भी क्या जीना है।
      ज़हर को आशीर्वाद समझ कर
      पीना भी क्या पीना है।

      जो कहते हैं पूर्व जन्म के कर्मों
      का फल भोगते तुम
      दोस्त समझ लो उन्होंने ही सब
      कुछ तुम से छीना है।

      उसके सुनहरे जाल को समझो
      मन्दिर-मस्जिद-गिरजाघर
      इनके धर्म अंधेरे में अब बहुत
      सम्भल के चलना है।

      उनकी ताक़त काली दौलत की
      है और सियासत भर
     अपने पास नेमते क़ुदरत हिम्मत
      लाल पसीना है।

      मौसम की रंगीन मिज़ाजी कुछ
      दीवारों की है रखैल
      उसे मुक्त करने का गुंजन ये ही
      सही महीना है।
                       |🏡|
                   गंगेश गुंजन

              #उचितवक्ताडेस्क।

लिखूँ उसको प्यार...

                      ।🌸।
         चाहता था कि लिखूँ उसको
         प्यार।
         क़लम ने क्यूंँ लिख डाला
         आभार !
                  #उचितवक्ताडेस्क।

                    गंगेश गुंजन

Friday, November 26, 2021

यह समय !

                        🌘
        अन्धे का लंगड़े पर मज़ाक़
         उड़ाने का समय है यह।
                       💤
                    #उचितवक्ताडेस्क।

                            गंगेश गुंजन

Tuesday, November 23, 2021

जीत के जश्न में शहर कहना : ग़ज़ल नुमा

  ⚡।          ग़ज़लनुमा           ।⚡
                       *
      जो भी कहना मुख़्तसर कहना
      बात पूरी उसे मगर कहना।

      सुन सके तो सुना ही देना
     और तो मुन्सिफ़ का डर कहना।

      लोग ज़्यादा तर हैं ख़ौफ़ज़दा
      फ़िक्रे जम्हूरीयत क़हर कहना।

      एक बार और धनिक जीत गया
     शिकस्ता सच की ख़बर कहना।

     हार बैठा अवाम गाँवों में
     जीत के जश्न में शहर कहना।
                      *
           #उचितवक्ताडेस्क।

               गंगेश गुंजन

Monday, November 22, 2021

ग़ज़लनुमा। :

                  🏘️|🏡

    सब हुनका अधिकारे छनि कि तंँ
    पैघ लोक छथि।
    किच्छु करथि खैमस्ती मे कि तँ
    पैघ लोक छथि।

    अपना मनक राजा छथि ओ
    स'ब प्रजा छनि।
    प्रजातंत्र अनुरागी कि तँ पैघ
    लोक छथि।

    कुरहड़िए सँ नाथथि महिंस
    हुनकर इच्छा
    की मजाल क्यो टोकनि कि तँ
    पैघ लोक छथि।

    सऽब छजै छनि किछु कऽ
    गुजरथि आ कउखन
    दुपहर मे टहलथि प्राती कि तँ
    पैघ लोक छथि।

    बलधकेल बेसी व्यवहार करथि
    धुर्झार
    स्वजनहुंँ कें दुतकारथि कि तंँ पैघ
    लोक छथि।

    क'रब धरब सब टा अपने मोनक
    मालिक
    स्वामी सर्वज्ञानी छथि कि तँ पैघ
    लोक छथि।

    एकहि गाम एक समाज मे रहथि
    एकढ़वा
    कत्तहु आना जाना नहिं कि तंँ
    पैघ लोक छथि।

    मिला जुला संसदीय क्षेत्रक
    बड़का नेता
    राजाक निर्माता छनि कि तँ
    पैघ लोक छथि।

    जेहन प्रयोजन दलक प्रबन्धन
    गुण कुशल
    जाति युद्ध सँ दंगा धरि कि तँ
    पैघ लोक छथि।
                     | 🌸|
              #उचितवक्ताडेस्क।

Saturday, November 20, 2021

अभी कुछ रोज़ रह जाते गुंजन : ग़ज़लनुमा

                     🌄
      हवा है आग और  पानी है
      रौशनी मिट्टी ज़िन्दगानी है।

      इश्क़ भर क़ुदरत की दौलत जो
      सभी के हक़ की कहानी है।

      सफ़र की दास्ताँ तो ख़ूब रही
      बिना इबारत मुंँहज़ुबानी है।

      वो जो कह कर गया है उसको
      बात वो मुझसे क्या बतानी है।

      एक-एक  कर के सभी दूर हुए
      य' तनहाई अलग  निभानी  है।

      लगे उसको क्या कह देने में 
      ज़िन्दगी तो  आनी-जानी है।

      आ गये फिर उसकी बातों में
      सियासत में, यह नादानी  है।

      अभी कुछ रोज़ रह जाते गुंजन
      बात तो अस्ल अब  बतानी है।
                      !🌼!

                  गंगेश गुंजन
              #उचितवक्ताडेस्क।

Friday, November 19, 2021

आऊँगा तो ज़रूर

                        🌄

आऊंँगा तो ज़रूर तनिक देर हो मुमकिन

बाज़ार भी है दूर और सवारी दुश्वार ।

                  गंगेश गुंजन

              #उचितवक्ताडेस्क।


Monday, November 15, 2021

इरादा और भूलना

              सुबह इरादा है
            शाम भूल जाना !

           #उचितवक्ताडेस्क।

                 गंगेश गुंजन

Saturday, November 13, 2021

ग़ज़ल नुमा

|•|              ग़ज़ल नुमा              |•|
    मर्म समझाता कोई अब
    तालिबानी का।
    बेरुखी का या कि उस पर
    मेह्रबानी का।

    सच नहीं गर है तो बतलायें भी वे
    मुल्क
    रह चुके किरदार जो इसकी
    कहानी का।

    कौन होगा दौरे बदहाली में
    ज़िम्मेदार
    लिख रहा है कौन क़िस्सा
    बदगुमानी का।

    लग रही है स्याह दिल ये
    ज़्यादातर दुनिया
    और क़ाबिज़ इरादा ज़िल्ले
    सुब्हानी का।

    या ख़ुदा किस दौरे दहशत में
    जिये हैं हम
    तेरी साज़िश है कि ड्रामा
    हुक़्मरानी का।
                   🌓
             गंगेश गुंजन

         #उचितवक्ताडेस्क।

Friday, November 12, 2021

प्रेम लेकर चल पड़ता है

लेकर बैठ जाए वह नहीं।लेकर चल पड़ने वाला प्रेम होता है।
                      🌍🌿🌿
                #उचितवक्ताडेस्क।

                     गंगेश गुंजन

Wednesday, November 10, 2021

ग़ज़ल नुमा

🛖|
     दु:ख आया अतिथि जैसा
     लौट जाएगा तुरत वो
     मगर जो आया तो आ के
     मुझी में बस ही गया।
    
     कांँच और पत्थर की यारी में
     सियासत मस्त है।
     घालमेल से इसने अपने सब
     कुछ ज़हर किया।

     बिना इश्क़ के उम्र गुज़ारी
     नज़्म न एक लिखी
     जाने वो कमबख़्त जिया भी तो
     क्या खा कर जिया।

     इतना जल उतरा गंगा से
     यमुना का कहांँ गया
     वे जानें वे मैंने तो इक गागर ही
     भर लिया।
     
     उनने-उननेे ग़ज़ल को अपना
     कोई हुनर सौंपा
     गुंजन ने एक उम्र,ज़ेह्न और
     अपना जिगर दिया। 
                   *
                        गंगेश गुंजन                
                    #उचितवक्ताडेस्क। 

                        ३०दिसंबर,२०१५.

Monday, November 8, 2021

...बहुत घुंँटता है दम इस बज़्म में अब।


  बहुत घुंँटता है दम इस बज़्म में अब। 

  कहांँ जायें हम उठ के यहाँ से अब।

                       💤

                  गंगेश गुंजन
             #उचितवक्ताडेस्क।

Sunday, November 7, 2021

अंधेरे की ख़ुशफ़हमी !


थक कर सूरज रोज़ रात को सो जाता है।
अंधियारे को भ्रम है उससे डर जाता है।
                       !🌘!
             #उचितवक्ताडेस्क।
                   गंगेश गुंजन

Thursday, November 4, 2021

...अन्धे समय के हम गवाह

         रौशनी है आँख में पर   

         दिख रहा है कुछ नहीं।

         आह किसअंधे समय के 

         हो रहे हैं हम गवाह।

                  ।🌘।
         #उचितवक्ताडेस्क।

              गंगेश गुंजन

Saturday, October 30, 2021

ग़ज़ल नुमा

                      ||🔥||
      मुत्मइन वो भी न था मैं भी नहीं
      था प्यार में।
      बाख़ुदा हर हाल थे बेहाल इस
      संसार में।

      रोज़ कुछ बदले यहाँ ज़्यादा
      मगर सो टूट कर
      बाज़ शोहदे सरीखे कुछ घुसे थे
      सरकार में।

      सियासत थी या कि डमरू पर
      थिरकते लोग थे
      एक से एक भाल-बन्दर मदारी
      दरबार में।

      भूख थी लोगों में कब से ज़ेह्न
      में आज़ादीअत
      हर तरफ बेख़ौफ़ ग़ुंडे माहौले
      ख़ूंँख़्वार में।

      नग्न काँधों में सभा कौरव की
      द्रौपदियांँ खड़ीं
      तीर ना तलवार कोई गदा थी
      प्रतिकार में।

      ख़ून का दरिया बहाया चाहने में
      राजनीति
      इधर निर्मल बह रही गंगा भी
      थी हरद्वार में ।

      लोक कल्याणों के क़िस्सों से
      पटी थी सरज़मीं
      और मचती जश्ने शाही रोज़ हर
      अख़बार में।

      आख़िरत वो भी ख़ुदा को दे
      रहा था कुछ सदा
      एक क़श्ती पार पाने फँसी थी
      मँझधार में।              
               #उचितवक्ताडेस्क।           

                    गंगेश गुंजन

                सात अक्तूबर,२०२१.

