Sunday, December 29, 2019

शजर बेख़ौफ़

                 🌳🌳🌳🌳🌳

हर एक सिम्त काट  रही  हैं कुल्हाड़ियां।शजर बेख़ौफ़ किसी शाख में पनपता है।       🌱🌱🌱🌱🌱🌱                      गंगेश गुंजन।                                    (उचितवक्ता डेस्क)

Saturday, December 28, 2019

उम्मीद का दामन

एक उम्मीद है कि छोड़ती नहीं दामन।    मिरा वजूद सुकून के लिए तड़पता है।       

                      🕊️  

  गंगेश गुंजन (उचितवक्ता डेस्क)

Monday, December 23, 2019

मुंतज़िर

      भूल जाता है जो आना भी                        उसी के मुंतज़िर हम रह गये।

      गंगेश गुंजन।                               (उचितवक्ता डेस्क)

Friday, December 20, 2019

'अछाहे कुकूर भूकब '

'अछाहे कुकूर भूकै छैक।सूति रहू।' बच्चा कें डरा क' शान्त करबाक उपाय ई कहबी, अभिभावक मुहें नेने- भुटका सं सुनैत आयल छी।

   उच्च सजगताक आवेश मे भरि देश लगैए जेना आशंकाक 'अछाहे कुकूर भूकब' वला परिस्थिति पसरि गेल हो।

   देश-चिन्ता तं सर्वोपरि। मुदा आन देशी मन-बुद्धिये नहिं।एक सीमा धरि,अपन देसी आवश्यकता ओ लक्ष्यक अनुभव मे।देश-चिन्ताक विवेक सेहो स्वदेशी चाही।आयातित बौद्धिकता सं तं जतेक दुर्दशा देश के परतंत्र भारतमे अंग्रेजहु सरकारक प्रभाव मे नहिं पहुंचल छल ओइ सं‌ कय गुना बेसी स्वतंत्र भारत मे भेल हयत। एहि यथार्थ दिस लोकक ध्यान अवश्य जयबाक चाही।🌀

गंगेश गुंजन।(उचितवक्ता डेस्क)

Tuesday, December 17, 2019

अब भी खुलते हैं पुस्तकालय


कालजयी कृति आलोचना में नहीं अंटती है।उसके अंतिम अनुसंधान,आलोचना और निष्कर्ष आने के लिए ही जिम्मेवार पुस्तकालय अब भी खुले हुए हैं।   

                                                                                                      -गंगेश गुंजन।(उचितवक्ता डेस्क)

Thursday, December 12, 2019

एक जुगनू उम्मीद !

    ज़िन्दगी की तमाम तीरगी                        सामने एक जुगनू उम्मीद।

              गंगेश गुंजन।

Tuesday, December 10, 2019

मतला :कभी‌ मिल जाय

कभी मिल जाये तो अपना कहूंगा।          नहीं मिल पाये तो सपना कहूंगा।                                           गंगेश गुंजन।

Monday, December 9, 2019

बांस की विनम्र ऊंचाई

बांस की विनम्रता देखिये कि जैसे ही उसे  लगने लगता है कि वह बहुत ऊंचा और लंबा हो गया है तो वह अपनी छीप(फुनगी) पर ऊपर से ज़मीन की तरफ झुक जाता है। मगर बड़े पेड़ों का गु़रूर देखिये जो झुकना नही जानते। अपनी ऊंचाई में धरती पर फैलते ही चले जाते हैं।

उचितवक्ता डेस्क

Sunday, December 8, 2019

झरोखे से हिमालय !

किसी रौशनदान से हिमालय देख पाना सहज ‌संभव‌ है। हिमालय से कोई रौशनदान देखना सहज संभव शायद ही।

गंगेश गुंजन। (उचितवक्ता डेस्क).          


Friday, December 6, 2019

मनुष्य और फुटबाल

             मनुष्य और फुटबॉल

लुढ़क कर मनुष्य जितनी ऊंचाई से भूमि पर गिरता है वह उतना ही चकनाचूर होकर बिखरता है। फुटबॉल उतनी ही ऊंचाई से लुढ़क कर भूमि पर गिरता है तो उसका कुछ नहीं बिगड़ता है। लुढ़कना फुटबॉल का स्वभाव है आदमी का नहीं।🌳🌳

गंगेश गुंजन। (उचितवक्ता डेस्क)

Wednesday, December 4, 2019

प्रेम और गंगाजल !

