Monday, November 20, 2023

दु:ख प्रश्न करता है

 📕          दुःख प्रश्न उठाता है  !
   मनुष्य को प्राप्त सुखों के औचित्य पर दु:ख सवाल करने आता है। इसी कारण मानवीय जीवन-मूल्य नैतिक अनुशासन में स्थित रह कर क्रियाशील रहते आये।
                        💥
                   गंगेश गुंजन                                      #उचितवक्ताडेस्क।

Friday, November 17, 2023

क्रिकेट पर मेरे उद्गार !

🌸                                              🌸
               क्रिकेट पर उद्गार !
   मैं क्रिकेट पर लिखने बैठा हूँ ! मैं और क्रिकेट? पर शुरू ही कर रहा हूंँ तभी मुझे इस एक और बात का अनुमानित आनंद आ रहा है कि जो मेरे पुराने रेडियो के साथी हैं और सौभाग्य से उनमें बचे हुए  भी,कुछ एक को तो मैं अभी यह लिखते हुए जैसे सद्य: देख रहा हूंँ -एस एन मिश्र जी, धीरंजन मालवे जी और कनाडा निवासी अजय कुमार और भी कई हैं जो क्रिकेट पर मेरे इस उद्गार को लिखे जाने की बात पर ही स्नेह दुष्ट आनंद से भर रहे होंगे : ‘क्रिकेटद्रोही गुंजन जी और क्रिकेट पर उद्गार? क्या  हो गया इन्हें ? रिटायरमेंट के बाद तबीअत ठीक नहीं है क्या? और हों भी क्यों न। क्रिकेट से मेरा वैसा ही रिश्ता कुख्यात रहा जैसे अंग्रेजी से। तत्त्वत: मुझे दोनों एक ही भावना और मानसिकता की सामन्ती रुचि और व्यवहार लगते थे। आलम यह था की एक बार तो एन. सिकदर जी (बाद में शायद एडीजी हुए) जैसे पटना केंद्र के निदेशक और मुझसे बहुत स्नेह रखने वाले अधिकारी से बहस जैसी स्थिति तक बन गई। जब कि वे ठहरे परम क्रिकेट भक्त।
  भागलपुर केन्द्र में तत्कालीन पीको सु.भू.मुखर्जी मुझे इशारा करते हुए चेताये जा रहे थे एस डी के साथ ऐसे बात क्यों कर रहे हो? बाद में इसी बातके लिए साथी मित्र ज्वाला प्रसाद जी (अब नहीं रहे) ने भी भविष्य में सावधान रहने समझाया था। लेकिन भावुकता में ही सही,घटना तो घट चुकी थी‌ ।
   हुआ यह था के हर तिमाही होने वाली समन्वय समिति की मीटिंग में सिकदर साहब निदेशक एक मीटिंगमें आकाशवाणी भागलपुर आए थे।
तब भागलपुर शायद उप केन्द्र की भी हैसियत वाला नहीं था।मात्र २५ मिनट का खेती गृहस्थी प्रसारण और 30 या 35 मिनट युववाणी (अब मुझे ठीक से उतना स्मरण नहीं) कार्यक्रम होता था।बाकी पूरा पटना से रिले करता था। उसमें भी समस्या थी कि मुख्य शहर से आठ दस किलोमीटर बाहर बियाबान में खड़े ट्रान्समीटर में ही किसी तरह का एक तिकोना स्टूडियो था जहाँ से प्रसारण होता था,बिजली सप्लाई की इतनी किल्लत और अनियमितता थी की कई बार तो रिकॉर्ड किए हुए कार्यक्रम प्रसारित रह जाते थे।अगले ही दिन मेरे सामने अक्सर बड़ी मासूम सी समस्या खड़ी हो जाती। बिजली बंद रहने के कारण निर्धारित दिन और समय पर जिस छात्र, नौजवान की वार्ता प्रसारित नहीं हो पाती उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा दांव पर लग जाती कि ‘तुम झूठ बोले थे कि रेडियो पर बोलोगे।’ बेचारा बालक मुंंह लटकाए सामने आकर खड़ा हो जाय और उसका दिल रखनेके लिए कई बार तो मुझे कालेज के उसके प्राचार्य तक को सफाई में उस बिजली गाथा की खेद चिठ्ठी लिखनी पड़ती थी। लाचारी भी थी। क्योंकि प्रसारण की दूसरी तिथि भी कभी इस चपेट में आ ही जाया करती…