Wednesday, October 27, 2021

दो पँतिया

ख़ौफ़ के मंज़र में मत डर जाइए इतने भी आप।
वक़्त आगे और है दुश्वार होगा सामना।
                       |🔥|
              #उचितवक्ताडेस्क।

            गंगेश गुंजन, २४.१०.'२१

Tuesday, October 26, 2021

कुछ दुःख ने दिखाया है...

 |              🌓           |

      कुछ दुःख ने
      दिखाया है कुछ
      सुख ने सिखाया है।

       जब वक़्त
       मिला हमको जी भर
       इन्हें गाया है।

      शिकवों से सताया
      तो जुमलों से
      हँसाया है।

      बेकार के झगड़ों में
      खुशियों को
      गँवाया है।

      समझे हैं अब
      य' बातें
      अब जा के
      बुझाया है।

      क़िस्मत तो
      मिरी देखें,नींन्दों ने 
      सताया है।
              .
      गंगेश गुंजन,२४.१०.'२१.

      #उचितवक्ताडेस्क।

Monday, October 25, 2021

अच्छा आदमी बुरा आदमी

किसी बहुत अच्छे आदमी से आपका परिचय कभी बहुत बुरे आदमी के मार्फ़त होता है।
जीवन कितना दिलचस्प है।
                      🌍
            #उचितवक्ताडेस्क।

                 गंगेश गुंजन

Saturday, October 23, 2021

झुकना

झुकने से मना कर के फ़ितरत तो बचाया
अब सब झुके हुओं की आँखोंकोअखरते हैं।

                     गंगेश गुंजन
                #उचितवक्ताडेस्क।

Thursday, October 21, 2021

रात मुझको ज़रा नहीं भायी

                 |🌓|

हरा कर  उजाले  को  आयी।                   रात मुझको ज़रा नहीं भायी।
                  🌘
             गंगेश गुंजन

         #उचितवक्ताडेस्क।


Wednesday, October 20, 2021

ग़ज़लनुमा

🌵🏘️🌵  । ग़ज़लनुमा ।🌵🏘️🌵 

     सियासी जुनूंँ यों तो कम नहीं है
       अग़र्चे सियासत में दम नहीं  ‌है।

    सोचिए तो विचार भी है नग़्मा
    भले इसमे कोई सरगम नहीं है।

    बहुत हारा मिला कल बेसहारा
    ज़ख्म प' उसके अब मरहम नहीं है।

    सोच कर हुए जाने वाले दुबले
    शहर में क़ाज़ी जी कम नहीं है।

    मिले तो पूछ लूँ क्यूँ न  उसी से
    सज़ाए ख़ामुशी मातम नहीं है ।
                 | 🌟 |
       गंगेश गुंजन,१७.०९.'२१.

         #उचितवक्ताडेस्क।

Monday, October 11, 2021

बिचौलिए की ताक़त

💤  बिचौलियों की ताक़त  💤
                    🌀
    बिचौलियों की ताक़त और षड्यंत्र
     देखिए कि पानी जैसा पदार्थ जो
     धधकती हुई भयावह आग को
     बुझा देता है लेकिन पर्यावरण और पानी

     के बीच में महज़ कोई बर्तन आ जाय तो
    उसे शक्तहीन बना देता है और बर्तन
    बिचौलिया पानी को वाष्प बना कर
     उड़ा देता है। सामाजिक सोच, सामर्थ्य
     और जन साधारण की ताक़त के साथ 

     भी बिचौलिये ही हैं जो षड़यंत्र कर 

    आपसी संदेह,परस्पर वैमनस्यता और
    विद्वेष पैदा करके अपने-अपने
    स्वार्थ‌ में कभी जाति कभी
    संप्रदाय कभी भाषा,राज्य का
    टंटा खड़ा करते हैं और आपसी
    भाईचारा बर्बाद करते हैं। 
        चिंताजनक और दुखद यह और
    अधिक है। ऐसे में कई बार
    राजनीतिक विचारधाराएंँ भी
    शामिल हो जाती हैं।इस प्रपंच से
    जनसाधारण अवगत नहीं हो
    पाता या कहें उसे इस से अवगत
    होने नहीं देने का एक सुनियोजित

    वातावरण बना दिया जाता है। जनता

    तो साधारण लोग हैं उन्हें उनका
    नेतृत्व ही चलने को बाध्य करता
    है।समाज के लिए अपने लोगों
    को अपने-अपने स्तर पर चिंता
    करनी होगी और राजनीतिक
    बर्तनों को पानी की ऊर्जा के
    अपव्यय से आगाह करना होगा।
    चेतावनी देनी होगी।
    जनता को स्वयं जनता के साथ
    एकहित में संवाद करना होगा
    और राह तय करनी होगी। अब
    देखें ऐसा कब होता है ।
           #उचितवक्ताडेस्क।

                गंगेश गुंजन

Wednesday, October 6, 2021

वार्षिकोत्सव सा आ ट्रस्ट २००९.

   श्रीमती सिंहेश्वरी-दामोदर स्मारक
   पुस्तकालय,पिलखवाड़,मधुबनी :
   वार्षिकोत्सव-२००९ ई०।
   स्वागत और अभिनंदन में 
   निवेदनीय प्रोफ़ेसर शंकर कुमार
   झा(फ़ोटो से बाहर).फोटो में
   क्रमशः
   मेरे उदय भैया इनके बायें
  आ०पं०विद्यानन्द झा(नन्हकूभैया
  के बाद यार-भगवान जी-
   जयवीर और अंत में आदरणीय
   छोटका भैया-वीरू बाबू : ट्रस्ट के
   उपाध्यक्ष जी।
          💐।💐।💐।💐।💐
  #उचितवक्ताडेस्कअभिलेखागार।

Monday, October 4, 2021

जीवन !

               जीवन-मरण !

लम्बी से लम्बी सुन्दर कहानी आख़िर,    एक शीर्षक में सिमट कर रह जाती है।

          #उचितवक्ताडेस्क। 

                गंगेश गुंजन

Wednesday, September 15, 2021

लफ़्फाज़ी

 *         लफ़्फाज़ी सिर्फ़
                   🌀
     लफ़्फाज़ी सिर्फ़ राजनीति में
     नहीं,साहित्य में भी है। तो 
     अनुपात: दोनों ही क्षेत्रों में
     अपनी-अपनी जगह
     विश्वसनीयता खत्म हो चुकी है
     अथवा संदेहास्पद अस्तित्व में
     है।
            #उचितवक्ताडेस्क।

                गंगेश गुंजन

Tuesday, September 14, 2021

ख़ुदग़र्ज़ ज़माना है

ख़ुदग़र्ज़ ज़माना है सब पर ना भरोसा कर। क़दमोंमें रख यक़ीं डर डराके मत चला कर।

               #उचितवक्ताडेस्क।

                    गंगेश गुंजन

Sunday, September 12, 2021

बूंद-बूंद अमृत भरा था उसने...

                     |🔥|
           ज़िन्दगी में
           अब किया महसूस
                              मैंने।
      बूंँद-बूंँद अमृत भरा था
                     मुझमें
                          उसने।
                    ज़िन्दगी में
         अब किया महसूस
                           मैंने।
                                  
                 #उचितवक्ताडेस्क।

                      गंगेश गुंजन

Saturday, September 11, 2021

अपवाद का विशिष्ट सन्दर्भ

                     |🌻|
   वास्तविकता तो यह है कि सभी
   काल के लिखे गए समस्त
   साहित्य में भी जो अपवाद-मूल्य
   की कृति होती है प्राय: वही
   विशिष्ट,कालजयी होती है। अतः
   हाशिया अक्सर ही कोई विशिष्ट
   संदर्भ भी बन जाता है।
                       |🌍|
              #उचितवक्ताडेस्क।

                   गंगेश गुंजन

संस्मरण साहित्य

                🌀🌟🌀
  उड़ाया हुआ रत्न,अपने                     सिर-मुकुट में जड़ कर                     प्रदर्शित करने जैसी कला               साहित्य में प्रायश: संस्मरण               कहलाती है।