गंगाजल भी फूटे हुए पात्र में रखा जाय तो कभी रिस जाता है। प्रेम तरल होकर भी अपनी चाहत के पात्र में टिका ही रहता है।         
          गंगेश गुंजन।(उचितवक्ता डेस्क)

नया एक दिल है मेरा

                       🔥

बाज़ार में आया नहीं है कोई नया ब्राण्ड।    नया एक दिल है मेरा जो मैं बेचूंगा नहीं।                       गंगेश गुंजन।

Friday, November 29, 2019

जीने का हुनर

हुनर जीने का उसको आ गया है        क़सीदा ख़ूबसूरत लिख के-पढ़ के।          गंगेश गुंजन

Wednesday, November 20, 2019

आंसू से याराना करके

 
जब तक आंसू आंसू समझा पीया भी 
बेचैन रहे।                                      उससे याराना करके पहले से कुछ तो है आराम।                                                -गंगेश गुंजन।

Tuesday, November 19, 2019

दोस्त राजा भ' गेल नगरक

बनि गेल दोस्त राजा आब अपने एहि नगरक।                                              ऐ शहर सं हमहूँ कतहु दूरे जा क'      रहितौं।              🌀                          

                  गंगेश गुंजन

Sunday, November 17, 2019

चिट्ठीक आंजन

ओना नोछरि क' जाय  लगलौ त डेन  कियेक ने धेलें ।                                  आंखि मे आब लगा रहल छें ओकरे    चिट्ठीक आंजन।                              

               गंगेश गुंजन 

Saturday, November 16, 2019

सुख तो हुआ शजर !

                  * मायूस शजर *                    बहुत मायूस हो रहा है शजर सूखता हुआ अपने लिए नहीं घोंसलों और परिंदों केलिए                     । गंगेश गुंजन।

Tuesday, November 12, 2019

दोहराने लगा है।

हम अपने ग़म भुलाने में ‌लगे  हैं।

और वो दास्तां दोहरा रहा है।


गंगेश गुंजन। उचितवक्ता डेस्क।

Sunday, November 10, 2019

टूटी-फूटी ज़िन्दगी से शिकायत।

इस तरह टूटी फूटी रहकर

क्यों सताती रहती है मुझको।  

ऐ मेरी ज़िन्दगी !

एकेक सांस किराया देकर

रहता हूं मैं तुझमें।कोई मुफ़्त में नहीं।


-गंगेश गुंजन।(उचितवक्ता डेस्क)

Saturday, November 9, 2019

सांसों का किराया देकर...

सांसों का किराया चुका कर रहते हैं हम इसमें।

ज़िन्दगी सृष्टि ने दी तुम्हारा एहसान क्या ख़ुदा।


गंगेश गुंजन।(उचितवक्ता डेस्क)

Thursday, November 7, 2019

....बाज़ार गया बेचने ज़मीर

आख़ीर मैं बाज़ार गया बेचने ज़मीर।

यह माल पुराना कोई  खरीदता नहीं। 


गंगेश गुंजन।

Wednesday, November 6, 2019

मन कबीर !

कबीर हो गया है जो उसको 

सूर तुलसी कहां से याद रहें।


गंगेश गुंजन।(उचितवक्ता डेस्क)

Monday, November 4, 2019

फूलों का डर !

पतझड़ से उतना डर नहीं लगता फूलों को।

उत्सव,बुके,नेता,माला से रहते हैं तबाह।

💐💐

गंगेश गुंजन।(उचितवक्ता डेस्क)

Sunday, November 3, 2019

बाक़ी उम्मीद है !

कोई बचा है देखता-सुनता-समझता है।

ख़त्म हो गई नहीं हैं ‌अभी सब उम्मीदें।


🌺🌺

गंगेश गुंजन (उचितवक्ता डेस्क)


Saturday, November 2, 2019

...अपना हंसना भी रोते रहते हैं

आने-जाने को लेकर पल-पल को इतना क्यों गिनते हैं।

कुछ बुजुर्ग तो हद हैं अपना हंसना भी रोते रहते हैं।


गंगेश गुंजन।(उचितवक्ता डेस्क)

Thursday, October 31, 2019

क़ुतुब मीनार मेरा दोस्त !

