Thursday, May 28, 2020

...लोहू आंखों से उतरा ना होता ‌!

पानी होकर सूख गया लगता है या हो    चुका सफ़ेद।                                          वरना इस मंज़र पर आंखों से लोहू उतरा      ना होता !

                    गंगेश गुंजन

                 [उचितवक्ता डेस्क]

Tuesday, May 26, 2020

बाबा से गुनाह हुआ यह ?

 बाबा से गुनाह हुआ यह ?

                ⚡

अगर कीर्त्ति का फल चखना है 

कलाकार ने फिर-फिर सोचा, 

…….

          आलोचक को ख़ुश रखना है। 

                    - नागार्जुन,                                              ! 🙏!

वर्तमान में महज़ एक काव्य-विनोद भर लगता हुआ यह पद,भविष्य में कभी कवि -नागार्जुन का,गुनाह तो नहीं दर्ज़ होगा ?

               -गंगेश गुंजन

            [उचितवक्ता डेस्क]

ग़ज़लनुमा

            ।। ग़ज़लनुमा ।।

गाँव अब भी समझता है शहर को    खुशहाल है।                                      अब भी जब कि शहर आकर गाँव खुद बेहाल है।                 

गाँव हो या शहर हो या हो भले कुछ भी कहीं ।                                                धर्म भाषा जाति  मार्गी  सुलगता  सवाल  है। 

बहुत उन्नत बहुत सक्षम विश्व के हैं गुरु हम कैसा फूहड़ कितना डगमग क़ौम का हाल है।                                                  

हाथ में सबके कोई जम्हूरिअत का तमंचा शांति गायन कर रहे बुद्धिजीवी,कमाल है।

हाथ में  सत्ता सरोकारों के कुछ अब है नहीं जो है इक ना इक सियासी सोच का जंजाल है।                                              

सल्तनत बेचारगी  में  सैर करती टहलती    टी वी चैनल ख़बर में यह मुल्क मालामाल है।   

अपने दिल का दु:ख जो बोला गया मुझसे ज़रा                                                कहे साथी ‘ ये तो अब अपना-अपना ख़याल है।’                         *                

                      गंगेश गुंजन

                 [उचितवक्ता डेस्क]

Saturday, May 23, 2020

दर्द का रिश्ता


                ग़ज़लनुमा

                    🌿

दर्द  का रिश्ता   गहरा है                        दुःख का इस पर पहरा है

धोखा साँप की आँखों का                सुन्दर   बड़ा  सुनहरा है

देते  हो   आवाज़   किसे                    छाछठ साल का बहरा है

जीवन का भी पाठ अजब                  सबसे कठिन  ककहरा  है

वो अब क्यूँ कर आएगा                    संसद   में  जा  ठहरा है

ताप  बहुत है  मौसम में                        टिन की छत का कमरा है।

               🍁  -गंगेश गुंजन।


                 🍁  -गंगेश गुंजन।

Friday, May 22, 2020

...मन परेशान है

स्वर्ग लिखे तो क़लम हिन्दू ,लिख के जन्नत मुसलमान है।                                        देख-सोचकर बेहद चिंतित,विचलित ये मन परेशान है।                                          

                       गंगेश गुंजन

                   [उचितवक्ता डेस्क]

Wednesday, May 20, 2020

एक डर और ईजाद ।

     डर की तर्कीब में एक और ईजाद।             अब  कोरोना  से  डरायेंगे  तुमको।    

                    गंगेश गुंजन

                [उचितवक्ता डेस्क ]

Monday, May 18, 2020

कविता आवारा

आवारा है कविता। इसीलिए आजतक उसे अपना घर नहीं हुआ।भटकती रहती है।  

                   गंगेश गुंजन

              [उचितवक्ता डेस्क]

Sunday, May 17, 2020

कोरोना काल में कबूतरों का कारवां

अभी कहां जाते होंगे,एक साथ सैकड़ों भूखे -प्यासे कबूतर रोज़ ?आकर चैन से चुग लेते हैं,चबूतरे पर बिखेरे गए अनाज के अपने दाने और पी लेते हैं माटी के बर्तन में खास अपने लिए रखा हुआ ताजा जल ?        होंगे क्या छाता लगाये,या दरख़्त के नीचे चौके की रखबाली में रसोइये की तरह खड़ा चौकन्ने इन्सान ?                           