      अपवाद असंभव नहीं है।
          #उचितवक्ताडेस्क।

                गंगेश गुंजन

Sunday, September 5, 2021

|| भविष्य ||

                    'भविष्य'
  मनुष्य का भविष्य अदृश्य आशंकाओं     और असीम सम्भावनाओं का एकछत्र     साम्राज्य है।
                     |🌓|          

            #उचितवक्ताडेस्क।

                  गंगेश गुंजन

Saturday, September 4, 2021

हिन्दी में धीरोदात्त आलोचक

                         🌍
       ।।   धीरोदात्त आलोचक   ।।
   'बताइए तो हिन्दी में अनुमानत:
   कितने धीरोदात्त आलोचक
   होंगे ? साहित्य शास्त्र में विहित
   काव्य नायक-नायिकाओं की
   तरह आलोचकों के भी प्रकार
   होते ही होंगे।
      इस कोरोना काल में भी मित्र
   समाधान प्रसाद जी बैठे-बैठे
   अचानक कुछ ऐसी ही समस्या
   उपस्थित करते रहते हैं कि कुछ
   कहते नहीं बनता। अभी पिछले
   ही दिन मैथिली साहित्य के दो
   धीरोदात्त आलोचकों का नाम
   पूछ बैठे थे। आज अचानक
   हिन्दी के धीरोदात्त आलोचक
   बतलाने को कहा।
  'अव्वल तो आलोचक का ऐसा
   कोई कोटि-निर्धारण होगा मैं
   उससे तनिक भी अवगत नहीं हूँ।
   दूसरे कि ... ' मैंने अपनी लाचारी
   व्यक्त की जिसे अनसुना करते
   हुए बोल गये कि :
   बाकी तीन धीर प्रशान्त,ललित
   और धीरोद्धत को वे स्वयं भली
   भांँति जानते हैं।
             #उचितवक्ताडेस्क। 

                 गंगेश गुंजन

Friday, September 3, 2021

। प्रेम ।

       स्वभाव से प्रेम पहाड़ है और       व्यवहार में नदी।

                      *
           #उचितवक्ताडेस्क।

                गंगेश गुंजन

Thursday, September 2, 2021

गोद मे बच्चा

                  |🌍|
             गोद में बच्चा
                     *
   अभी कुछ दिन पहले एक
   आदरणीया महिला ने मुझे
  मित्रता का प्रस्ताव भेजा। उनकी
  गोद में बहुत सुंदर लड़की थी
  लड़की ही थी बच्ची मेरे मन में
आया कि उनको लिखूं कि यह
मैत्री सादर सहर्ष क़बूल है बशर्ते आप अपनी बच्ची थोड़ी देर के लिए मुझे गोदी में लेने के लिए दें।' परन्तु मेरा यह लिखना क्या Facebook शिष्टाचार के भीतर होता ?
लेकिन सच बात है दूसरी भी है और वह यह है कि...
मेरा एक अनुज मित्र है। मुझे बहुत प्रिय- यादवेंद्र। आप में से भी बहुतों का मित्र है। ऐसा गुणी है ही वह। (होंगे मैं जानबूझकर नहीं लिखता हूंँ।)
   बहुत दिनों से उसकी भी फोटो में उसकी गोदी में एक ‘भुवन मोहन शिशु’ है। मैंने उसको लिखा- ‘थोड़ी देर के लिए मुझे इसे गोद में लेने दो।’ इसके बाद भाई ने ऐसा ‘पतनुकान’ ले लिया है कि पूछें मत। (मेरे इस अनुभव के लिए मैथिली का ‘पतनुकान’ शब्द ही एकमात्र पूरा कहने वाला शब्द लगा सो मुझे लाचारी यही लिखना पड़ा। पतनुकान का मोटामोटी अर्थ सिर्फ इतना ही कह सकता हूं ऊपर पेड़ के सघन पत्तों में छुप कर बचने वाली साहसी चतुराई।)। जवाब तो देना दूर उसके बाद तो उसका 'लेख- शब्द-दर्शन' भी दुर्लभ है। जब कि यादवेंद्र की गोद का वह बच्चा कहीं ना कहीं मेरा भी नाती पोता कुछ जरूर है !
       गांँव देहात के सहज सरल जीवन में मेरा कई बार देखा हुआ है। किसी मांँ की गोद में प्यारे बच्चे को देखकर अगर उस आदमी ने प्यार से उसे फिर दोबारा देख लिया गोदी में लेने की इच्छा प्रकट की, तो वह मांँ बच्चे को झटपट फुर्ती से आंँचल में छुपाने लगती थी। छुपा लेती थी। मतलब होता था वह बच्चे को बुरी नजर लगने से बचाती थी। यह एक बार नहीं अनेक बार का अनुभव है।
   सोचता हूंँ कहीं न कहीं उसके मन में भी मेरे गांँव या सभी ऐसे गांँव की वही कोई सरल-सहज मांँ तो नहीं जो जमाने की बुरी नजर से बचाने के लिए बच्चे को आंँचल में छुपाए रहती है छुपाती चलती है।
  मगर जो भी हो यह बात है बहुत अच्छी।
  इसे इसे बचाना चाहिए। इस भाव को महज़ कोई प्रचलित दकियानूसी मानना मुझे लगता है कुछ ज्यादा ही आधुनिक और बुद्धिवादी होना हुआ।
   अंतत: कहीं यह,युग-युग से नितांत असुरक्षित शक्तिहीन नारी की अपराजेय मातृ-भावना ही है। अक्सर पुरुष भी साझा करते हैं।
                    *
-गंगेश गुंजन 6 सितंबर 2017.

      #उचितवक्ताडेस्क।

Wednesday, September 1, 2021

बैठे ठाले : भोले भाले !

🌍   भोले भाले : बैठे ठाले !
                  - सोना-
बड़ा और दामी घमंडी होता है। जैसे सोना। वह निर्धन के पास नहीं रहता। जब रहता है तो धनवालों के घर। ग़रीब से घृणा करता है। उन से दूर-दूर रहता है। हालांँकि उसका स्वभाव ही ऐसा है कि वह जहाँ रहने लगता है वह अमीर हो जाता है। वह धनी कहलाने लगता है। तो सोना ग़रीब के यहाँ रहने लगे तो वे भी ग़रीब क्यों रह जाएँगे ? मगर नहीं। सोना तो समाज में व्याप्त वास्तविक जाति वर्ण भेद से भी अधिक द्वेषी,नस्लवादी और होता है।
गरीबों से द्वेष रखता है और गहरी घृणा।
   इतना ताकतवर होकर सोना डरपोक बहुत होता है। छिने जाने या चुरा लिए जाने के डर से वह विशेष अवसर और उत्सवों पर ही बाहर आता है। ज़्यादातर बक्सा-संदूकों में बंद रहता है।आजकल तो
और उसे अपने ही घर में रहने से डर लगता है सो बैंकों के लॉकरों में जाकर,छुप कर रहता है। 
    विवेकहीन भी बहुत होता है सोना। जबकि कहते हैं,विवेकहीन बलशाली बाकी समाज के लिए बड़ा ख़तरनाक हानिकारक होता है। इसीलिए बाकी लोग उससे बच कर रहते हैं उसे कभी अपना नहीं समझते।
    वह ज़रा शान्त होकर,ठंडे दिमाग़ से सोचे और हिसाब लगाये तो जान सकता है कि अपनी सुरक्षा के लिए जितना धन वह साल भर में ख़र्च कर डालता है उतने को अगर समाज भर के गरीबों में बँट फैल कर रहने लगे तो उसे इतना डर डर कर रहने की भी क्या ज़रूरत होगी और दुनिया में
घमंडीलाल भी नहीं समझा जाएगा?
और सबसे बड़ी बात तो यह कि समाज में सर्वत्र ख़ुशहाली फैल जाएगी सो अलग।  बहुत कुछ दुनिया रह कर जीने लायक हो जाएगी।                 
                 #उचितवक्ताडेस्क।

                      गंगेश गुंजन

Sunday, August 29, 2021

तानाशाह और हिंसा का विकल्प

|🌍|  
      हिंसा तानाशाह का प्रिय
      आहार है।उसे हिंसा का
      विकल्प चाहिए ही नहीं।विस्मय
      क्या कि अपनी महत्त्वाकांँक्षा
      के अलावा उसके आगे कोई
      विचार,विचार रहता ही नहीं।
                     
     जिस दिन हत्या का अहिंसक
     विकल्प मिल जाएगा उस दिन
     लोकतंत्र निर्दोष होकर सबजन
     आदर्श राज्य संस्था बन जाएगा
     इसमें शायद ही किसी को कोई
     संदेह हो।          
            #उचितवक्ताडेस्क।

                  गंगेश गुंजन

Friday, August 27, 2021

साधारण और श्रेष्ठ

         ।।  सामान्य और श्रेष्ठ ।।

   किसी बहुत विशेष दिन-तिथि में जन्म लेकर भी साधारण मनुष्य,उस दिन-तिथि को ऐतिहासिक नहीं बना पाता। जबकि महान् व्यक्ति अपने मरण से भी किसी साधारण तिथि-दिन को ऐतिहासिक बना जाते हैं।        |🌍|      