बहुत ऊंचा बन के दोस्त मेरा हो गया कुतुब मीनार।

अब उसको देखने में सिर से गिरी जाए मेरी टोपी। 


गंगेश गुंजन.(उचितवक्ता डेस्क)

राजनितिक अल्पायु-दीर्घायु

🔥🔥

स्वीस बैंक और सी.बी.आइ.अपने देश के लोकतंत्र,विशेष कर विपक्ष की प्राण वायु हैं। राजनीति की आयु हैं।परिस्थिति के मुताबिक ये दोनों ही राजनीति को दीर्घायु या अल्पायु बनाते हैं। जनता इन्हीं की दुआओं तले फूलती-फलती और गिरती-पड़ती रहती है।        

गंगेश गुंजन।(उचित वक्ता डेस्क)।

आईना -२.

पूछ कर आईना से अपनी रुसवाई कर ली।

आईना ठकुर सुहाती करके आईना रहता।


गंगेश गुंजन (उचितवक्ता डेस्क)

Wednesday, October 30, 2019

बाग़ में बेला

वहां गमले में मुर्झाया हुआ था।

बाग़ में  तो बेला खिल गया है।

एक से एक वक्ता अभी चुप हैं 

अच्छे-अच्छों का मुंह सिल गया है।

             गंगेश गुंजन।

Tuesday, October 29, 2019

आईना भर सच बचा

अब तो लगता है बचा एक आईना भर सच।

कोई जो मिलता सामने मुंह पर सच कहता।


गंगेश गुंजन।(उचितवक्ता डेस्क)

Monday, October 28, 2019

सांवला सौंदर्य लोकतंत्र का है !

लोकतंत्र भी कोई  न  गंगा नहाया। 

सांवला सौंदर्य है यमुना का इसका।

        (मैथिली से अनूदित)

           उचितवक्ता डेस्क

दुख की चोटों ने गढ़ा है

लाल लोहा कर दिया गर्दिश ने जब मेरा जिगर ।

चोट से दुख के हथौड़ों ने गढ़ा है तब मुझे। 

                         🔥

                    गंगेश गुंजन 

Saturday, October 26, 2019

लाचार हैं कुछ लोग !

जुनूं जुनूं है धर्म का हो या कि विचार का। 

लाचार हैं अपने दिल-ओ-दिमाग़ से कुछ लोग।


गंगेश गुंजन

Friday, October 25, 2019

ख़ुशी बरगद न हो जाये !


ख़ुशी बरगद न हो जाए देखते रहना। 

अच्छा कि दूब,फूल,बांस आम भर रहे ।


गंगेश गुंजन । (उचितवक्ता डेस्क)।

Thursday, October 24, 2019

रिश्ते तब और अब

पहले रिश्ते, रहते थे या नहीं रहते थे। रिश्तों‌ में 'है भी और नहीं भी' का यह मनहूस संशय, बिल्कुल नया है,आज की देन है।


-गंगेश गुंजन।। उचितवक्ता डेस्क।।

Wednesday, October 23, 2019

इस तरह से सुबह आई

कुछ इस रफ्त़ार से  सुबह आई 

रात चुपचाप घर छोड़ कर भागी।

🌱

-गंगेश गुंजन

Tuesday, October 22, 2019

मेरा रुतबा देखना

यह तो कुछ भी नहीं है,देखना उस दिन रुतबा मेरा।                    आसमाँ ख़ुद उठाने आएगा अपनी हथेली पर मुझे।


गंगेश गुंजन

रात मुझको नहीं भायी

हरा कर  रौशनी जो आयी।


रात मुझको ज़रा नहीं भायी।


-गंगेश गुंजन 

.... मुकदमा करते

ज़ख़्म है जानलेवा तो क्या,उसका दिया है ।

किसी और का होता तो मुकदमा न करते ।

🕊️🕊️🕊️

गंगेश गुंजन।

Sunday, October 20, 2019

प्रेम की प्रकृति

प्रेम की प्रकृति गुनगुनाने वाली होती है,गाने वाली शायद ही ।

       🌸🌸🌸🌸🌸

-गंगेश गुंजन। (उचितवक्ता डेस्क)

इतिहास-दृष्टि !

हमारी इतिहास-दृष्टि को मोतिया बिंद है और वर्तमान को रंग अन्धापन है क्या ?

