Tuesday, April 29, 2025

दो पँतिया :

सोचा तो था बहुत पहले  तय भी कर लिया है। 
इस अजनबी सियासत पर कुछ भी नहीं लिखूंँगा।                                                                     ।|📕|।                                               गंगेश गुंजन 
                  #उचितवक्ताडे.

Sunday, April 27, 2025

शे'र : वह जमाने से डर गया होगा

      वह  ज़माने  से  डर गया  होगा
      लौट कर अपने घर गया होगा।

                  गंगेश गुंजन 
                #उचितवक्ताडे.

Wednesday, April 23, 2025

अभी जो हाल है मन का

इस समय तो पहलगाम विभीषिका पर कोई काल्पनिक तथ्य भी लिख-कह रह हैं और यदि सकारात्मक और पूरी मनुष्यता के पक्ष में हों तो बहुत सुकून मिलता है।बहुत सुकून मिलता है। 

                    गंगेश गुंजन,
               #उचितवक्ताडेस्क। 

एहि आपदा काल मे

🔥🔥
        रक्त रंजित ऐ समय मे बजेबै
 ककरो अगर,स्वजन संगी दोस्त टा आएत कोनहुंँ पार्टीक लोक नै। हृदय मे बारूद,बम सन गंध पसरल अछि एखन जँ कोनहुँ क्षण फूटि जाय तँ मनुक्खक से दोष कोन !                                                        🔥🔥
                                   गंगेश गुंजन 
                          #उचितवक्ताडेस्क।

Friday, April 18, 2025

रौशनी और रास्ता दिखलाइए गुरु जी,

🌜🌒🌛  
           गहरी दुविधा द्वन्द्व में जी रहा हूँ गुरु जी,
  ख़ास कर बुद्धिजीवियों को पढ़ते हुए अधिकतर यह महसूस होता है जैसे तमाम दुनिया के डर,अपराध,अंधकार अन्याय और वजूद पर ख़तरे भारत में ही आ कर बस गये हैं। यहांँ को छोड़ कर बाकी सारी दुनियामें पृथ्वी भर -अमेरिका,इंग्लैंड रूस,फ्रांस,चीन आदि देश परम सुख-शांतिमय हैं अतःआनन्द मना रहे हैं। 
   सच समाचार को जानने-समझने की दृष्टि और रौशनी दीजिए,रास्ता दिखलाइए,गुरु जी।
                                  |🔥|                                                गंगेश गुंजन 
                        #उचितवक्ताडेस्क।

Thursday, April 17, 2025

ग़ज़लनुमा : मुझे अब कौन-सा मालिकोमु़ख़्तार बनना था

                     🌤️
  मुझे अब कौन-सा मा’लिक-ओ-
 मुख़्तार बनना था
  सियासत में नहीं था कि कोई सरकार
  बनना था

  इनायत सी न जाने ज़िन्दगी किसने
 अता कर दी 
  नहीं लगता अगर्चे दिल मगर स्वीकार
  करना था

  बहुत था ख़ास कि हम आ गए थे फिर
  उसी बस्ती 
  हुए इनसान थे अब क्या मुझे अवतार
  बनना था

  नहीं छोड़ा मुझे जीना था आख़िर तक
  सुलगने भर
  अबर जो उठके आना था तो बस
  अंगार होना था 

  रिवायत में हुआ ही चाहती थी ख़ास
  मक़्ते की
  ग़ज़ल नाराज़ कर अशआर क्या 
  बाज़ार बनना था
                              । ▪️। 
                           गंगेश गुंजन 
                         #उचितवक्ताडे.

Saturday, April 12, 2025

कवि विमल कुमार का एकल काव्यपाठ

                     🌿🌿। 
  कल सन्ध्या सुरजीत भवन में आयोजित प्रिय कवि विमल कुमार का एकल काव्यपाठ सुनना दुर्लभ संयोग की बहुत विशेष ख़ुशी थी।
   ऐसे नीरस किन्तु भयावह चिन्ता-देश -काल में अब 'एकल काव्यपाठ' का सिलसिला ही अधिक सार्थक अतः स्वागत योग्य है। एक बहुत लम्बे समय के बाद यह अनुभव वास्तव में कविता मय सहज आनन्द का बीता।बधाई विमल जी।   
    और बहुत प्रशंसा के योग्य,आयोजन के संयोजक प्रियकवि संजय कुंदन जी।
                            🌾🌾
               #उचितवक्ताडेस्क प्रस्तुति।