           #उचितवक्ताडेस्क। 

                 गंगेश गुंजन

Monday, August 23, 2021

विचार भी बूढ़ा होता है !

                     |🌳|        
         विचार भी बूढ़ा होता है  !
                      *
   समाज का ऊंँचा से ऊंँचा,सुन्दर
   से सुन्दर सिद्धांँत भी बिना प्रश्न
   और किसी अड़चन के,किसी
   मान्य आस्था की पुरानी निर्धारित
   लीक पर बहुत दिनों तक चल-
   चल कर रूढ़,मूढ़ या जड़ हो ही
   जाता है।
   और विचार जब रूढ़ हो जाता है
   तो वही सुन्दर से सुन्दर सिद्धांँत
   एवं बुरे से बुरा नेता की तरह बन
   जाता है। ऐसे में ही राजनीतिक
   विचार-दर्शन आदर्श भी
   पतनशील हो कर रहते हैं ।
      कहा ही जा सकता है कि जड़
   विचार भी समाज को उसी तरह
   हाँकने लगता है जैसा कोई बुरा
   राजनेता।
                        **   

                 गंगेश गुंजन         
            #उचितवक्ताडेस्क।

Wednesday, August 18, 2021

मिल जाय यदि क़िस्मत।


      मिल जाए तुम्हें क़िस्मत,
      जिस दिन ये
      समझ लेना।
      औरों के ग़ैर थे ही
      अपनों के भी हो गए अब।
           #उचितवक्ताडेस्क।

                गंगेश गुंजन।

Sunday, August 15, 2021

मजनू दिल रहनुमा

   जिस पल जिस दिन मजनूं-दिल              रहनुमा मिल जाएगा
   क़ाफिला बिखरा हुआ एक                कारवाँ बन जाएगा।
              #उचितवक्ताडेस्क।  

                   गंगेश गुंजन 

Saturday, August 14, 2021

स्वतंत्रता और कविता

||       स्वतंत्रता और कविता       || 
                      *
    परतंत्र भाषा की भी अच्छी
    कविता स्वाधीन होती है। स्वतंत्र
   भाषा की सही कविता तो चेतना
   की स्वाधीनता का भावी स्वरूप
   ही होती है।
      एक मात्र कविता में ही प्रायः
    मनुष्य का यह कला-सौष्ठव
    निरन्तरता से प्रतिष्ठित रहता है।
                 जयहिन्द !
           #उचितवक्ताडेस्क।

                गंगेश गुंजन

Sunday, August 8, 2021

प्रेम में उपहार

                 आजकल
प्रेम में उपहार परोक्ष रूप से सम्बन्ध में  निवेश जैसा लगता है ।
                   |🌼|
         #उचितवक्ताडेस्क।

               गंगेश गुंजन

Wednesday, August 4, 2021

दूब मध्यवर्गीय

🌊       
            मध्यवर्गीय दूब !
                   🌿
    आज मुझे अभी सुबह मैं
    अपेक्षाकृत बहुत मुलायम दूब
    पर चलते-टहलते हुए सहसा हरि
    उप्पल जी की याद हो आई।
    वे भारतीय नृत्य कला मंदिर, 
    पटना के संस्थापक आजीवन
    अध्यक्ष थे। निश्चित ही संगीत-
    सांस्कृतिक परिवेश परिवेश को
    उनसे बहुत कुछ मिला। इस क्षेत्र
    में बिहार और खासकर पटना
    को उनकी देन अपूर्व है। इसके
    लिए उन्हें पटना के इतिहास में
   आदरपूर्ण स्थान भी मिला और
   जो उचित भी है। भारत सरकार
   की पद्मश्री से पुरस्कृत भी थे।
   परंतु प्रसंग ऐसा कि मुझे उनकी
   एक नकारात्मक याद आई ! परंतु
  आदरपूर्वक ही,किसी भी
  अवहेलना-अवमानना वश नहीं।
    मैंने अभी-अभी कहा कि आज
  सुबह मुलायम दूबों पर चलते
  हुए।अनादर या विरक्ति की
  भावना से नहीं। सिर्फ अपनी एक
  वैचारिक विकलता में। यह सवाल
  हठात् आया कि सामाजिक वर्ग
  भेद के प्रकार का विचार कहीं दूब
  में भी तो नहीं होता है-’सामन्त
  वर्गीय दूब' और सर्वहारा वर्ग ?
  आपको हंँसी आ सकती है । परंतु
  यह मुझे इतने वर्षों बाद सवाल
  की तरह आया कि हम दूब में भी
  ‘सामंत दूब’ पर चलने के 
  अधिकारी नहीं। हैं तो बस यही
  सर्वहारा दूबों पर ही चलने का
  हक़ रखते हैं। हरि उप्पल साहब ने
  भारतीय नृत्य कला मंदिर के
  मुख्य द्वार और मुख्य सभागार
  प्रवेश के बीच की जगह को बहुत
  ही आकर्षक लंबे-लंबे और
  कोमल हरी दूबों की सज्जा से
  सजा रखा था। बहुत ही प्यारा
  और आकर्षक लगता था। बल्कि
  उस समय तो मोहित करता था।
  सामने ही आकाशवाणी पटना का
  भी मुख्य द्वार होने से और विविध
  सांस्कृतिक कार्यक्रमों में आमंत्रित
  होने के कारण भी,जब-जब जाऊंँ
  तो हर बार इच्छा हो कि दो-चार-
  दस क़दम नंगे पैर इन दूबों पर
  चलूंँ ! इस लॉन में एक-दो चक्कर
  लगाऊंँ। रख-रखाव से वहांँ प्रतीत
  होता था कि प्रतिबंधित है।
  इर्द-गिर्द भले ही निगाहों का
  लेकिन चौकीदारों का सुरक्षा
  कवच तैनात रहता। ख़ुद तो हरि
  उप्पल जी को कभी-कभार उस
  पर आराम कुर्सी में बैठे चुरूट/
  पाइप पीते हुए देखा जा सकता
  था किंतु और किसी को कभी भी
  उन दुबों पर पैर रखते नहीं देखा।
  बिना कहे भी एक वर्जित प्रदेश
  था जो आकर्षित तो करता था
  परंतु स्वीकार नहीं कर सकता
  था। सो स्थिति ऐसी थी कि बिना
  अनुमति के हम अपने मन का
  वह कर नहीं सकते थे।उप्पल जी
  से साधारणतः स्नेह पूर्ण और
  सहज संबंध ही था।
    एक शाम मुख्य द्वार पर ही मिल
  गये। कुशल-क्षेम शिष्टाचार में
  'कैसे हो गुंजन !...काफ़ी दिनों
  बाद दिखाई दिये।कहीं बाहर गये
  थे क्या ?’ इत्यादि,स्नेह सौजन्य से
  पूछा।उत्तर देते और अवसर
  सहज देखते हुए मैंने अपनी इच्छा
  बताते हुए कहा-
  'भाई जी,मैं इन दूबों पर थोड़ा
  चलना चाहता हूंँ ।’
  मेरी आशा के विपरीत उन्होंने
  लगभग विरक्त भाव से कहा-
  'नहीं ऐसा करने की अनुमति नहीं
  है। मैं किसी को इस दूब पर नहीं
  चलने देता।’
  ’मैं इन पर चप्पल पहन कर नहीं
   चलूंँगा।दूब पर नंगे पैरों तलवों से
   चलने की बड़ी इच्छा है। इससे
   दूबों की कोमलता को कोई
   नुकसान नहीं होना चाहिए।’ मैंने
   दोबारा इसरार किया।
   उन्होंने उसी रुक्षता से इनकार
   किया।और मैं अप्रतिभ हुआ लौट
   आया ‌।
     असल में उस प्रजाति की दूब
   पटना में उस समय दुर्लभ और
   अकेली दिखाई देती थी।शायद
   राजभवन में भी थी। अब २५
   जनवरी तक उसकी प्रतीक्षा कौन
   करे ‌?
    ऊपर से उस माहौल के अपने
   प्रोटोकालिक नख़रे थे। नंगे पैरों
   दूब पर चलने का साधारण जन
   आनंद असंभव रहता। उसकी
  ख़लिश रह गई मन में।मगर ...
  संयोग से,जहां तक याद आता है,
  वैद्यनाथ आयुर्वेद भवन का कोई
  विशेष रात्रि-भोज था जिसमें मैं
  भी आमंत्रित था। मुख्य पटना के
  बहुत बाहर जाकर पटना-दानापुर
  मार्ग पर शायद उनका कोई एक
  फॉर्म हाउस है।(उस समय)।वहांँ
  जाने का अवसर मिला। वहांँ जो
  गया तो देख कर मुझे मेरे हर्ष की
  इंतिहा नहीं रही। वहांँ तो लॉन में 
  भारतीय नृत्य कला मंदिर की
  समृद्ध सामन्त सम्भ्रान्त दूबों से
  भी अधिक उन्नत विशिष्ट और
  मोहक प्रजाति की दूब तमाम
  बिछी हुई थी ! मेरे लिए संयम या
  धीरज रखना मुश्किल हो गया।
  मैंने चप्पल उतारी और बिजली-
  बत्तियों की आकर्षक रोशनी में
  खिली-सी,बिछी हुई मुलायम दूबों
  के लान में मैं बेधड़क चलने लगा।
  जी भर कर देर तक नंगे पांँव उन
  दूबों पर चलता रहा ! ...उस वक्त
  मिले अपने संतोष का आनन्द
  आज सुबह अभी-अभी,पारस
  टियरा सोसायटी के इस उद्यान में
  दूबों पर चलते हुए शिद्दत से याद
  आया !
  आज मैं उसे एक प्रश्न की तरह
   झेलता हूंँ।
   'तो क्या,दूबों का भी बुर्जुआ और
    सर्वहारा वर्ग होता है ?
        आपको बताना ही चाहिए कि
    यहांँ पारस टियरा की दूबें,
    मध्यवर्गीय दूबें हैं !
                     *
              गंगेश गुंजन
            ३१.०७.२०१८.