🌀

-गंगेश गुंजन। (उचितवक्ता डेस्क)

Thursday, October 17, 2019

जुनूने सफ़र

        बहुत मुश्किल सफ़र था। 

        मिरे  जुनून  से कम था।

                गंगेश गुंजन

Wednesday, October 16, 2019

पुरुषार्थ और पराजय

मनुष्य की कोई एक असफलता उसके पूरे पुरुषार्थ की पराजय नहीं होती है।                       🌻

               गंगेशगुंजन                                (उचितवक्ता डेस्क)

      

Tuesday, October 15, 2019

अवसर सुअवसर !

मिले हुए अवसर को सुअवसर बनाना मनुष्य के धैैैर्य,अपनी महत्वाकांक्षा, कल्पना और इच्छा-शक्ति पर निर्भर है। 
                        🌈 
                    गंगेश गुंजन
                (उचितवक्ता डेस्क)

Sunday, October 13, 2019

कपूर की इबारत में वफ़ा का नाम

    कपूर की इबारत और मुहब्बत
                     🍂
    कोई शिकवा नहीं है गुंजन से
    मुझको आज भी।
    मगर कपूर से तो यूं नहीं लिखता 
    वफ़ा अपनी।
                     🍁🍁
                  गंगेश गुंजन

Saturday, October 12, 2019

टूटे हैं ज़िंदगी के सफ़र में


टूटे  हैं कई बार  ज़िन्दगी के सफर में।
हर बार बिखरनेसे किसीने बचालिया।
                      🌘
                गंगेश गुंजन

Friday, October 11, 2019

आदमी भर आंखें

  
  आदमी हैं हम आदमी भर आँखें  हैं।
  ख़ुदा होकर दोस्त अंटता नहीं इसमें। 
  *                         
  गंगेश गुंजन

Wednesday, October 9, 2019

हार और जीत

   जीत कर बार-बार कुछ ना कुछ
   बिगड़ा ही।
   हार कर एक बार उससे मैं संवर 
   गया।
                      
               गंगेश गुंजन

   

Saturday, October 5, 2019

वर्तमान का विवेक

    वर्तमान का विवेक इतिहास के
    स्याह अतीत को संस्कारित कर
    उसे संशय मुक्त और उज्ज्वल
    बना सकता है।

                   गंगेश गुंजन          

Friday, October 4, 2019

प्रेम आज्ञाकारी नहीं हो सकता ।

                      🌻
    प्रेम आज्ञाकारी नहीं हो सकता।
    आज्ञाकारी होकर प्रेम मर्यादा हीन  
    हो जाता है।

                   गंगेश गुंजन
               (उचितवक्ता डेस्क)

बहार कर दूंगा सहरा


🌾🌾🌾🌾🌾🌾🌸🌺
  किस वीराने में छोड़ोगे कहां
  जाकर मुझको।
  बहार कर दूंगा सहरा आदत
  मेरी तुम देखियो। 
  🌾🌾🌾🌾🌾🌾🌸🌺
                 गंगेश गुंजन

   

Thursday, October 3, 2019

रोना सीखें।

    सीखना हो तो मनुष्यको रोना 
    सीखना चाहिए। हंसना तो सबको 
    आता है। पागल को भी।
     *
                           गंगेश गुंजन

Sunday, September 29, 2019

... देसी मन चाहिए


🌾🌾
    हवा-पानी,चांद-सूरज सबको वतन 
    चाहिए।
    देश की माटी में लोगो देशी मन  
    चाहिए।
  🌾🌾
    गंगेश गुंजन,
    १८अक्तू.'१९.

दिल के बारे में


  दिल के बारे में है अफ़वाह बहुत
  कभी जो दिख भी जाता कहीं
  सचमुच !
                      *
               गंगेश गुंजन

Saturday, September 28, 2019

मरने का भी हौसला किया जाये


🌿🌿
    हरेक पल जीने की यूं लालसा
    न की जाये।
    कभी मरने का भी तो हौसला
    किया जाये।      
               -गंगेश गुंजन 🌿🌿
                   

।। लोकतंत्र ।।

              ।। लोकतंत्र।।
                    ।🌓।  
बिखरे विपक्ष का प्रबन्धन ही आजकी विजय-कामी सत्ता का लोकतंत्र होता हुआ लगता है। गत १५-२० चुनाव-वर्षों के फलित अनुभव से।और प्रायः यह भी कि उसका सबसे उर्वर परिसर अपने यहाँ है।
    आख़िर हम विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र जो हैं !
          । उचितवक्ता डेस्क ।

