Thursday, July 25, 2024

ग़ज़लनुमा : होगी सहर उजाला होगा.

💥
       होगी सहर उजाला होगा 
   समय  जगाने वाला होगा।
 
      अपने भी घर होगा वो सब 
   सुबह सुबह मतवाला होगा।

       भूख लगे में रोटी चावल 
   का भर पूर निवाला होगा।

       महज़ धर्म की राजनीति पर  
   दूर नहीं दिन ताला होगा।

       गुंजन जी क्यों फ़िक्रमंद हों 
   दुःख का अब दीवाला होगा।
                     °°
               गंगेश गुंजन, 
                २७.५.’२४.

Wednesday, July 24, 2024

ग़ज़लनुमा : धुँधलका और बढ़ने दो ज़रा -सा

🌫️
     धुंधलका और  बढ़ने दो  ज़रा-सा
     मज़ा कुछ और बढ़ जाये मज़ा का।

     बहुत संकोच में लगता है दिनकर 
     महिन आँचल ओढ़े  कुहासा  का।

     सर्द से गर्म फिर ठंढी जुदाई
     बढ़ाए दर्द जिस्म-ओ-दिल का ख़ासा

     झाँकना यौं  दुबक  के सूरज का
     लगे बीमार को इक भरोसा-सा।

     एक मासूम हैरत आसमाँ पर
     दोपहर में सूरज है  दीया-सा।
                          °
     गंगेश गुंजन,०७.फ़रवरी,’२४.
         #उचितवक्ताडेस्क।

Sunday, July 21, 2024

ग़ज़लनुमा : कौन अपना दिखाई देता है

                  ❄️
  कौन अपना दिखाई देता है
  वही सपना दिखाई देता है।

  अभी अभी बैठा एक परिन्दा 
  डार कंँपना दिखाई देता है।

  छोड़ के जा रही है रेल कोई
  हाथ हिलना दिखाई देता है।

  भूल ही जाता माज़ी भी न क्यूँ
  कोई रोना सुनाई देता है।

  धूप से तप रही दुपहरी में 
  कौन जाता दिखाई देता है।
                  •
           गंगेश गुंजन 
             #उवडे.

Friday, July 19, 2024

ग़ज़लनुमा : रुआँसी मुस्कुराहट है

🌼              रुआंँसी मुस्कुराहट है !
     रुआंँसी मुस्कुराहट है
     कोइ अपशकुन आहट है।

     जमा हुए सब के सब मेहमान
     सबके सुल्तान की बुलाहट है।

     बाप की मैयत,जनाज़े की
     शादियों वाली सजावट है।

     महज़ चीजें नहीं,आदमी की
     ज़मीर में कहीं मिलावट है।

     असर उसूलों का हो कैसे 
     हुई जैसी इसमें गिरावट है।

     उनकी आवाज़ क्यूँ हुई ढीली
     इन्क़लाब में क्यूँ हकलाहट है।

     सभी उसूल तो हैं यों मुर्दा  
     और तेवर में गर्माहट है।
 
     कुछ हैं बीमार ही ज़्यादा बीमार
     डॉक्टर में भी घबराहट है।   
 
     जंग अंजामदेह हो ज़रूरी नहीं 
     अबके जीते में तिलमिलाहट है।
                          ❄️ 
                     गंगेश गुंजन 
                  #उचितवक्ताडे.

Thursday, July 18, 2024

एहतियात

💤💥               एहतियात  !
     
  एहतियातन अब छड़ी लेकर घूमने निकलता हूंँ लेकिन हर कदम मन में यह अंदेशा रहता है-कुत्ते के भय से आक्रान्त होकर अपनी सुरक्षा में मैं उसे इस भारी छड़ी से आघात ना कर डालूँ जिसका हत्था पीतल और पेंदी लोहे की है। 
क्योंकि ऐसा होना ना तो असंभव है और ना अस्वाभाविक।
   संचय और संग्रह भी आदमी कहने को तो भावी जीवन की सुरक्षा के एहतियात में ही आरम्भ करता है।
   क्या हो जाता है सो सभ्यता में युद्ध और शान्ति का इतिहास ही बतलाता है। एक सामाजिक व्यवस्था को वह कैसे और अहाँ तक ले जाता है ?
    एहतियात जरूरी और अच्छा है लेकिन ,
    एहतियात के साथ बरतने पर ही।
                           •• 
                      गंगेश गुंजन,
                   #उचितवक्ताडे.

Friday, July 12, 2024

दो पंतिया : तीन शे'र

                     °°
     बहर दुरुस्त बड़ा  मौजूं है 
     शायरी पस्त थकी हारी है।

     अजब सदी है बद्ज़ेह्नी तो
     चौदवीं इकिस्वीं प' भारी है।

     बिना ज़ेबर भी सुन्दर क़ाबिल 
     क्यूँकि लड़की सो बेचारी है।
                          •
                   गंगेश गुंजन  
                #उचितवक्ताडे.

Thursday, July 11, 2024

टूट-टूट रहे पुलों के बारे में

                        ⛈️
 हर रोज़ जिस सवाल से टकरा रहे थे हम 
 पाकर जवाब दोस्त का सिर थाम के बैठे।                             °° 
                    टूट रहे पुल !
 दिलचस्प है कि पुल का मज़ाक़ वे लोग भी उड़ा रहे हैं जो पुलों पर से पार होकर ही राजनीति से होते हुए कार्पोरेटी एन.जी. ओ.,लेकर साहित्य पत्रकारिता तक में इतने बड़े हुए हैं।
            बहुत ज़रूरी नोट कि :
विराट पुल निर्माण-घोटाले की तो भर्त्सना करता हूँ मैं।
                  गंगेश गुंजन 
                #उचितवक्ताडे.