मनुष्य का मन मस्तिष्क : आज के पेन ड्राइव का पहला प्रारूप *
इसकेे बारे में एक प्रसंग सुनाता हूंँ। कहते हैं कि सृष्टि करते हुए ब्रह्मा ने दिव्य दृष्टि से यह देखा कि चाहे कितनी भी बड़ी पृथ्वी हो, इस पर कितनी ही जगह क्यों न रहे लेकिन मौजूद इतने सारे प्राणी इतनी सारी प्राकृतिक संपदाओं में मनुष्य की मेधा से नित-नित और नयी वस्तुएँ बन कर आती रहेंगी। नए-नए अनुभव,ज्ञान विज्ञान विकसित होते जाएँगे और एक दिन ऐसा आएगा कि यह धरती मनुष्य के कृतित्वों से रंच मात्र भी खाली नहीं बचेगी। विचार और चीज़ों से पूरी पृथ्वी पट जाएगी।जबकि ज्ञान व्याकुल मनुष्य के मस्तिष्क का प्रसार होता ही चला जाएगा। स्वभाव के अनुरूप आदमी सुख-सुविधा के उपाय में,आविष्कार करते ही रहेंगे।नयी वस्तुएँ बनती ही रहेंगी। ऐसे में उन्हें सहेजने-रखने की भारी समस्या होगी। महा विपदा की तरह। तब एक ऐसे गोदाम की भी ज़रूरत होगी जिसमें सबकुछ इस प्रकार क़रीने रखे जायँ कि ज़रूरत इच्छा होते ही उसे निकाल कर उपयोग किया जा सके। तो उन्होंने सोचा एक ऐसा भंडार गृह तो अवश्य ही होना चाहिए जिसमें उन सभी का क्रमवार समावेश हो सके जो पृथ्वी धरती पर नहीं अँट पाएँ। उन्हें भी उपयुक्त ढंग से सुरक्षित-संरक्षित किया जा सके। उस स्थान की संभावनाओं पर विचार किया गया। तब उन्होंने बहुत चिंतन-मनन एवं अपने पूरे मंत्रिमंडल के साथ गहन विचार-विमर्श के बाद यह तय किया कि ऐसे भांडार की सभी गुंजाइश मानव मन में विद्यमान है अतः भांडार इसे ही बनाया जाय। यही एक है जो अपने सूक्ष्म स्थान में सृष्टि का सब कुछ समो भी लेगा और अनन्त काल तक उन्हें सिलसिले से संभालता जाएगा। मनुष्य की सृजन प्रक्रिया को निरन्तर सुचारु बनाये रखेगा। इस प्रकार मानव के निरंतर उत्कर्ष में भी कोई बाधा नहीं आएगी। इस मंथन के बाद ब्रह्मा ने मनुष्य का साँचा बनाया और उसमें भी विशेष मनुष्य के मन-मस्तिष्क का यह सुव्यवस्थित रूप रचा जो आज के इस विराट डिजिटल युग का पहला पेनड्राइव हुआ। आप क्या सोचते हैं ?
गंगेश गुंजन। #उचितवक्ताडेस्क।
( पोस्ट पुनः दिया गया)
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