Friday, September 27, 2019

हंस कर भी गुजरती है रोकर भी गुज़रती  है।
लेकिन बहुत है ख़ास जो मिलकर गुज़रती है।
🌸
गंगेश गुंजन

Thursday, September 26, 2019

ज़िन्दगी तमाशा घर।

दु:ख की गाड़ी पर ख़ुशी से थका हुआ सफ़र। 
ज़िन्दगी भी अजब उलटबांसी है तमाशा घर।
                        *
                 गंगेश गुंजन

.....एक ख़ास गाना ढूंढ़ते हैं

   हज़ारों गीत हैं अपने ज़हन में 
   मगर एक ख़ास गाना ढूँढ़ते हैं।
                गंगेश गुंजन

Sunday, September 22, 2019

चांद की एक और बात


     चांद की एक और बात बड़ी
     प्यारी है।
     वह जिसे मिलता नहीं,सपना में  
     आता है।
     🌱🌱
      गंगेश गुंजन
     (उचितवक्ता डेस्क)

Saturday, September 21, 2019

...जिगर तो हर हाल चाहिए !


                      🌍
    देने के लिए जिनके पास कुछ नहीं 
    होता उनके पास जिगर रहता है। 
    जिनके पास बहुत रहता है उनके
    पास देने का ही जिगर नहीं होता।
                      🌍
                 गंगेश गुंजन
             (उचितवक्ता डेस्क)

Thursday, September 19, 2019

किसलिए फिर लौटूंगा

     यहां से जाऊंगा तो किस लिए   
     फिर लौटूंगा।
     सोचता हूं यहीं रखता चलूं 
     ज़िन्दगी तनिक।
                  🕊️                
                        गंगेश गुंजन

Wednesday, September 18, 2019

....बदल लेते नसीब अपना

बदल लेते जो यह मुमकिन होता
किसी ख़ुशक़िस्मत से नसीब अपना।
                गंगेश गुंजन

Tuesday, September 17, 2019

हम मज़दूर हैं


       हम मज़दूर हैं। मिट्टी कोई हो,
       ख़ून-पसीने से उसे देश बना देते हैं।
       जहाज़-जहाज़ भर के सागर पार,
       मज़दूर ले जाओगे,कहां ?
       ख़ून पसीना से हम उसे
                        मॉरिशस कर देंगे।

🌾🌾🌾🌾🌾🌾🌾🌾🌾🌾🌾🌾🌾   
                            गंगेश गुंजन

Saturday, September 14, 2019

हिन्दी दिवस उत्सव १४.९.'१९.

         हिंदी दिवस उत्सव 
                  💐💐
हिंदी दिवस उत्सव मैंने इस तरह मनाया !                    
दिल्ली पुस्तक मेला में राष्ट्रीय पुस्तक न्यास (एनबीटी) द्वारा प्रकाशित,श्री राकेश पाण्डेय लिखित पुस्तक,'गांधी और हिन्दी' महत्त्वपूर्ण पुस्तक क्रय कर के। 
और,
प्रगति मैदान के हाल में आयोजित आथर्स गिल्ड आव इंडिया के आयोजन :गांधीजी और हिंदी : विशेष संगोष्ठी एवं हिन्दी कवि सम्मेलन श्रोतास्वरूप सभागार में अपनी उपस्थिति से।
    हिन्दी दिवस पर बधाई !
                  🌳
             गंगेश गुंजन

Friday, September 13, 2019

चन्द्रयान-सूर्ययान

            चन्द्रयान-सूर्ययान

शान्त,विनम्र और कोमल पर सब का पुरुषार्थ चलता है। चन्द्रमा को ही देख लीजिए। उस पर धमक जाने के लिए देश के देश लगे रहते हैं। लेकिन बड़े 'ज्ञानयोद्धा' हैं वे तो सूर्ययान बना कर तनिक सूरज पर भी धाबा बोल कर दिखायें तो !
      
