Monday, March 30, 2020

शब्द की आयु

                  शब्द की आयु

लिखें किसी का नाम लहू से या रोशनाई से।सोख लेताहै समय दोस्त-दुश्मन दोनोें शब्द।       

                   गंगेश गुंजन                

                [उचितवक्ता डेस्क] 

Sunday, March 29, 2020

उम्मीद

ध्रुवतारा की अनश्वर आभा और अम्लान सुन्दरता एकमात्र 'उम्मीद' शब्द में है। 

                    गंगेश गुंजन

                 [उचितवक्ता डेस्क]

। डर ।

                       । डर ।

डर मनुष्य को केवल डराता ही नहीं है,      निडर भी बनाता है।                            

      गंगेश गुंजन [उचितवक्ता डेस्क]

Saturday, March 28, 2020

प्रणाम शहर !

                   प्रणाम शहर !

मैं देखता हूं 

बनाए हुए बियाबान को चीरती हुई 

चलने लायक पगडंडी तैयार हो चली है।

लोग जो पैदल चलने को मजबूर,

बहुत दूर-दूर तक जाने वाले हैं,

उस पर चलने लगे हैं ।

पगडंडी को जीवन,गति और निश्चित मंजिल से जोड़ने लगे हैं। 

समानांतर राजपथ पर चलते हुए नंगी देह,पैर और ललाट वाले

मुलायम,मरती हुई ममता और एंड़ी-पैरों वाले बच्चे,

औरतें और मर्द लोग सिर पर उगलती हुए सूरजी सामंत की धूप-चाबुकों की दुर्घटनाओं के शिकार,कम होने लगे हैं। 

राजपथ के खिलाफ़ लोग पगडंडी तैयार कर इक्के-दुक्के काफिलों में चलने लगे हैं । 

राह के ख़तरों को ख़त्म करने के लिए ज़रूरी

पगडंडी पर साथ-साथ बस्ती की तरफ जाने का मरम कुछ- कुछ समझने लगे हैं।  


हथेली पर खैनी मलने की सुगबुगाहट पर,

अगले पड़ाव पर सुस्ताने के पहले तक की पूरी यात्रा में किसी 

सख्त नुकीले मारुक इरादों की तरह तलहथी और मस्तिष्क में संभलकर औजार की तरह तुलने लगे हैं । 

घनघोर अंधेरे खूंखार जानवरों से भरे जंगल में घिरे किसी कबीले की तरह, 

जिनकी चौकसी के उजाले पूरे जंगल और जानवरों के घातक इरादे देखार करते हैं 

कबीले के बच्चे,औरतें और मर्द आमने-सामने अड़े रहते हैं ।

शहर सलाम, कि मैंने देखा है,

जिस शहर के औसत लोगों के लिए अनाज तो दूर 

पानी तक मुहैया कराने की उसने कोई जिम्मेदारी नहीं ली कभी,

कितने जतन और अपनी प्यासों की कटौती कर-कर के लोगों ने,

कुछ ठूंठों को सींचा लगातार ! 

और जहां-तहां कुछ घने हरे फल वाले बिरवों को रोपना शुरू किया और

उन्हें पटाते रहे लगातार। पटाते रहे लगातार। अपनी प्यास काट-काट कर । 

क्योंकि उनके सामने लाल-लाल मुलायम तलवों, हथेलियों और 

समूची धरती,आकाश को प्रतिबिंबित करते हुए 

मासूम आंखों वाले बच्चे थे,वर्तमान से भविष्य तक का सीधा रिश्ता था ।

अब तो  बच्चे भी सीख गए थे पेड़ सींचना। 

पेड़ ! हरे भरे पेड़ कुछ और हरे,घने और बढ़न्तू शाखों‌ में 

रोज-रोज कुछ और भरने कुछ और भरने और हवाओं में झूमने लगे हैं

कड़ी धूप के खिलाफ और प्रतिरोध करने लगे हैं। 

कहीं-कहीं फूल फल भी देने लगे हैं। 


साफा बांधे दूर-दूर तक राजपथ के सघन पंक्तिबद्ध, झुके हुए 

बूढ़े दरवानों के खिलाफ पगडंडी के अगल-बगल ये नए पेड़ कवायद की मुद्रा में,कभी नए समूह गान गाते, कदम कदम बढ़ते किशोरों की तरह तनने लगे हैं और

