Thursday, March 30, 2023
मनुष्य का मन मस्तिष्क : आज के पेन ड्राइव का पहला प्रारूप
Monday, March 27, 2023
विश्व नाटक दिन: दोपात्रीय नाटक
🌿⚡। कोरोना बुलेटिन। ⚡ 🌿
२७मार्च,२०२०.
🌺
आज दो पात्रीय संवाद-नाट्य।
आज विश्व रंगमंच दिवस पर विशेष भेंट:
।। दृश्य:एक मात्र ।।
[चारों ओर से बंद ड्राइंग रूम में बैठे आमने-
सामने क़ैदीनुमा दो लोग।१.बेचैन बुज़ुर्ग और
२.बेफ़िक्र युवक। यानी दादा-पोता ]
*
( बहुत व्याकुलता से, खीझ और गुस्से में) :
दादा : पता नहीं यह अभागा कब जायेगा
यहांँ से।
पोता : यह कोई जिस्म का फोड़ा नहीं ना है
दादू कि एक-दो बारी मरहम लगा देने से चला
जाये।आप परेशान क्यों हो रहे हैं? चला
जाएगा न।
दादा : अरे मगर कब जाएगा ? चला जाएगा।
(और भी ज़्यादा ग़ुस्साते और ख़ीझते ) ।
पोता: वीसा ख़त्म होते ही चला जाएगा।
(इत्मीनान से मुस्कुराते हुए )...
दादा: अब इसका वीसा से क्या मतलब है?
(चिढ़ कर)
पोता: है न दादू। यह इम्पोर्टेड बीमारी है।
जानते ही हो। लेकिन कोई नहीं। आपके
ज़माने में वो
एक गाना बड़ा हिट हुआ था न ?
दादा: (बे मन से,उदासीन भाव से) कौन-सा
गाना ?
पोता : जाएगा-आ-आ जाएगा-आ-आ
जाएगा जाने वाला, जाएगा-आ-आ....
दादा : अरे वह आयेगा आयेगा था। जायेगा
जायेगा नहीं...(तनिक सहज होते हुए गाना
सुधार कर सही किया तो पोते ने मुस्कराते हुए
कहा-)
पोता: हां दादू। मगर अब आपका आयेगा
वाला सीन-सिक्वेंस बदल गया। यह तो
जाएगा-जाएगा वाला है।
(और काल्पनिक गिटार छेड़ता हुआ बड़ी अदा
से तरन्नुम में गाने लगता है-जाएगा जायेगा
जायेगा जाने वाला जायेगा।इस पर )
दादा: बहुत शैतान हो गया है तू ...रुक।
( वह थप्पड़ दिखा कर उसकी ओर लपकने
लगते हैं और गाते-गाते ही पोता ड्राइंगरूम का
पर्दा समेटने लगता है। सामने बाल्कनी दीखने
लगता है। सचमुच में गिटार की कोई मीठी धुन
सुनाई पड़ती है। )
🌿🌳🌿
गंगेश गुंजन
🦚 #उचितवक्ताडेस्क प्रस्तुति 🦚
विश्व रंगमंच दिवस पर : राजधानी में रंगमंच
Friday, March 24, 2023
ग़ज़ल नुमा : दुःख दूजे में बाँट रहे हैं ।
🐾
दु:ख दूजों में बाँट रहे हैं
जीवन अपना काट रहे हैं।
कितनों को आ-जाते देखा
हम नावों के घाट रहे हैं।
वक़्त अगर्चे वो भी गुज़रे
बीमारों की खाट रहे हैं।
वे तो ओछे दामों पर ही
लगने वाली हाट रहे हैं।
एक तराज़ू के दो पलड़े
वस्तु एक पर बाट रहे हैं।
गाँव एक ही दो दुनियाएंँ
भूखी इक,के ठाट रहे हैं।
हाथ नहीं उठता कुछ माँगें
वे कल तक जो लाट रहे हैं।
.
गंगेश गुंजन #उचितवक्ताडेस्क।
Monday, March 20, 2023
ग़ज़लनुमा : घर-घर तन्हा है घर में
Monday, March 6, 2023
इतनी सी जगह
📕 इतनी-सी जगह
मिट्टी थी,पानी था,आग थी,
आकाश था,और आवश्यक हवा!
ये सब एक थाली भर अंँगनई में
पूरे वजूद में थे।
डेढ़ कोठरी,हम तीन भाई,तीन
बहनें,
हमारी जननी थीं।
घैलची,* बस्ता रखने की तख्ती।
हम सब के लिए अपनी-अपनी
सांँस लेने की जगह थी।
घुंँटन शब्द से परिचय नहीं
बहुत छोटी खिड़कियों से बहुत
प्रकाश आता था।
आधी कोठरी के एकान्त को भी
लेता था अपनी ज़द में जहाँ,
यक्ष्मा ग्रस्त बड़ी दीदी अब-तब के
हाल में मामूली बिस्तर में फ़र्श पर
पड़ी रहतीं।
बर्तन धोते-धोते बीच-बीच में दीदी
को पूछती हुई ज़रा-सी ऊँची माँ की आवाज़ थी-
'कुछ चाहिए तो नहीं नीलम? बस
चुटकी भर। मैं आई।'
उस उतनी जगह में बीमार का नाम
सबसे नीरोग सम्बोधन था।
मुक्ति के लिए उत्कंठित,सचेष्ट
ग़रीबी की शान्त ग़ुलामी
आज से कितनी भिन्न थी।
••
* घड़ा रखने की ऊंँची जगह।
गंगेश गुंजन. #उचितवक्ताडेस्क।