                    🌓
              गंगेश गुंजन
        (उचितवक्ता डेस्क)

Thursday, September 12, 2019

सूर्य का बड़प्पन

      सूर्य इतना बड़ा है कि साधारण
      लगता है।
      🌅
      गंगेश गुंजन
      (उचितवक्ता डेस्क)

Wednesday, September 11, 2019

नया हिन्दुस्तान लिखेंगे

    रक़ीब तो इसे फिर एक रेगिस्तान  
    लिखेगा।
    हमारा हौसला इक नया हिन्दुस्तान
    लिखेगा।
                       🌄
     गंगेश गुंजन
    ।उचितवक्ता डेस्क।

तुम्हीं कहते थे ना

              लो सभी यादें हैं और  ये  रही  माचिस।
              तुम्हीं कहते थे ना कुछ भी है मुमकिन।
                                          *
                                  गंगेश गुंजन

Tuesday, September 10, 2019

पानी की तरह मिला उससे

    कोई पत्थर आकर मेरे सिर से   
    टकराया ।
    कांच तो हूं नहीं,पानी की तरह 
    उससे मिला।
                    ‌‌         🕊️🕊️🕊️
    -गंगेश गुंजन

Tuesday, September 3, 2019

दूब

                   । दूब ।

   बरगद नहीं हूं मैं काट कर जला
   लिया।
   दूब हूं काटोगे जितना उग आऊंगी।
               -गंगेश गुंजन-

अपराध ओ विवेक

    कुछ अपराध मनुष्य की नियति में
    ही हैं और अपरहार्य हैं।जैसे,कब 
    कैसे कोई चींटी आपके पैर के  
    नीचे दब कर मर जाती है आपको
    पता नहीं होता। लेकिन जब यह
    मालूम पड़ जाय तो क्षण भर
    पश्चात्ताप करके ही अगला कदम  
    राह पर रखते हैं। 
    ग़लती पर,खेद होना नहीं भूलता
    हूं मैं।
                        **
                  गंगेश गुंजन

Monday, September 2, 2019

ख़ुशी और ग़म के रास्ते


    सुख सदा नये मार्ग से आता है।
    दु:ख पुरानी राह पर चल कर।

                     🥗
                गंगेश गुंजन

Sunday, September 1, 2019

l चेतनाक असल शक्ति-शिक्षा ।



        शिक्षा दीन-हीन लोकक ब्रह्मास्त्र थीक।मनुष्य मे परिवर्तनकारी चेतनाक असल शक्ति,शिक्षे सं अबैत
छैक।
-gngesh gunjan.
( Uchitvaktaa Desk.)

Saturday, August 31, 2019

स्वाभिमान

     रखो जो स्वाभिमान तो दूब के  
     जैसा।
     बरगद का नहीं,कोई आंधी
     झुका जाये।
     *
     -गंगेश गुंजन

Friday, August 30, 2019

लोकतंत्र


   संसद भर शोर ! वृद्ध विपक्ष का
   लटका हुआ चेहरा,हकलाते बोल,
   दुविधा ग्रस्त विचार ! लोकतंत्र। 

               गंगेश गुंजन
          (उचितवक्ता डेस्क)
   

Wednesday, August 28, 2019

बाग़ी फूल !

    सुबह-सुबह पी रहे धूप और लेते हैं
    स्वाधीन सांस।
    तारों के घेरे से बाहर सिर निकाल 
    कर बाग़ी फूल ! 

                 गंगेश गुंजन

Sunday, August 25, 2019

सुनती भी कहां है सियासत


🌿
    सुनती कहां है अब सियासत भी
    दुखी की।
    लोगों के ग़म लिए और शाइरी में   
    बो दिए।
     *
                       🌾
                  गंगेश गुंजन.

Saturday, August 24, 2019

रोये मगर ज़रा-सा नहीं । शे'र

    रोये मगर ज़रा-सा नहीं उसके नाम 
    पर।
    जिसने सभी सुकून ग़मों में डुबो  
    दिए।

                              -गंगेश गुंजन

... ज़माने के हो लिए

    🍂🍂
 
   अपना नहीं ‌मिला तो ज़माने  के हो 
   लिए।
   दिन इस तरह से मैंने ज़िन्दगी के ढो
   लिए।                           🍂🍂
                  गंगेश गुंजन   

Thursday, August 22, 2019

महान् और साधारण

🌿
   साधारण मनुष्य,विशेष दिन-तिथि
   में जन्म लेकर भी ऐतिहासिक नहीं
   बन पाता है। जबकि महान् व्यक्ति
   अपनी मृत्यु से साधारण दिन-तिथि
   को भी इतिहास-स्मरणीय बना     
   जाते ‌हैं।                             🌳  
                  गंगेश गुंजन
              (उचितवक्ता डेस्क)

Tuesday, August 20, 2019

यक़ीन रख हम पर


🌾
    यक़ीन रख हम पर और नज़र। 
    सहर हूं  मैं, ज़रूर आऊंगा।
                                        🌻
               गंगेश गुंजन
                २०.८.'१९.