           #उचितवक्ताडेस्क।

Sunday, August 1, 2021

ग़ज़ल नुमा। वो किधर गया

                      🌍 |
    वो उस तरफ़ अगर गया होगा
    जानिए और मर गया होगा।

    हम ये समझे समझ है उसमें
    अबके अपने घर गया होगा।

    आशियाँ कहाँ कहाँ मयख़ाना
    दरम्याँ क्यूँ ठहर गया होगा।

    चल रहा था उसूल पर चर्चा
    बाज मौक़े प'अड़ गया होगा।

    अब सुहाए भी कुछ नहीं उसको
   अपनी जिद ही पकड़ गया होगा।

    नाक फटती है आम लोगोें की
    हाले माहौल सड़ गया होगा।

    ठीक इतनी भी नहीं बेज़ारी
    इस अहद में किधर गया होगा।

              गंगेश गुंजन।
                    ##

           #उचितवक्ताडेस्क।

Thursday, July 29, 2021

नागार्जुन और अज्ञेय

              आलोचना से इतर

    नागार्जुन हिन्दी के अनुकरणीय लेखक
    हैं और अज्ञेय स्पर्धेय।
                       |🌸|
                  गंगेश गुंजन
            #उचितवक्ताडेस्क।

Wednesday, July 28, 2021

मतला और शे-एर


    किसी मतले पे सो गया हूँ मैं
    ग़ज़ल ग़ालिब की हो गया हूँ मैं।
 
    हाल बेहाल मैं यों ही  नहीं हूँ
    बहुत हैवान सदी ढो रहा हूँ मैं।
                   गंगेश गुंजन
              #उचितवक्ताडेस्क।

Monday, July 26, 2021

दो स्वतंत्र दो पँतिया

 🌻|🌻🌻🌻|🌻🌻🌻|🌻🌻

    जिसने उसकी जीवन भर होने
    ना दी इक रुसवाई।
    आती रुत में उसने उसको सरे
    आम बाज़ार किया।
                  ‌।२.।
    जितना रूखा-सूखा रस्ता
    मुश्किल जितनी मंज़िल थी।
    कहाँ कहीं सुस्ताये, की पर्वाह
    पांँव के छालों की।
                  |🌻| 

               गंगेश गुंजन
           #उचितवक्ताडेस्क।

Saturday, July 24, 2021

पुस्तक

                    पुस्तक

कई दफा पुस्तक आपकी होती है और उसमें जगह-जगह, ख़ास कलम, लाल-नीली रोशनाई से की गई रेखांकित पंक्तियाँ किसी और की। ये निशान उस पुस्तक की उम्र में गहरे जुड़े रहते हैं और आपकी स्मृतियों से।

                        |🌻|

                   गंगेश गुंजन    

               #उचितवक्ताडेस्क।

Wednesday, July 21, 2021

... अंधेरे छाँटते हैं...

🛖|
             अंधेरे छांँटते हैं
                     *
   पुराने  घर में  रातें  काटते हैं।
   काटते क्या अंधेरा छांँटते हैं।

   रौशनी ही नहीं जब मेरे घर में
   तीरगीयाँ सहर तक काटते हैं।

   ख़ुशी अबतक मयस्सर ही नहीं जब 
   मिले हैं दु:ख तो दु:ख ही बाँटते‌ हैं।

   वो बूढ़े हैं जो उस घर के  दादा
   वक़्त बेवक़्त कितना खाँसते हैं।

   अजब मातम का डेरा जग हुआ है
   लोग जीने को दु:ख भर काटते हैं।

    बड़ा सुकुमार है  दादी का पोता
    कहे  दादी  को- 'दादा डाँटते हैं।'

   किसी पल मरने वाले ज्योतिषीजी
   अजब है   भाग्य  मेरा  बाँचते‌ हैं ।

   अनर्गल करने वे कविता में हमको,
    ख़ुद को कवि निराला ही आँकते हैं।

    नहीं आते अब उसके छलावे में
    रात भर खुली आँखों जागते हैं ।

    छुपा कर रौशनी रक्खेंगे कब तक
    हम उनके अंधेरे जब फाँकते हैं।
                       *
                गंगेश गुंजन,
                २४.जुन.'२१.

              #उचितवक्ताडेस्क।

Tuesday, July 20, 2021

जिस्म रूह की तफ़्सील है

 ...बोले तो यह जिस्म,
    रूह की काम चलाऊ तफ़्सील भर है।        कोई मुकम्मल नहीं।
    क्या कहते हैं ?

            🌘 गंगेश गुंजन
   #उचितवक्ताडेस्क।

Wednesday, July 7, 2021

आधी हक़ीक़त

हक़ीक़त जो हो न आधी तो कठिन है ज़िन्दगी।

मुकम्मल मिलती नहीं है इसलिए सब रौशनी।

रात दिन यूँ चाँद और सूरज में बांँटा तब दिया।

इशारा ये ही तो क़ुदरत ने कभी का कर दिया।

                 गंगेश गुंजन

             #उचितवक्ताडेस्क


Tuesday, July 6, 2021

उम्मीदों के पंख

 🌈
       जब से कन्धों पर उग आये
       आशाओं के पंख।
       धरती पर लड़ना मुश्किल से
       आसाँ लगता है।             🌈
       

               गंगेश गुंजन
            #उचितवक्ताडेस्क।                                             

आज्ञाकारी मॉम-डैड

🏡|🏘️

    पहले बेटी-बेटे आज्ञाकारी होते थे।
    समाज में उनकी ही प्रशंसा होती थी।
    अब माँ-बाप आज्ञाकारी होते हैं।और         आज्ञाकारी मॉम-डैड आजकल सोसा-       यटीमें बहुत लोकप्रिय हो रहे हैं।

                    गंगेश गुंजन

               # उचितवक्ताडेस्क।

Tuesday, June 29, 2021

आँसू और मुस्कान अंतर्राष्ट्रीय भाषा हैं

मनुष्य के आंँसू और मुस्कान अंतर्राष्ट्रीय भाषा हैं। करुणा और आनन्द इसका व्याकरण हैं। इसकी लिपि सृष्टि ने स्वयं गढ़ी।
                      |🌍|
                  गंगेश गुंजन 

             #उचितवक्ताडेस्क।





Monday, June 28, 2021

...लेखक की दरिद्रता


             लेखक की दरिद्रता 

किसी लेखक की इससे बड़ी दरिद्रता और क्या होगी कि स्थानाभाव के कारण वह अपने घर में निजी पुस्तकालय तक बचा कर नहीं रख पाए। यहांँ तक कि कुछ चुनी हुईं मनपसन्द किताबें।
                    🛖🌳
             #उचितवक्ताडेस्क।

Monday, June 21, 2021

बचपन और बुढ़ापा

     बूढ़े बच्चों का बचपन देखते हैं 

      बच्चे उनका बुढ़ापा।

                       |🏡|

            #उचितवक्ताडेस्क।              

                  गंगेश गुंजन

Saturday, June 19, 2021

रोते रहे तो रोते रहे जाओगे...