ख़ैर,इतने अनिश्चित प्रसारण काल में बिहार के सभी आकाशवाणी केंद्रों की समन्वय समिति मीटिंग में कार्यक्रम -योजनाएंँ हो रही थीं। किसी एक निर्णय पर प्रश्नोत्तरी जैसी बातचीत हो गई थी।सिकदर जी ने यह सुझाव दिया ‘सम्भावित क्रिकेट मैच का आंँखों देखा हाल युवावाणी कार्यक्रम में भी प्रसारित किया जाए।’
युववाणी के उस अनिश्चित,सीमित प्रसारण की अवधि में भी क्रिकेट मैच के आंखों देखा हाल का वह सुझाव मुझे प्रिय तो क्या लगता,सहन ही नहीं हुआ और कह सकते हैं कि जो उस युग में प्रशासनिक दुस्साहस ही था,मैंने कर डाला। उनसे कहा :
‘महोदय यह निर्णय भागलपुर जैसी जगह के लिए जहां पर हर तरह से युवावर्ग लोग पिछड़े हुए कम और अभाव ग्रस्त हैं, निम्न वित्त परिवार के ही अधिक। युववाणी के लिए मुझे कितनी मुश्किल से तो ३०-३५ मिनट का समय मिलता है और वह भी बिजली महारानी की अनिश्चितता के साथ उसे भी क्रिकेट प्रसारण में दे देना न्याय संगत और मुनासिब नहीं होगा।’ किंचित नाराज तो हुए वे। लेकिन तर्क किया कि
‘नहीं क्रिकेट बहुत पापुलर गेम है। सब को अच्छा लगेगा। बहुत फायदा होगा।  उनको बढ़ाने में ही मदद मिलेगी उनको उनके व्यक्तित्व में विकास होगा’ इत्यादि जो क्रिकेट पक्ष में पारंपरिक तर्क हुआ करते थे।
मैंने एक बार फिर अति विनम्रता से इस पर
असहमति दिखाई तो समझाने की किंचित सख़्ती से बोले : ‘गुंजन जी आप एक बात क्यों नहीं समझता है कि क्रिकेट के चलते लड़के सिनेमा तक देखना छोड़ देता है।’ मुझे उनका यह तर्क ठीक तो लगा परंतु वहाँ की स्थानीय वास्तविकताओं के कारण उपयुक्त नहीं सो स्वीकार नहीं हुआ। और मैंने फिर प्रतिवाद में कहा कि
‘महोदय यह तो वैसा ही हुआ जैसे शराब पीना छुड़वाने के लिए किसी को भांँग की लत लगा दी जाय।’  इस पर एक क्षण के लिए उनकी भृकुटी तन गई। याद है मुझे। किंतु यह भी कहूंँगा कि वह समय दूसरा था। निदेशकों का प्रशासनिक आतंक तो बहुत था परंतु कुछ निदेशकों की संवेदनशीलता और निर्णय में समावेशी उदारता भी बहुत थी।वे तर्कसंगत स्तर तक सहनशील भी बहुत थे क्योंकि मैं उस समय महज़ एक नया नया हिंदी का प्रोड्यूसर और राजधानी पटना केंद्र के निदेशक से इस पर बहस कर रहा हूंँ जो खुद ही अपने साथियों के साथ रोज़ टोपी पहनकर क्रिकेट खेलते हों !
लेकिन वह मान गए। और मैं भागलपुर युववाणी का वह समय क्रिकेट आंँखों देखा हाल प्रसारित होने से बचा ले गया।
  अब अभी मित्र मिश्रा जी खुश होते होंगे क्योंकि वह स्वयं बहुत अच्छे खिलाड़ी भी हैं और क्रिकेट समर्पित हैं। यह संदर्भ है पिछले दिन भारत और न्यूजीलैंड के सेमीफाइनल मैच का जिसमें भारत ने जीत हासिल कर फ़ाइनल में प्रवेश कर लिया है। मेरा चित्त प्रसन्न है।
अब आजकल बैठे-बैठे कुछ भी कर सकता हूं तो क्रिकेट भी देख सकता हूंँ।