Saturday, August 17, 2019

राजभाषा, अंग्रेज़ी और संविधान !


हिन्दी को भी मुक्त कीजिए,सरकार !
                       *
देश की हिन्दी और अंग्रेजी की संवैधानिक भाषा-व्यवस्था और राज्य व्यवस्था में कश्मीर की धारा ३७० और संवैधानिक व्यवस्था एक समान ही नहीं लगती है ? तो यह हिन्दी को भी अंग्रेज़ी से मुक्त करने का वक़्त नहीं है? कश्मीर की साधारण जनता की तरह हिन्दी भी देश की जनता ही तो है। अंग्रेज़ी महज़ १० वर्षीय वैकल्पिक सुविधा के संवैधानिक प्रावधान का ७० वर्षों ‌से अनावश्यक और मनमाना सुविधा-भोग कर रही है।राजभाषा हिन्दी आज भी लगभग अंग्रेज़ी के अधीन,दास होकर जीवन बिता‌ रही है। इस कारण राष्ट्रीय मेधा और प्रतिभा की स्वाभाविक और वांछित प्रगति नहीं हो पायी।प्रगतिअवरुद्ध हो रही है।
     हिन्दी सत्तर साल से लाचार है ! क्यों ?
        गंगेश गुंजन।  १८.८.'१९.

खंडहर की लिपि


    साम्राज्य खंडहरों की लिपि में
    पढ़े जाते हैं !
                  गंगेश गुंजन
             (उचितवक्ता‌‌ डेस्क)
     

Friday, August 16, 2019

आज्ञाकारी सूर्य !

                     🌻

  महाप्रतापी सूर्य भी,सृष्टि का आदेश 
  मानता है। नित्य समय पर उगता है  
  और अस्त हो जाता है।मनुष्य किस
  गुमान में प्रकृति की अवज्ञा करता 
   है ?
                      🌻
          (उचितवक्ता डेस्क)

Thursday, August 15, 2019

...ठहर गये तुम भी

     ज़िन्दगी से गुज़र गये तुम भी।   
     रास्ते में ठहर गये तुम भी !
                           ०
      मानते हैं बहुत है धूप कड़ी।
      झेल पाए न दोपहर तुम भी।

                         -गंगेश गुंजन

Wednesday, August 14, 2019

स्वतंत्रता दिवस की बधाई

       
      
                  💐🙏💐
        स्वतंत्रता दिवस की बधाई !

        स्मृति,संस्कृति की आयु होती
        है‌,भविष्य का लेख।

                 गंगेश गुंजन

कम्यूनिस्ट कवि की हवाई यात्रा


      पड़ोसी समाधान प्रसाद जी का  
      कहना है :

       प्रगतिशील कविता पाँव पैदल
       आयी थी।पिछड़ गयी।आख़िर
       कम्यूनिस्ट कवि भी हवाई 
       जहाज़ पर यात्रा तो करते ही हैं।              
                     🌍
            
            -उचितवक्ता डेस्क-

Tuesday, August 13, 2019

.। तमाम लोग ।



                   कहीं से कोई नहीं आया कितना पुकारा।
मिज़ाजपुर्सी में घर मिरे आये तमाम लोग।
- गंगेश गुंजन

Monday, August 12, 2019

...देश में देश बदल गया


मेरे गांव में गांव बदल गया। बिहार में बिहार बदल गया। देश में देश बदल गया।कश्मीर में कश्मीर नहीं बदला होगा !
                 🕊️ उचितवक्ता डेस्क

। ख़्वाबों के घर ख़ूबसूरत ।


                   🌾🌾
    ख़ूबसूरत हैं ख़्वाबों के घर💧
    दरकार तक नहीं कोई बिल्डर।
                     🌧️
                गंगेश गुंजन
           (उचितवक्ता डेस्क)