       रोते रहे तो तन्हा रोते ही रहोगे।
   गाने लगो तो लोग पास आएंँगे सुनने।
                          | * |
                    गंगेश गुंजन 
               #उचितवक्ताडेस्क।

Friday, June 18, 2021

माक़ूल कोरोना-काल

                           || 🌍 ||
                माक़ूल फेसबुक-काल
    
     दिल की गहराइयों से अपनी मुस्कुराती हुई
     फोटो के साथ,पत्नी का 'कोरोना-शोक' प्रगट
     करने का यह बहुत माक़ूल समय है। फेसबुक
     समाज पर ऐसा प्रत्यक्ष आभास होता है।और
     देखिए कि इसमें,
           उधर कोरोना लगा हुआ है
           इधर लोग लगे हुए हैं।
  
                  #उचितवक्ताडेस्क।

Thursday, June 17, 2021

रिश्ते का जहाज़

   इस बार जो छूटा तो दुबारा न मिलेगा।
   रिश्ते के इस जहाज़ की कुछ तय नहीं उड़ान।
                           ⚡
         गंगेश गुंजन #उचितवक्ताडेस्क।

Wednesday, June 16, 2021

विचार और साँस्कृतिक विरासत ।

                         🏡|🏘️

           विचार और सांस्कृतिक विरासत
                            |🌸|
    कालजयी सामाजिक विचार भी मज़बूत
    इमारत की तरह होते हैं। समय के साथ पुराने
    भले पड़ते जाते हैं,उचित रखरखाव के अभाव
    में वे कमजोर भी हो जा सकते हैं लेकिन
    अपनी गहरी नींव पर मज़बूत टिके होने के
    कारण हर तरफ़ जटिल-कठिन होते जा रहे
    आज के हमारे जीवन में उपयोगी हो सकते
    हैं। बिना बर्वाद किए हुए वैसी इमारत,समय
    के अनुकूल आवश्यक मरम्मत परिवर्द्धन
    करके सुविधा से रहने लायक बनाई ही जा
    सकती है। उसे छोड़ देना तो इन्सान की
    नादानी है।
    अगर बाप-दादा की दी हुई सम्पत्ति का नया
    उपयोग सम्भव है तो उनके विचार और
    सांँस्कृतिक विरासत का क्यों नहीं ?
                            🌍
                 #उचितवक्ताडेस्क। 

Tuesday, June 15, 2021

मेरे सपने में ज़्यादा टूटे घर निकले। : ग़ज़लनुमा

🕊️🕊️🕊️🕊️🕊️🕊️🕊️🕊️🕊️🕊️🕊️🕊️🕊️🕊️
     मेरे सपने में ज़्यादा टूटे घर निकले।
     हम लेकिन क़ायम अपने नक्शे पर निकले।

     एक इलाक़ा कौन कहे गाँव के गांँव
     रोटी के पीछे अनजान सफ़र पर निकले।

     दस्तक पर दस्तक दी तब जाकर उस घर से
     झाँके एक बुजुर्ग डरे ना बाहर निकले।

     बस्ती भर के फूसों की झोपड़ियों वाले
     घर मेरे ईंटों के हरदम कमतर निकले।

     इस इकीसवीं सदी में भी ज़्यादा घर से
     झुलसी रोटी ही खाते पत्तल पर निकले

     बारंबार चुनावों के इस लोकतंत्र में
     धरती के रहनुमा तो फिर अम्बर निकले।

     आधी रोटी लिए झोपड़ों से वे बच्चे
     लेकर बड़े घरों से उम्दा बर्गर निकले।

     अंँटे कवायद क्यूँकर ये सब मिरे ज़ेह्न में
     इस साँचे से हम जो हरदम बाहर निकले।

                   गंगेश गुंजन।
                         ##

               #उचितवक्ताडेस्क।

Saturday, June 12, 2021

अब सुरक्षा

                    🌀🌍🌀
                    सुरक्षा अब
   अब हम कुछ हत्यारों के बीच अपने को
   सुरक्षित पाते हैं।
   ऐसा नहीं है कि यह कोई जाति,संप्रदाय या
   धर्म का मामला है।
   नहीं। मनुष्य के अस्तित्व और थोड़ा निश्चिंत
   होकर जीने के अरमान की-जिजीविषा भर का
   है।
   हम जन साधारण का यह मन
   बीते तमाम दशकों की राजनीतियों,
   और सल्तनतों की आमद है। इन्होंने ही
   हमारी समाज सांँस्कृतिक लोक-चेतना का
   सामूहिक विवेक कुंद करके,
   इस बदहाल मुक़ाम तक पहुंँचाया।
   ऐसा मानस बना कर छोड़ रखा है।
   हम तो सिर्फ सपरिवार चैन से सुरक्षित जीने के
  अभिलाषी रहे। लेकिन इत्ती-सी भर आकांक्षा
  में भी अपने लोकतंत्र ने हमें ऐसा बनाया है।
  यह ज़रूर जाना कि राजनीति कोई भी हो,
  विचारधारा कोई भी हो, कोई भी हो संगठन,
  सत्ता से बाहर वह कुछ भी नहीं है और
  सत्ता में वह सदैव क्रूर,हृदयहीन नृशंस है।
  वक़्त बेवक़्त उसने ऐसा समझाया भी है।
  हमीं नहीं समझे अभी तक।
  यह भी कोई जाति,संप्रदाय,भाषा,क्षेत्र या
  धर्म का मामला नहीं बल्कि,
  लोकतंत्र में क्रियाशील राजनीतिक
  विचार-व्यवहारों की स्नायु में प्रवाहित शोणित
  की तासीर का है।
  यह विडंबना नया यथार्थ है कि अब हम
  अपने को
  हत्यारों की छत्रछाया,उनकी ही शरण में
  सपरिवार और गांँव भर को सुरक्षित और
  शांतिपूर्ण महसूस कर सकते हैं।
  यह कोई बौद्धिक वैचारिक समझौता भी
  नहीं है।
  गत इतने दशकों का राजनीतिक हासिल है।
  जन-जन का हमारा यह समाज अब
  शोषक और शोषित,अमीर और ग़रीब इन दो
  पुराने प्रतिपादनों में नहीं, बल्कि
  ताज़ा बिल्कुल नये उभर कर आये
  दो वर्ग,दो जातियों में जीने के लिए अभिशप्त
  हैं
      सुरक्षित वर्ग और असुरक्षित वर्ग।
      मेरा घर-
      दूसरे वर्ग बस्ती में है।
                         *
                 गंगेश गुंजन
                 ०३.११.'२०.

            #उचितवक्ताडेस्क।

Friday, June 11, 2021

बहुत जो लोग महरूमे वफ़ा हैं...

                   🌼||🌼
     बहुत जो लोग महरूमे वफ़ा हैं...  
                       *|*                        
     मुहब्बत भर मुहब्बत कीजिएगा।
     ज़रूरत भर  मुरव्वत कीजिएगा।

     कोई जिनिस नहीं कि जमा कर लें
     थोक में कर न आफ़त कीजिएगा।

     बहुत से लोग महरूमे वफ़ा हैं     
     जाइए तो वसीयत कीजिएगा।

     बहुत कुछ है अभी दरकारे दुनिया
     एक ये भी शरीअत* कीजिएगा।

     इश्क़ कंजूस भी कोई नहीं है
     तबीयत से मुहब्बत कीजिएगा।

     किसी को दें अगर कुछ भी कभी जो
     तवक़्को फिर कभी मत कीजिएगा।

     यहाँ मायूस क्यों हैं लोग इतने
     जानिए जो मुहब्बत कीजिएगा।    
  
                 🌿। || ।🌿
                  गंगेश गुंजन, 
              #उचितवक्ताडेस्क।

Monday, June 7, 2021

ग़ज़लनुमा

 शब्द झन-झन बोलते थे आज झर-झर बोलते हैं
 लोग तन कर बोलते थे आज डर-डर  बोलते  हैं।

 वक़्त का यह हुक्म है या आदमी ही फ़ितरतन
 जो जहाँ जिस हालमें हैं मुँह बहुत कम खोलते हैं

 बेचने और कीनने का यों चलन तो है पुराना
 अब नये इस दौर में लोग आत्मा तक तोलते हैं।

 इक सियासत है जिसे कुछ डर नहीं ना फ़िक्र है
 रात दिन इक दूसरे की पोल धड़-धड़ खोलते हैं।

 मातमों के इस मुसल्सल दौर में कल दिल मेरा
 कह रहा था तू बचा कि गया आ टटोलते हैं।
                            *
                     गंगेश गुंजन
               #उचितवक्ताडेस्क।

Saturday, June 5, 2021

पाषाणी सेल्फ़ी कोरोना काल की कला

                             |  🌼  |
            
                         पाषाणी सेल्फ़ी            
                                🌀
             अपने ज़िन्दा होने का अनुराग-अहसास
             करने के लिए सेल्फी लेते हुए कुछ लोग
             कितनों को तड़पने-मरने के लिए
             फेसबुक पर छोड़ जाते हैं,काश उन्हें
             इसकी भी थोड़ी ख़बर होती।‌
                   कोरोना काल में कला।
                             😀! 😂
                      #उचितवक्ताडेस्क।

Thursday, June 3, 2021

ग़ज़ल ....हद करते हो !

   |🌑|।         🌖|।         🌘|।      |🌔|

                        ग़ज़ल


    ऐसे समय इश्क़ फ़रमाना हद करते हो
    बेपनाह  मातम  मे गाना  हद करते हो।

    मची तबाही की इस हालत पर बाज़ार
    और चाहते दुकां बढ़ाना हद करते हो।

    सीधा सादा सफ़र हुआ ही तो जाता था
    ऐसे ख़्वाबों में भटकाना हद करते हो।

    रौशन भी है घर लेकिन कुछ पढ़ा न जाए
    ऐसी आँखों में सपनाना हद करते हो।

    चार क़दम की दूरी कहते हो लो मानी।
    कहते हो सब नाम भुलाना हद करते हो।

    पिछली ऋतुओं से ही कोई रुत ना देखी
    अब के भी पतझर ले आना हद करते हो।

    हम धरती हो झुलस रहे हैं कब से औ तुम
    चाँद अर्श से यों मुस्काना हद करते हो।
                            🍂
                  #उचितवक्ताडेस्क।