 राजपथ के खिलाफ ख़ूब संभल संभल कर चलने लगे हैं 

पगडंडी तनिक और निरापद कुछ और यात्रियों से चालू रहने लगी है और 

वृक्ष छायादार शीतल आश्रय की तरह राहगीरों के लिए धूप से लड़ने लगे हैं। 

धीरे-धीरे राजपथ के बूढ़े झुके पेड़ वाले कंधों पर फुदकते-उड़ते हुए,

पर कटे ग़ुलाम पक्षी बेचैनी से इधर-उधर उचकने लगे हैं। 

पगडंडी के पेड़ों,डालियों की छाया की स्वतंत्रता और स्वाद समझने लगे हैं। 

   शहर सलाम ! कि 

पेड़ अब ख़ूब समझदार होने लगे हैं। 

लेकिन अजब है कि तब भी मेरे कुछ बुद्धिजीवी दोस्त 

मेरी इस कविता को प्रदूषण के खिलाफ वन महोत्सव का 

एक प्रचारात्मक उपक्रम कहकर बिदकने लगे हैं। 

अपनी समझदारी में सुरक्षित भाव से सिमटने लगे हैं। 

    शहर सलाम कि मेरे छोटे भाई 

राजपथ के खिलाफ पगडंडी की जरूरत समझने लगे हैं 

और एक दूसरे से कहने लगे हैं। 

शहर सलाम ! 

मेरे छोटे भाइयों में मिलेंगे तुम्हें मेरे ख़त,मेरा मौजूदा पता,मेरा काम। गाँव को जोड़ता हुआ,

किसी एक शरीर में अनगिनत नसों की तरह-

एक रहे आम।          

शहर सलाम ! 

                                    🌳🌳     

                                 गंगेश गुंजन

 18 मई,1982 ई. भागलपुर।

पावन तिहार संतान।

संतान अपन मायक पावनि-तिहार होइत अछि आ ताहि पावनि-तिहारक ओरिआओन थिकीह-माय।

                    गंगेश गुंजन 

               [उचितवक्ता डेस्क]

Friday, March 27, 2020

ज़िन्दगी की वफ़ादारी

गले भी लगा रखा,उम्र भर लड़ती भी रह गयी।                                            निभाई ज़िन्दगी ने अजब ही मुझसे  वफ़ादारी।              🦚

       गंगेश गुंजन [उचितवक्ता डेस्क]

🌺 कोरोना बुलेटिन 🌺

                  २७मार्च,२०२०.

आज विश्व रंगमंच दिवस पर विशेष  भेंट-दो पात्रीय संवाद-नाट्य:

                  दृश्य:एक मात्र।

[चारों ओर से बंद ड्राइंग रूम में बैठे आमने सामने दो लोग-बेचैन बुज़ुर्ग और बेफ़िक्र युवक।दादा-पोता ]

*

दादा : (बहुत व्याकुलता से खीझ और गुस्से से) :    

         पता नहीं यह अभागा कब जायेगा यहां से।

पोता : जिस्म का फोड़ा नहीं ना है दादू कि एक-दो 

         बारी मरहम लगा देने से चला जाये।आप क्यों     

         परेशान क्यों हो रहे हैं? चला जाएगा न।

दादा : अरे मगर कब जाएगा ? चला जाएगा।

         (और भी ज़्यादा ग़ुस्साते और ख़ीझते) । 

पोता: इम्पोर्टेड बीमारी है दादू। जानते ही हो। वीसा    

         ख़त्म होते ही चला जाएगा।(इत्मीनान से 

         मुस्कुराते हुए )...और आपके ज़माने में वो 

         एक गाना बड़ा मशहूर हुआ था न ?

दादा: (अनमने, उदासीन भाव से) कौन-सा गाना ?          