फुटबॉल को तो स्वभावत: देखता रहा हूँ। अपने पिता के साथ सैंडिस कम्पाउंड (भागलपुर) में बहुत देखे। स्कूली जीवन भर स्कूल के लिए खेला भी। अब मेरे सुपुत्र भी परम फुटबॉल प्रेमी हैं। साथ ही मेरे दोनों नाती भी। पोता तो बाकायदा अपने स्कूल टीम का खिलाड़ी भी है।
क्या खेल है फुटबॉल भी !
   लेकिन इधर क्रिकेट देखने में भी अब एक खास सलंग्नता का अनुभव अवश्य महसूस होता है जो मेरे लिए एक नया एहसास है‌। लेकिन वह सीमित है।इस खेल में भी अपने खिलाड़ियों और देश की जीत भर के लिए।हांँ इसकी मियाद ज़रूर बढ़ती जा रही है।मौका मिलता है तो देखता ही हूं। सुविधा भी हो गई है। वैसे क्रिकेट,जैसा कि मैंने कहा मेरा प्रिय कभी नहीं रहा। यह गंभीरता तो दिल्ली आने के बाद (क्योंकि यहां आकर तो अच्छे अच्छे को बिगड़ते देर नहीं लगती..) और फिर जनसत्ता अख़बार मे प्रभाष जोशी जी जैसे विशिष्ट सम्पादक के क्रिकेट-लेखन में उनके प्रेम को पढ़ पढ़ कर हुआ।उन्होंने तो इस खेल को दार्शनिक ऊंँचाई तक दे दी। इस तबीअत के साथ लिखते थे कि जिसे नहीं भी प्रिय हो और पढ़ना न चाहे वो भी पढ़ जाए । सचिन तेंदुलकर जी को और किन लोगों ने क्रिकेट का भगवान का यह तो मुझे नहीं मालूम लेकिन यह स्मरण है कि उन्हें ईश्वर बनाने वाले प्रभाष जोशी जी मुख्य हैं।
और अभी वर्तमान में,संयोग से मेरे एक बहुत अच्छे स्नेही साहित्यकार विचारक प्रोफेसर कर्मेंदु शिशिर जी।कर्मेंदु के क्रिकेट उद्गार पढ़ता हूं तो लगता रहता है जैसे कोई बहुत अच्छी रूहानी कविता पढ़ रहा होऊँ। क्रिकेट प्रसंग पर इतने मनोयोगी विवेचना और उत्साह से लिखते हैं कर्मेंदु जी।
  लेकिन यह मुझे बिल्कुल बुरा लगता है जब लगभग हमारे सभी संचार माध्यम प्राइवेट टीवी के लोग पराजय पर पाकिस्तान की अनवरत भर्त्सना करते रहते हैं। और वह भी बहुत निर्मम शब्दावली में यह अनुचित है। यह मेरे मन में रहता है कि हम आपस में भारत पाकिस्तान और बांग्लादेश आपस में जीते-हारें उसकी तो खुशी और निराशा हो परंतु उनमें से पाकिस्तान या कोई एक किसी विदेशी क्रिकेट टीम से हारे तो मुझे पसंद नहीं। पाकिस्तान को भी विदेशी टीम हराये सो मेरे अभिमान को लगता है।और उसके बारे में ह्रदयहीन चर्चा तो मुझे असह्य होती है।
बहरहाल।
  प्रिय मेरा फुटबॉल रहा है।समय हो तो कबड्डी।और यह कह सकता हूं कि हॉकी। लेकिन दिलचस्प है कि देखने जानने से पहले मैंने ध्यानचंद जी के बारे में
परतंत्र भारत के गौरव की मार्मिक कहानी पढ़ ली थी। हाकी बाद में। कहीं वीडियो- ऑडियो सुनने देखने का मौका लगा तो हाकी भी बहुत प्रिय लगती है। उसमें भी जब स्त्री टीम खेलती है ! अहा,अजब जीवंत और कलात्मक खेल लगता है। जैसे बहुत बड़ा अच्छा साहित्य पढ़ने का सुख मिल रहा हो। आनंद आता है।
    पर मैं क्रिकेट की बात कर रहा था तो कल मैंने देखा कि रोहित शर्मा जी ने बहुत जल्दी-जल्दी बहुत सुंदर स्थिति तक लाकर  जीत की आशा दिला दी और यूं ही कुछ भी सोच सकता हूं तो मैंने यह माना कि फिलहाल अगले बॉल में रोहित शर्मा जी अर्धशतक जरूर कर लेंगे। लीजिए मेरा ऐसा सोचना था और अगले बाल पर वह आउट हो गए। लो: मेरा सोचना तो अपशकुन हो गया।थोड़ा और देखने के बाद जीत संदेह के दायरे में आता देख निराश भाव से देखना बन्द कर कुछ और में व्यस्त हो गया।अन्य कुछ कुछ देखने- सुनने लगा । टीवी पर जो भी जैसा ही उपलब्ध है यूट्यूब पर मैं क्या कर सकता हूं ।समान भाव से देख लेता हूं अनाप-शनाप भी।क्या कर सकता हूं ।
    भोजन करने बैठा तो इस बीच मेरी बेटी का अपनी मां को रांची से टेलीफोन आ गया। उसने मेरे बारे में पूछा कहा ‘पिताजी तो मैच देख रहे होंगे।भारत तो जीत रहा है’ इधर से सरिता जी ने कहा कि ‘नहीं-नहीं अभी मैच नहीं देख रहे हैं। स्वाभाविक ही सूचना से मुझे ख़ुशी होने लगी और भोजन से उठकर मैं फिर बैठ गया टीवी के सामने।
वाकई जिस निराशा में मैंने देखना बंद किया था और यह मान लिया था कि अब हार जाएंगे हम। उसके विपरीत इतनी इतनी देर में ऐसी स्थिति पलट जाएगी इसकी मुझे तनिक भी आशा नहीं थी सो खुशी हुई। खैर उसके बाद परिणाम तो आप लोग जानते ही हैं,अब तो सभी जानते हैं।
   आश्चर्य नहीं कि भारत को क्रिकेट का चक्रवर्ती सम्राट बनते हुए देखने अब यह फाइनल मुक़ाबला भी ज़रूर देखने बैठूँगा मिश्रा जी 😃।
                     🌼
               गंगेश गुंजन                                      #उचितवक्ताडेस्क।