Friday, May 21, 2021

। सवाल विश्वसनीयता बनाम वफ़ादारी का ‌।

🌒|                                                     |🌒

  । सवाल विश्वसनीयता बनाम वफ़ादारी का ‌।
                           🌀
फेसबुक पर कहीं पढ़ा है कि एक पार्टी छोड़कर  दूसरी पार्टी में जाने वाला आदमी विश्वसनीय कैसे हो सकता है ? वास्तव में यह मानना उचित है। लेकिन छूटते ही इस विषय पर मुझे समाधान बाबू का टेलीफोन आया। आपने पूछा -
विश्वसनीय क्यों नहीं हो सकता ? यह ज्वलन्त विचार आपने पढ़ा है?'
'हाँ,देखा तो है कहीं ।' मैंने जवाब दिया तो छूटते ही मुझ पर सवाल से टूट पड़े:
'और अगर कोई एक राजनीतिक पार्टी वाला दूसरी पार्टी में जाने पर विश्वसनीय नहीं रह जाते तो इसी तर्क से अर्थात और भी लोग तो अपनी वफादारी बदलते रहते हैं, कोई किसी वजह से,
कोई किसी वजह से। बुनियादी रूप से दोनों प्रकार के चैनेल बदलने वाले में कोई बड़ा अन्तर क्या हुआ। एक ही तो हुआ।
     देश,दुनिया के बुद्धिजीवी,वैज्ञानिक,प्रोफ़ेसर,
साहित्य-कार-कलाकार,पत्रकार और सैकड़ों की तादाद में आये दिन टीवी चैनेल एंकर धड़ल्ले से यहाँ छोड़ कर वहाँ ज्वाइन करते रहते हैं। और तो और अधिकतर शिक्षक भी जो बाकायदा किसी बिहार, उ.प्र.चणडीगढ़ विश्वविद्यालय के कुलपति हैं लेकिन जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय का कुलपति होने के लिए उतावले हैं अथवा ज.ने.वि. के कुलपति हैं लेकिन किसी विदेश के -ऑक्सफोर्ड, कैम्ब्रिज का कुलपति होने के लिए शालीन शैली मे तमाम सियासी पैरवी से लेकर अपने-अपने अंतरराष्ट्रीय संपर्कों का छान-पगहा क्यों तुड़ाते रहते हैं? और किस महान् आदर्श उद्देश्य में बड़े सम्पादक एंकर लोग इस अख़बार से उस अख़बार इस चैनेल से उस चैनेल जाते रहते हैं ?
    यह दौर बेहतरी की दौड़ का है। और इसमें जो जहाँ है उससे बेहतर चाहता है। अधिकतर भागा भागी इसकी है।
हालांकि अपनी बेहतरी की छलाँग के लोग किसी न किसी आदर्श का आवरण चढ़ा कर कहते हैं।
    बुनियादी मानवीय प्रेरणा इन सब की एक ही है जिसे अपने अपने पक्ष में और विरोध में एक दूसरे के लिए तर्क और गरिमा गढ़ भाषा में कहते हैं- उसने दल बदला तो दल बदलू और अविश्वसनीय और मैंने विश्वविद्यालय या चैनेल, अखबार बदला तो ग्रो करने !
    अब ऐसे समय में जब सबकुछ फ़ायदे और नुक्सान का सौदा है और समाज से लेकर सल्तनत सरकार तक इसकी अंतर्राष्ट्रीय मंडी है तो पाला बदल अपने खेल के लिए फ़क़त किन्हीं राजनीतिक पार्टियों और नेताओं को ही कमतर कर आँकना और कहना,केवल उन्हीं पर सवाल खड़े करने का कोई ठोस औचित्य नहीं बचा है।    
    यद्यपि ऐसे वक़्त भी कुछ निदाग लोग अवश्य ही हैं और सभी क्षेत्रों में पूरी प्रतिबद्धता और चेतना के साथ सृजन शील एवं सक्रिय हैं।
  कथित सभी में अपने अपने अनुपात का कमोवेश भेद हो सकता है।

        गुनाह आख़िर  तो  गुनाह  ठहरा
        पांँच उसके किसी के पचपन हों।
                      🌼 || 🌼
              #उचितवक्ताडेस्क।


Thursday, May 20, 2021

टुकड़ा-टुकड़ा अनुभव

                            || 🌒 ||                         

                           🌿🌸🌿
      जिसको आत्मा कहते हैं अन्ततः कोई भंवरा
      है। सूखे शरीर को त्याग कर नव कुसुम से
      खिली डाली ढ़ूंँढ़ती फिरती है।

                            (१.)
        देह और दिल का झगड़ा है अजीब
        देर तक  रह गया तो क़यामत है ।
                            (२.)
                मौत और शै क्या है ?
            जिस्म से रूह का तलाक़।
                            (३.)
      रूह और जिस्म में दंगल भला कहांँ मुमकिन
      कभी ग़ुलाम भी टकराता है शहंशाह से !      

                        🌿🌸🌿।  

                       गंगेश गुंजन

                  #उचितवक्ताडेस्क।

बातें और बातें।

                       || 🌒 ||                         
                          (१.)
        देह और दिल का झगड़ा है अजीब
        देर तक  रह गया तो क़यामत है ।
                         (२.)
                मौत और शै क्या है ?
            जिस्म से रूह का तलाक़।
                        (३.)
      रूह और जिस्म में दंगल भला कहांँ मुमकिन
      कभी ग़ुलाम भी टकराता है शहंशाह से !
 
                    🌿🌸🌿
      जिसको आत्मा कहते हैं अन्ततः कोई भंवरा
      है। सूखे शरीर को त्याग कर नव कुसुम से
      खिली डाली ढ़ूंँढ़ती फिरती है।                                           🌿🌸🌿

                #उचितवक्ताडेस्क।

Wednesday, May 19, 2021

अभी ईमानदार सामाजिक जागरूकता

                        🌒🌿🌒

                अभी ईमानदार सामाजिक
     जागरूकता दरकार है साथी बुद्धिजीवियो !
     संलग्न तटस्थता भी।

     यह समय विचारधाराओं पार्टी पॉलिटिक्सों
    के आपसी द्वंद्व-दंगल का समय बिल्कुल नहीं
    है। वह सब सामान्य समय में करना ठीक है
    जिसे हम-आप एक आदर्श लोकतंत्र का
    शोभा-सुन्दर या विशेषता कहते हैं‌। लेकिन
    अभी जो देसी स्थिति है और दुनिया की भी
    इसमें अनुभव कहने पढ़ने में या देखने में
    अपने-अपने स्तर से बातों में ऐसा
    विरोधाभास और टकराव है,
    ऐसा धातक है कि पढ़ -सुन कर
   अक्सर सिर ही चकराता है ।समझ में ही नहीं
   आता आख़िर साधारण जन क्या करें ? वे जो
   हम जैसे भी नहीं। हम तो थोड़े पढ़े-लिखे भी
   हैँ। हम तो तनिक मीडियासजग भी हैं
   सामाजिक सरोकार भी रखते हैँ। लिखते भी
   रहते हैं विचारते भी हैं लेकिन वह तवक़ा तो
   सरल सहज विश्वास कर लेने वाला लगभग
   लाचार वर्ग लोगों का है लेकिन पढ़ना
   जानता है और पढ़कर समझ लेना भी !
 
   लिखिए। बेख़ौफ़। लेकिन महज़ पक्ष और
   विरोध की छुद्र नीयत से तो न बोलें,लिखें,
   कहें। जानकारी के अधिकार के नाम पर
   भ्रामक, कल्पित और नकारात्मक अनुभव
   और ज्ञान फैलाने के नाम पर जन साधारण के
   बेहतर अच्छा जीवन का उनका सपना तो मत
   नष्ट कर दो। आदमी और बेहतर जीवन का
   सपना,गाना बचना चाहिए।
        आज अभी ईमानदार सामाजिक
    जागरूकता दरकार है साथी बुद्धिजीवियो,
    ईमानदार सामाजिक जागरूकता !
                         🙏 ! 🙏

                 #उचितवक्ताडेस्क।

                       गंगेश गुंजन                

Monday, May 17, 2021

ठौर ठिकाने बिखर गये : ग़ज़लनुमा

| 🌒 |

      ठौर ठिकाने बिखर गये
      बार-बार हम उजड़ गये।

      अक्सर अपनी बस्ती में
      अनगौआँ* से गुज़र गये।

      टूटे  पत्तों की मानिन्द
      अभी कहीं कब किधर गये।

      आठ अजूबा लगता है
      नेता जी जब सुधर गये।

      रोज़ देख कर दिल दहले
      इक श्मशान वो क़ब्र गये।

     गयी रात तो ग़ज़ब हुआ
     इक दस्तक से सिहर गये।

     कैसा है यह आलम भी
     जहांँ तहाँ हम ठहर गये।

     कल ही शाम तो देखा है
     आज सुबह वो किधर गये?