पोता : जाएगा -आ-आ जाएगा -आ-आ, जाएगा 

         जाने वाला,जाएगा-आ-आ

दादा : अरे वह आयेगा आयेगा था। जायेगा जायेगा 

         नहीं...(तनिक सहज होते हुए गाना सही 

         किया तो पोते ने मुस्कराते हुए कहा-)

पोता: हां दादू। मगर अब आपका आयेगा वाला   

         सिक्वेंस बदल गया। यह तो जाएगा-जाएगा   

         वाला है।

(और काल्पनिक गिटार छेड़ता हुआ बड़ी अदा से तरन्नुम में गाने लगता है-जाएगा जायेगा जायेगा जाने वाला जायेगा।

दादा: बहुत शैतान हो गया है तू...रुक।( वह थप्पड़ दिखा कर उसकी ओर लपकने लगते हैं और

गाते-गाते ही पोता ड्राइंगरूम का पर्दा समेटने लगता है। सामने बाल्कनी दीखने लगता है। सचमुच में गिटार की कोई मीठी धुन सुनाई पड़ती है।)

                   🌿🌳🌿


🦚उचितवक्ता डेस्क प्रस्तुति।🦚

     


कोरोना बुलेटिन

जिस्म का फोड़ा नहीं है कि मरहम से चला जायेगा। इम्पोर्टेड बीमारी है जाने में थोड़ा वक्त तो लेगा।               

        गंगेश गुंजन [उचितवक्ता डेस्क]

Wednesday, March 25, 2020

दु:ख की काया

दुःख की काया आलसी,सुस्त और भद्दी होती है। सुख का तन तन्वंगी, फुर्तीला और सुन्दर होता है। दुःख जहाँ आएगा वहां से उठने का नाम ही नहीं लेगा। सुख कभी आकर बैठेगा भी तो वहाँ से चल देने की जल्दी में रहेगा। 

                   गंगेश गुंजन 

               [उचितवक्ता डेस्क] 

Tuesday, March 24, 2020

ज़रा यक़ीन रखें

बहुत बेताब न हों सब्र और यक़ीन रखें ।    नया है रोग ज़रा वक़्तल लगता है लोगो।

                       गंगेश गुंजन 

                   [उचितवक्ता डेस्क]

कोरोना बुलेटिन में 'भय'

।  भय ।

सभी भय में चुनौती नहीं होती। चुनौती से भरा हुआ भय इंसान को फौरी उपायों के आविष्कार की सामर्थ्य देता है जिस उपाय से समाज पर आये वर्तमान संकट का सामना किया जाता है तथा मनुष्य के भविष्य का मार्ग विपदा मुक्त और प्रशस्त बनता है।

                        गंगेश गुंजन                  

                    [उचितवक्ता डेस्क]

Sunday, March 22, 2020

।। काले कोरोना का शुक्लपक्ष।।

    *काले कोरोना का शुक्ल पक्ष *
दुनिया भर में अलग-थलग बिखरी पड़ी मानवीय करुणा को 'कोरोना' ने,आज वैश्विक करुणा में एक सूत्र कर दिया है।
                       🌒
                 -गंगेश गुंजन                      
         उचितवक्ता डेस्क २३.३.'२०.

Friday, March 20, 2020

काव्य मे कबीर-तत्त्व

         काव्य मे कबीर-तत्त्व

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जाहि काव्य मे जतेक कबीर तत्त्व अभिव्यंजित होइत अछि,समाज जीवन मे ओ कवि ओतेबे कालजयी होइत छथि। हमरा लगैए जे ई तत्त्व रहैत तं छनि सभ कवि मे मुदा एके रंग प्रबल प्रतिबद्ध नहि। तें संबंधित कविक काव्य-आयु सेहो रचना मे अपना-अपना कबीर तत्वक निर्वाहक गुणक अनुपाते में रहैत छनि।                             यद्यपि ई कविताक कोनो नियम नहि भेल।

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                     गंगेश गुंजन                                      [उउचितवक्ता डेस्क]

Wednesday, March 18, 2020

मृत्यु !

                          🌀

मृत्यु कुकूर जकां भूकि क' नहिं हबकै छैक।चिल्होरि जकां अनचोखे चांगुर में ल' क' उड़ि जाइत छैक।                              

                      गंगेश गुंजन 

                  [उचितवक्ता डेस्क]

Monday, March 9, 2020

मातृशोकक रिहर्सल !

