कविता स्मृति में उत्तीर्ण होती है।
गंगेश गुंजन
#उचितवक्ताडेस्क।
कहीं प्रकृति की भी संयुक्त मोर्चा सरकार तो नहीं चल पड़ी है ? प्राकृतिक लोकतंत्र अल्पमत में तो नहीं आ गया है।
गंगेश गुंजन। #उचितवक्ताडेस्क।
अब दूर से दिख जाते हैं अफसोस के इलाक़े ज़ाहिर है उसी पग पर रुख़ मोड़ लेता हूं।
तज़ुर्बे तो बहुत रिश्तों के सफ़र में हुए लेकिन जो सो गये हैं उन्हें वहीं छोड़ देता हूं।
गंगेश गुंजन
#उचितवक्ताडेस्क।
ढब लोगों के बदल गये हैं।
मीठी वाणी बात करेंगे।
भीतर से आघात करेंगे।
ज़्यादातर दिल जले हुए हैं।
गंगेश गुंजन
#उचितवक्ताडेस्क।
लोकतंत्र को जिस दिन हिंसा का अहिंसक विकल्प मिल जाएगा उस दिन लोकतंत्र निष्कलंक हो जाएगा और सबजन आदर्श राज्य-व्यवस्था बन जाएगा।इसमें मुझे कोई संदेह नहीं।
गंगेश गुंजन।
#उचितवक्ताडेस्क।