      सबसे बड़ा सुकून मिले
      सुनें जो लौटे घर गये।

      साथी वे याद आते हैं।
      अभी सुबह ही बिछुड़ गये।

      इस मनहूस सफ़र में कुछ
      यहाँ रहे ना घर गये।

      जी है देखूँ फिर जाऊँ
      बिखरे जो सब सँवर गये।
            * दूसरे गांँव वाला।
  
                  | 🌒 |
               गंगेश गुंजन

           #उचितवक्ताडेस्क।



Sunday, May 16, 2021

कोरोना बनाम अतिथि देवता

             कोरोना और अतिथि देवो !

मेरे परम शुभेच्छु मित्र समाधान प्रसाद जी की चिन्ता भी नवोन्मेष कारी ही होती है। हरदम देश और समाज भक्ति से ओत-प्रोत नये अनुभव,अंदेशा और कार्रवाई वाली ऊँचे अभिप्राय से लदी चिन्ता। सो कुशल क्षेम के तुरत बाद आपने इस बार जो महा चिंता प्रगट की उस पर ज़रा आप भी ग़ौर फ़रमायें। बोले:

'कवि जी,

अभागा कोरोना कहीं यह तो नहीं माने बैठा कि भारत तो 'अतिथि देवो भव' का आदर्श मानने वाला देश है कभी मुँह खोल कर तो लौट जाने के लिए कहने वाला है नहीं,और  भगायेगा यह तो सोचा भी नहीं जा सकता सो यहीं जम जायें और इसी इत्मीनान में जम तो नहीं रहा है यहाँ ?

    तो संविधान संशोधन तक करने वाले भारत को नया भारत बनना है अगर तो अपने 'अतिथि देवो भव' वाले आदर्श में भी तनिक संशोधन नहीं करना चाहेगा ?'

अब आप भी सोचें समाधान बाबू की चिन्ता को ! 

                   गंगेश गुंजन

              #उचितवक्ताडेस्क।


Friday, May 14, 2021

सुख दुःख

        सुख काग़ज़ दु:ख पेपरवेट।
         अनुभव होता है कुछ लेट।
                        🏘️
                  गंगेश गुंजन
               #उचितवक्ताडेस्क।

Thursday, May 13, 2021

प्रार्थना

🌀। 🌀
                                *
                            प्रार्थना !
                                *
       अपनी-अपनी भाषा में हम लगातार प्रार्थना
       लिख रहे हैं।
       अश्रुपूरित श्रद्धांजलियाँ,शोक संताप
       लिख रहे हैं।
       दुनिया भर के क्लेश लिख रहे हैं
       निस्सहाय इनका भोगना लिख रहे हैं
       इसलिए,
       अंधकार,हताशा,भय और चिंता पर
       शुभकामनाएंँ लिख रहे हैं।
       समर्पित लोगों की निर्भय निष्काम
       सेवा-सहयोग का आह्वान लिख रहे हैं ।
       डॉक्टर, दवा,ऑक्सीजन एंबुलेंस लिख
       रहे हैं।
       ये सब जब लिखना ही पड़ रहा है तो
       प्रार्थना क्यों लिख रहै हैं ,
       किसकी?

                              *     

                           गंगेश गुंजन
                     #उचितवक्ताडेस्क।  
                           १४.०५.'२१.
                                  #

Tuesday, May 11, 2021

उलझा है सब

                 ||🌀|| 
            उलझा है सब !

         बहुत दूर तक जाना था
         बहुत दूर तक चलना था।

         पाँव थके थे पहले से
         और झटक कर बढ़ना था।

         उसको तो एतबार नहीं
         मुश्किल थी समझाना था।

        अस्ल भेद तो भूल आये
        जो बतला कर आना था।

         उलझा था सब कुछ कितना
        औ' तन्हा सुलझाना था।

         थक कर भूल गया हूंँ सब
         क्या कुछ ना ले आना था।

         उनका तो अंदाज़ा है
         इनको भी उलझाना था।

         ख़बर-घरों के कोहरों से
         कुछ तो छन कर आना था।

         अब इस मंज़र में गुंजन
         तुमको भी भरमाना था।
                     |🔥|
                 गंगेश गुंजन

Friday, May 7, 2021

मौसम

🌨️🌨️।          मौसम              ।🌨️🌨️

        सबसे अच्छा याद का मौसम
        उसके बाद बाद का मौसम।

        ज़रा नहीं पछताबा ना ग़म
        पाकर खो जाने का मौसम।

        फूल औ पत्ते शजर मुल्क के
        तारीखे आज़ाद का मौसम।

        माटी पानी हवाएँ क़ुदरत
        मेरे गांँव फ़सल का मौसम।

        आँगन में बरसात झमाझम
        काग़ज़ क़लम ख़तों का मौसम।

        ज़रा ज़रा सी बात में अनबन
        बिना  शर्त प्यार का मौसम ।

        कैसा ख़ौफ़नाक़ कुल मंज़र
        दो साला जहान का मौसम।

        लेकिन मौसम दो ही मौसम
        मिलने ना मिलने का मौसम।

        हर सू हासिल हो अवाम में
        अहले आज़ादी का मौसम।

        आख़िर दिल कहता है लेकिन
        इक उसके आने का मौसम।  
                     🍀
                गंगेश गुंजन

           #उचितवक्ताडेस्क।

Wednesday, May 5, 2021

तैरने आना और नहीं आने के बीच

जो तैरना जानते हैं वे क्या हर हाल में डूबने से बच ही जाते हैं ?
और जो तैरना नहीं जानते वे क्या हर हाल में डूब ही जाते हैं ?
अनुपात का कुछ अन्तर भले हो सकता है दोनों के परिणाम में।
                             । 🌀।                              

                         गंगेश गुंजन
                     #उचितवक्ताडेस्क।

Tuesday, May 4, 2021

.........मन करता है

||                    !🔥!                ||
           .....मन करता है

      न पढ़ने का मन करता है
      न लिखने का मन करता है।

      न खाने का मन करता है
      न पीने का मन करता है।

       न हँसने का मन करता है
       न रोने का मन करता है।

      न जगने का मन करता है
      न सोने का मन करता है।

      न रहने का मन करता है
      न जाने का मन करता है।

      न बोलने का मन करता है
      न बतियाने का मन करता है।

      न सुनने का मन करता है
      न गाने का मन करता है।

      न  जाने का मन करता है
      न बुलाने का मन करता है।

      न जीने का मन करता है
      न मरने का मन करता है।

      खाली इस कोरोना और
      बदहाल व्यवस्था को
      गरियाने का मन करता है।
           होलियाने का मन करता है।
                          ***
                    गंगेश गुंजन

                #उचितवक्ताडेस्क।
                     ०४ मई.'२१.

Sunday, May 2, 2021

वतन किन मुश्किलों में पड़ गया है। ग़ज़लनुमा

🍀!🍀          ग़ज़लनुमा          🍀!🍀

       वतन किन मुश्किलों से घिर गया है।
       हमारा  दिल  भी  थोड़ा  डर गया है।

       कुछ तो इतने महीन हैं मसले
       ध्यान अब तक नहीं उन पर गया है।

       दहलता है जिगर सब देख कर के
       सम्भल भी जाय लौटा, घर गया है।

       गाँव में लोग हैं व्याकुल कि जिनका
       कोई बच्चा अगर शहर गया है।

       बहुत साथी भी रुख़्सत हो गये हैं
       मगर इक आज है जो घर गया है।

       ज़हर की झील काली काँपती है
       वक़्त डगमग यहीं ' ठहर गया है।

       लोग कहते हैं और हालात बिगड़े
       वो मुत्मइन हैं कि सम्भल गया है।

                     गंगेश गुंजन

                #उचितवक्ताडेस्क।

मौसम वापस लौटेगा

🌨️ ⚡।                  ।⚡ 🌨️ 
  
       मौसम   वापस लौटेगा
       भूले से  विश्वास न कर।

       कोई  वचन  निभाएगा
       ऐसी कोई आस न कर।

       जीवन रख आम ऐ दोस्त
       इसको इतना ख़ास न कर।

       एकान्तों  में  घर  न   बना
       गांँव से दूर निवास न कर।

       मरना  ही  है  गर  तुझको
       यूँ  लावारिस लाश न कर।   

       बहुत पुराना है  सब कुछ
       फेंट-फाँट के ताश न कर। 

       भटके   हुए  डरे हैं  लोग
       सोच के मन हताश न कर।

       वोट  पर्व के वायदों  पर
       भूले से विश्वास न  कर।

       बकबक करने दे  उसको
       तू तो यूंँ बकवास ना कर।

       आया  नहीं   पत्र  उसका
       दिल अपना उदास ना कर।

       टूट   न   जाने  दे  सपना
      दिलकी ख़त्म प्यास ना कर।

       हुआ सफ़र फिर इक नाकाम
       मन गुंजन वनवास न कर।
                     ☘️!☘️
  
             #उचितवक्ताडेस्क।