Wednesday, October 30, 2024

इस दीपावली पर : एक दू पँतिया

     जितने तेल-दीप-बाती से 
     एक दिवाली भर मनती है,
     उतने से तो और एक संसार 
     उजाला हो सकता है !
                  शुभ दीपावली !
                         ।🔥।
                     गंगेश गुंजन 
                #उचितवक्ताडेस्क।

Sunday, October 27, 2024

कविता की बुद्धिजीविता...

           कविता की बुद्धिजीविता 
                        ❄️
  कविता के कुछ दु:ख,कवि के दिमाग़ी होते हैं,काल्पनिक और लगभग कृत्रिम। 
लेकिन इसी बात का पाठक को आभास भी नहीं होता।असल कविता में इस काल्पनिकता को स्वाभाविक,विश्वसनीय और सहज साधारण बना सकने के अनुभूतिप्रवण कौशल में ही कवि,कवि होता है।
    बरजोरी की कविता को पढ़ने-सुनने पर सामान्य पाठक को सीधे महसूस हो जाता है।सो चाहे विचारों से फड़कती हुई नयी कविता की शक्ल में हो अथवा  गीत,ग़जल के साँच-ढांँचे में। इसके लिए बुद्धजीवी होना कोई ज़रूरी नहीं।
                       🌜🌛
                    गंगेश गुंजन 
                  #उचितवक्ताडे.

Tuesday, October 22, 2024

अतीत से प्यार

अतीत से बहुत प्यार है तो उसे अपना सादा कैनवास बनाइए ! वर्तमान पर भविष्य रचिये।  
                            🛖
                      गंगेश गुंजन         
                   #उचितवक्ताडे.

Monday, October 14, 2024

मेरे समकालीन रचनाकारो !

🪻🪻।       मेरे समकालीन रचनाकारो !          
                            •
  मेरे कुछ समकालीन और प्रतिभाशाली लेखक-कवि का वर्तमान लेखन इतना विरक्त करता है कि कई दफ़े दिल करता है उन्हें कह दूँ कि अब वे अपने प्राप्त साहित्यिक यश की रक्षा करें और ‘कुछ भी’ के बल पर यों ही ‘कुछ भी’ लिखना- कहना बन्द कर देना चाहिए। कारण कि जिनकी बोलती,नाचती-गाती और कहती हुई प्रासंगिक रचनाएंँ पढ़ता आया हूँ उन्हीं की कलम से ऐसी उथली राजनीति, छिछला संकुचित धर्म-कर्म बोध और विकलांग जातीय ग्रंथि के नाम पर ऐसी ऐसी गूंगी,लंगड़ी और कुरूप लिखते जाना और सो दिनचर्या की तरह ताबरतोड़ फेसबुक समेत ऐसे तमाम माध्यमों पर लगभग रोज़ चिपकाते चलना बेचैन और विरक्त करता रहता है।फेसबुक इस अर्थ में बेहद पकाऊ हो गया है।
    उन्हें कह ही नहीं पाता मैं। अब आज अभी यह शैली अपनाई है और अनुरोध कर रहा हूँ ‘विश्राम लो मित्र! हुआ। बहुत हुआ,अब विश्राम ही लो!’   
     यदि मेरे वैसे रचनाकार मित्र भी इसी तरह मुझे कहें तो मैं इसपर आदर पूर्वक विचार करूँगा,आत्मालोचन करूँगा और सप्रसंग कर गुज़रना ही चाहूंँगा।
                      🌵😔🌵                              
                      गंगेश गुंजन                                        #उचितवक्ताडे.

दो : दोपंतिया

                       |🌫️|

लौटना बढ़ने से आगे बहुत था आसान  लेकिन                                            बन्द गलियों के शहर में लौट कर हम    कहाँ जाते।                                                                   (२).                     उम्मीदकी दीवार का प्लास्टर उतर रहा अब झलकने लग पड़े कंकाल ईंटों की दरारों से।

                   गंगेश गुंजन                                         #उचितवक्ताडे.                              (फेसबुक पर १३.१०.'२४ 

Friday, September 20, 2024

दो पँतिया :

कोई ये आख़िरी नहीं है ग़म क्या कीजै
बचा है इश्क़ तो जनाज़े भी और उठेंगे।

                  गंगेश गुंजन 
            #उचितवक्ताडेस्क।

Monday, September 16, 2024

'....नाराज़ हैं आसानियाँ ! ' (दो पँतिया)

जब से मेरी हो गई है
 मुश्किलों से दोस्ती, 
      पूछिए मत किस क़दर नाराज़ हैं 
           आसानियाँ !
                          🌼
                     गंगेश गुंजन
                #उचितवक्ताडेस्क।