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सुख की कुछ मत पूछा कर
दु:ख भर मुझसे साझा कर।
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पूरा जाम मुझे मत दे
इसमें आधा-आधा कर।
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क्यों चाहे दिल तू मुझ से
पागल प्रेम ज़ियादा कर।
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राजनीति से बढ़-चढ़ कर
ज़ेहन कहे तमाशा कर।
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एक पराजय से बैठा
जय के पीछे भागा कर।
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है तो दे माँगे उसको
लेकिन तू मत माँगा कर।
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सोये हैं थक कर बाबा
नागा अब तू जागा कर।
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गंगेश गुंजन #उचितवक्ताडेस्क।
Friday, April 12, 2024
ग़ज़ल नुमा : सुख की कुछ मत पूछा कर
Sunday, April 7, 2024
गिरना - उठना
Friday, March 29, 2024
अर्जेंट केजरीवाल यूट्यूब एंकर
Thursday, March 28, 2024
ग़ज़लनुमा सुबह सी आई है मुश्किल...
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सुबह-सी आयी है मुश्किल शाम जैसी चल गई
कुल मिलाकर ज़िन्दगी की रात यूँ
ही ढल गई।
चाँदनी और अमावस-से फ़ैसले
जिसने लिए
कुल मिलाकर सबको उसकी
आरज़ू ही छल गई।
बहुत छोटा ही सा घर था मगर
उसमें देखिए
कुल मिलाकर आठ दशकों
ज़िन्दगानी पल गई।
और दिन होता तो हम भी भूल ही
जाते मगर
कुल मिलाकर आज की तन्हाई
लेकिन खल गई।
हौसले तो पस्त थे किसने भी यह
सोचा था कि
कुल मिलाकर साँस आख़िर जा
रही समहल गई।
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#उचितवक्ताडेस्क।
Wednesday, March 27, 2024
सर्वोच्चता -ग्रन्थि !
🌈 सर्वोच्चता-ग्रंथि !
समाज के सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति को अपना होना कितना श्रेष्ठ होना चाहिए ? जबतक मनुष्य का यह मन मिज़ाज नहीं पहचाना जाता तब तक कोई भी समाज-व्यवस्था प्रति द्वन्द्विता मुक्त अतः निष्पक्ष नहीं बन सकती है। चाहे कोई भी अंश या पूर्ण पक्षधर सिद्धांत और व्यवहार हो,किसी चेतन जाग्रत मानव समाज में मुकम्मल और सर्वमान्य हो ही नहीं सकता। हरेक प्रत्यक्ष या परोक्ष संघर्ष यहीं पर है।
सर्वश्रेष्ठता की अदम्य चाहत ही इच्छित मानवता के विकासकी सीमा है। और सो परम्परा की भाषा में बड़ी मायावी है।
📓 गंगेश गुंजन #उचितवक्ताडेस्क।
दो पंँतिया
बहुत तपिश में लम्बा रस्ता दूर तलक छाया न जल,
बेपनाह प्यास में आये आँसू और पसीना काम।
गंगेश गुंजन #उचितवक्ताडेस्क।
पाखण्ड
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पाखण्ड !
चरित्र का सर्वोच्च अभिनय है- पाखण्ड।जीवन के नाटक में यह बुद्धि-चतुर व्यक्ति से ही सम्भव है। पाखण्ड सामूहिक शायद होता है।
°° गंगेश गुंजन
#उचितवक्ताडेस्क।