दिल्ली तरफ एक्सप्रेस मार्ग नोएडा का वह तिमुहानी भी जहां से,बायें रास्ता अट्टाबाज़ार चला जाता है यहां से आगे खेल खेल में सहेली की तरह टोल रोड को बायें धकेलती हुई सीधे भाग जाती है,अक्षरधाम,उससे और आगे...

त्रिमुहानी के बायें फूटपाथ पर अभी क्या, होता है वह इंतज़ाम ? बिखेरे जा रहे हैं अनाज, दाने, माटी बर्तन में पानी?              गुजरते हैं उधर होकर कबूतरों के कारवां ?

दिल्ली में, इनके लिए भी वैसे रैन बसेरे बनाए हैं क्या दिल्ली ने ?                          उत्तर प्रदेश ने यहां नोएडा में इनके लिए भी जनता निवास !

गंगेश गुंजन

  •            [उचितवक्ता डेस्क]


Thursday, May 14, 2020

ज्ञान की यात्रा

ज्ञान आता अवश्य है मनुष्य की इच्छा-उत्सुकता की गोद में लेकिन पलता है  उसके साहस की पीठ रीढ़-पर। 

                 गंगेश गुंजन

            [उचितवक्ता डेस्क]

Sunday, May 10, 2020

प्रेम ही कोरोना भी परास्त करेगा !

प्रेम ही कोरोना भी परास्त करेगा !

चिकित्सा ज्ञान,डॉक्टर-नर्स, दवा-सेवा तो प्राथमिक हैं और ये सब अपनी समस्त योग्यता-क्षमता से ये दिन-रात लगे हुए हैं,जगे हुए समर्पित हैं। उन्हें नमस्कार !    

लेकिन इस उद्दण्ड विकराल कोरोना को भी,जड़ से उखाड़ फेंकेंगे हमारे समाज के सह अस्तित्व की रक्षाका जन सामान्य बोध, आपसी स्नेह-सहयोग की सहृदय पुरानी परम्परा और यह समझ ही। 

आखिर इस विश्व शत्रु को भी आदमी से आदमी का प्रेम ही परास्त करेगा। देख लीजिएगा ।

                       गंगेश गुंजन

                   [उचितवक्ता डेस्क]

मां और पेड़

                   🌳🌳

बड़ा है वृक्ष !

कड़कती लू-धूप में झुलसता हुआ

खड़ा रहता है। 

बटोही को शीतल छाँव देता रहता है।  

बड़ा है वृक्ष ! 

यह विशाल वृक्ष,अपनी 

छाया से उठ कर जाते हुए उसी राहगीर को 

साथ ले जाने/ थोड़ी छाँह भी दे देता है

अपनी क्या ? 

दे ही देती है ग़रीब से ग़रीब माँ, 

सफ़र में निकलते समय बेटे की थैली में

रास्ते के लिए बटखर्चा-रोटी, जैसे।

                   गंगेश गुंजन

               [उचितवक्ता डेस्क]

Friday, May 8, 2020

...यह स्वर्णिम आभा !

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हृदय में यूं नहीं आई है स्वर्णिम आभा। जला है दिल बहुत कांटे चुभे हैं पैरों में।

                  गंगेश गुंजन                    

              [उचितवक्ता डेस्क]                

                       🌺

Sunday, May 3, 2020

पारिवारिक नाटक

रंगमंच नाटक में पूर्वाभ्यास एक सीमा तक अनिवार्य है,जबकि परिवार का नाटक बिना रिहर्सल मज़े में सुचारु ढंग से मंचित होता रहता है।

गंगेश गुंजन।

[उचितवक्ता डेस्क]