Wednesday, December 29, 2021

अंधेरे उजाले और आदमी

.                   ।🍀।

रौशनी में खड़ा हो तो काले लिबास में भी आदमी साफ़-साफ़ दिखाई देता है।अंधेरे में हो तो सफे़द  साफ़ आदमी भी धूमिल या शायद ही दिखाई पड़ता है।

                     यह                             नेता और जनता के बीच की बात है।

                    🌓
         #उचितवक्ताडेस्क।

               गंगेश गुंजन


Monday, December 27, 2021

ठंढ और बरसात : तीन स्वतंत्र दो-पँतियाँ

🌧️       ठंढ और बरसात !

      दुःख देता है ये ठंढा मौसम
      पेड़ों को भी
      खड़े रहते हैं कि कोमल परिन्दे
      कहाँ जाएँगे।

      इक झीनी चादर में लावारिस
      औ शीतलहर
      रात भर रोये शजर आँसू टपके
      हैं पत्तों से।

      ग़म की बरसातें छातों से नहीं
      गुज़रती हैं
      और सबके पास होता है
      मुकम्मल घर कहाँ !

                २८दिसंबर,'२१.
               #उचितवक्ताडेस्क।

                    गंगेश गुंजन

वक़्त क़ब्रिस्तान है

 🌓      यह वक़्त क़ब्रिस्तान है।

     यह समय एक क़ब्रिस्तान है। हम
     सब इसी की क़ब्र में हैं। एक क़ब्र
     में मैं भी हूँ। और इस कोरोना काल मे         जो बाहर हैं वे महज़ क़ब्र के अगल-           बगल पनप गई दूब,खर-पतवार        

     वनस्पति जैसे हैं।

           #उचितवक्ताडेस्क।

                गंगेश गुंजन

Saturday, December 25, 2021

सुलूके खुरदुरापन आ गया है : ग़ज़ल नुमा

                    |🌵|
    सुलूके खुरदुरापन आ गया है
    बे ज़रूरी नयापन आ गया है।

    यों तो रहता है वो पटना में
    कहाँ से ये गयापन आ गया है।

    सिला वो दोस्ती में चाहता है
    य' कैसा परायापन आ गया है।

   अभी पिछले दिनों तक थी नहीं जो
    सियासी बेहयापन आ गया है।

    हो गये दूर जितने थे क़रीब अब
    इक अनाम अपनापन आ गया है।

    हो गई मुँह बोली क्या उनमें
    राब्ते में नयापन आ गया है।

    ख़ौफ़ के मंज़र से उबरे गुंजन
    ज़ुबांँ में इक खरापन आ गया है।
              ०९.१२.'२१.

              गंगेश गुंजन,

         #उचितवक्ताडेस्क।




Thursday, December 16, 2021

गंगा यमुना और राजनीति

गंगा-यमुना को पवित्र करने से पहले तो दलीय राजनीति का शुद्धिकरण ज़रूरी है।
जनता का योगदान अनुवर्ती पहल है।
                         ⚡
       #उचितवक्ताडेस्क। गंगेश गुंजन

Sunday, December 12, 2021

रोज़ मेरे घर के आगे से गुज़रता है। ग़ज़ल

                     🔥|
    रोज़ मेरे घर के आगे से गुज़रता
    है
    बच के हसरत की नज़र से इधर
    तकता है।

    ख़त्म है सब कुछ जहांँ वीरानगी
    हर ओर
    बिया बाँ को या ख़ुदा गुलज़ार
    कहता है।

    लोग कुछ कहते हैं कैसा वक़्त है
    और क्या
    एक कवि क्या सोचता क्या
    लिखा करता है।

    सियासत पे तो नहीं ही अपनों
    पर भी अब
    भरोसा रख कर कोई शायद ही
    चलता है।

    चैन से कुछ चुस्कियाँ लेते घरों में
    लोग
    सुकूँ से फ़िक्रे अवामी ज़िक्र
    चलता है।

    तस्करा बेहाल लोगों पर तो कम
    ही अब
    संसदों में मज़हबी तक़रार
    चलता है।

    ड्राइंग रूमों में तो बेशक़ गर्म हैं
    चर्चे
    रहवरों से कौन सड़कों पर
    उतरता है।

    कह रहा था कोई बाँधे पाँव में
    चक्के
    वो शहर दर शहर में बेज़ार
    फिरता है।

    ग़म नहीं गुंजन न घबराना कि
    ऐसा दौर
    मेरा गौआंँ शिवजिया तक सब
    समझता है।
                       *
    गंगेश गुंजन,१३.१२.'२१.

Friday, December 10, 2021

हम तो रहते जाएँगे हम प्यार... ग़ज़लनुमा

                    🌍

    हम तो रहते जायेंगे वो प्यार के
    बन्दे नहीं हैं
    जो बदल जाते हैं दु:ख में हम तो
    वो रस्ते नहीं हैं।

    एक बस्ती है मचलता मन इसे
    समझो न तन्हा
    साथ में देखो मेरे हमराह के मेले
    यहीं हैं।

    काफ़िले के ख़ून से सींचोगे
    कबतक ये मरुस्थल
    गाँव भर पनपे हैं बिरवे जो
    अकेले ही नहीं हैं।

    तुमने चिड़िया घर बसा के कर
    लिया हो जो कमाल
    हम तो हैं इनसान पिंजड़े में 
    कभी पलते नहीं हैं।

    रात की औक़ात पौ फटने से
    पहले तलक ही है
    और हम सूरज उगे तो शाम तक
    ढलते नहीं हैं।
                      *
                गंगेश गुंजन
[अपनी यह एक बहुत पुरानीरचना]

Monday, December 6, 2021

हुनर जो कहीं निभाना होता : ग़ज़ल नुमा

                    । |🌈|।
       हुनर जो भूलना कहीं होता। 

       भूलना निभाना नहीं होता।

      ख़ुशी का होता होगा गाना
      बिना दु:ख गाना नहीं होता।

      अग़र्चे सियासत में है तो हो
      दोस्ती में बहाना नहीं होता।

      वक़्त बदरंग लोग बेदिल हैं
      कहीं वो तराना नहीं होता।

      अगर बस्ती में ही मस्ती नहीं तो
      फ़िज़ा कुछ सुहाना नहीं होता।

      हरेक ग़म की है ज़ात अपनी
      कोई ग़म अजाना नहीं होता।

      साथ आओ हम मिलकर चीन्हें।
      एक गुंजन सयाना नहीं होता।
                        *
                 गंगेश गुंजन

           #उचितवक्ताडेस्क।

Thursday, December 2, 2021

...सराय में ठहरे हो उसूल भी समझो

                    |🛖|
     गाने में आकर सुख-दुख दोनों
     समान हैं।
     मन्दिर में जो भजन मस्जिदों में
     अजान हैं।
     जिस सराय में ठहरे हो उसूल
     भी समझो।
     शबो रोज़ इस क़िस्से में हम
     मेहमान हैं।
                       |⛺|
              #उचितवक्ताडेस्क।

                    गंगेश गुंजन