       । मातृशोकक रिहर्सल।

बैसले-बैसल एक टा नवोदित राजनेता के फेसबुक पर अकस्मात हिन्दी अंग्रेज़ी मैथिली मे दनादन मातृशोकक संदेश आब' लगलनि। पढ़लनि -...परम पुण्यात्मा माता जीक निधनक समाचार पढ़ि क' हमर हृदय विदीर्ण भ' गेल। ओ परम पुण्यात्मा छलीह। नमन !

… तत्काल तं हुनका एकर अंदाजे ने लगलनि। ओ साकांक्ष भेलाह।एना भ' किएक रहल अछि...?कि तावते मे नानी गाम सं फोन अयलनि- 

-पीसी मां के ई कोना भ' गेलनि ? दिल्ली मे एम्स सन अस्पताल रहैत पर्यंत अहां हुनकर इलाज नहि करा सकलिअनि ! 

हुनका यावत ओ किछु कहथिन तावत ओम्हर सं कहि चुकलथिन।मन उद्विग्न छलनिहें अओर तामस उठि गेलनि। जोर सं कहलथिन-                                        'अरे की कहि रहल छी अहां ककर इलाज?'

-अर्थात् शंभू झा ? अपने अहां फेसबुक पर समाचारो लिखलियैक अछि आ अपने…

-रुकू हम फोन करै छी' । कहैत ममियौतक फोन कटलनि आ अपन फेसबुक आरंभ पृष्ठ ‌खोललनि। पहिले वाक्य पढ़ि क' जोरसं अपन कप्पार पिटलनि -हे दैव ! कप्पार नीक जकां ठोकिते रहथि कि चेन्नई सं एक टा पितयौतक शोकाकुल फ़ोन अयलनि-'हेलो ! 

-शंभू छी ?'

-'परसूए दिल्ली गेलीहय आ अचानक की भ' गेलनि काकी के?'                          -अरे ककरो किच्छु ने भेलैए राजकांत भाय…! पहिले हमर बात तं सुनू.. हौ ए, काकी मनसा घर मे अपन दूं संतान माय अपटु पुतहु कें फज्झति क' रहल छथि जे घाठि में तिलकोर तरैक उद्योग मे छलथिन ।आब मिक्सी मे पिठार पीसि अपने सं तिलकोरा तरि रहल छथि।गप करब मां सं?' ओम्हर सं भाय ठहक्का मारलनि।

-मुदा एना ई मेल …? कोना भेल?'      

कोनो फेसबुक मित्रक मातृशोकक सूचना पढ़ैत काल जानि ने की भ’ गेलै…

-'ख़ैर,तथापि एक टा फ़ैदा तं भेल,बुझाइ-ए।

-'से की ?'

-मातृशोकक रिहर्सल भ' गेल आ शोकातुर स्नेही-संबंधीके अपन आभार प्रकट करबाक चिट्ठीक पहिल ड्राफ्ट करबाक प्रैक्टिस बुझू।आब तं सभटा सामाजिक शिष्टाचारो तं भाव सं बेबी नाटके भ' गेलय। आ नाटकक सफलता तं जेहन रिहर्सल तेहन सफल।

अहीं कहूं।आब एहि पर हम अपन कपार पीटू कि सर संबंधीक? 

                गंगेश गुंजन

            (उचितवक्ता डेस्क)...


Friday, March 6, 2020

चमन आबाद रहेगा

चमन को मंज़िले अव्वल* बनाने पर हैं आमादा।                                          मगर हम मुतमइन हैं नहीं होने देंगे यह गुलशन।                             🌺🌺    

गंगेश गुंजन  🌿🌿 [उचितवक्ता डेस्क]    * क़ब्र,श्मशान ।

Thursday, March 5, 2020

.....जान आई उसने ज़रा

रास्ते की थकन से हम सरापा बेचैन थे।  जान आई उसने 'टुक बैठ लें' जो कह दिया।                    🌿 🌳     -गंगेश गुंजन। 

Tuesday, March 3, 2020

ओतेक ऊंच नहिं जा चढ़ि बैसी

मनुष्य कें ओतेक ऊंच पर जा क' नहिं बैसि जयबाक चाही जे अपनो लोक कें ओ देखाइ नै पड़य आ ने वैह कोनो बेर-विपत्ति मे सोर करैक तं लोक ओकर आवाजे नहि सुनि सकै ।
                         गंगेश गुंजन
                     ।उचितवक्ता डेस्क।