Saturday, August 10, 2019

* सियासत में आदमी *


                     🌻
    कुछ रोज़,माह या भले और भी 
    कुछ ज़्यादा।
    सियासत बदल देती है आदमी
    का फ़ल्सफ़ा।         
                     🌾
               गंगेश गुंजन

Friday, August 9, 2019

। डुप्लिकेट काल ।

  
                     🌓
   सच और झूठ दोनों डुप्लिकेट।  
   इतिहास में यह डुप्लिकेट-काल‌
   चल रहा है ।       
                   ! 🌍 !
               गंगेश गुंजन
            उचितवक्ता डेस्क

Thursday, August 8, 2019

समस्या बडगद


                       🌾🌾
      भविष्य में बरगद और पहाड़ हो  
      जाने वाली समस्या भी प्रारम्भ
      में दूब के सामान ही मामूली
      लगती है।
      
                   गंगेश गुंजन        
              (उचितवक्ता डेस्क )

Tuesday, August 6, 2019

भाषा

                    🌱
                   भाषा

   गुज़ारे लायक़ भाषा ‌की भूमि
   होती तो सब के पास है लेकिन
   भाषा के असली ‌गृहस्थ,कवि-   
   लेखक ही ‌हैं।भाषा के गृहस्थ,  
   स्वामी नहीं।कुछ कवि-लेखक  
   भाषा के स्वामी जैसा बर्ताव
   करते लगते हैं।
                   🌱🌱
             उचितवक्ता डेस्क

Monday, August 5, 2019

संस्कृति लफ़्ज़ और ...

                     🌻

      संस्कृति लफ़्ज़ और तलफ़्फुज़
      भर नहीं है। अच्छे-अच्छों को
      यह ग़लतफ़हमी है।
                    🌳     
          (उचितवक्ता डेस्क)
               गंगेश गुंजन

कहने से नहीं करने से क्रान्ति

                       🔥
        क्रान्ति गाने से नहीं,लाने से
        आती है। जैसे कहने से नहीं,  
        करने से,प्रेम आता है।
                   🕊️🕊️
            (उचितवक्ता डेस्क)
                 गंगेश गुंजन

।। ग़ज़ल ।।

               ग़ज़ल
                  १. 
    कभी नहीं  बेचारा दिखना
    दिखना तो ध्रुवतारा दिखना।  
                  २. 
    सुनना  तो  मां  के कानों से 
    कहना तो मां के मुख कहना
                  ३.
    बैठें  पिता उच्च आसन पर 
    पांवों में  तो मां  के  बैठना।
                 ४. 
    एकान्तों  में जोखिम-खतरे 
    रहना हो  बस्ती  में   रहना
                 ५. 
    झुकना  तो फल के वृक्षों-सा
    तनना तो तलवार में  तनना
                  ६. 
    रोना मत कुछ करने लगना
    गाना  गाना चलने  लगना।
                  ७. 
    कभी नहीं क़िस्मत पर रोना
    हां, मजबूरी  पर पछताना।
                   ८. 
    जहां - तहां मत बैठ-बैठ कर
    मंज़िल से  पहले थम जाना।
                   ९. 
    पत्थर  में पानी - सा बहना
    पानी -सा पत्थर को सहना।
                  १०. 
    दोस्त  ढूंढ़ना   यार  बनाना
    उसको अपना सपना कहना।
                     *
             गंगेश गुंजन

Saturday, August 3, 2019

सुख का आकार

सुख का आकार
*
उस दिन कुछ लोगों में बहस छिड़ी कि सुख का आकार कितना बड़ा है।सब सुख एक समान तो नहीं होता,कोई छोटा कोई बड़ा होता है। तो यह छोटा-बड़ा क्यों होता है ?'
एक बुजुर्ग बैठे-बैठे मुस्कुरा रहे थे। हस्तक्षेप करते हुए बोले-
‘सुख भला बड़ा छोटा क्यों होगा? ध्यान दो तो सब तो दिल में ही होता है। हृदय में ही ठहर कर रहता है। अगर कोई सुख बड़ा होता तो फ़िट ही नहीं होता। ह्रदय फट जाता। या छलक कर उससे बाहर गिर जाता। और जो सुख छोटा होता तो जल से आधा भरे घड़े की तरह बजता रहता। लेकिन ऐसा होता तो नहीं है।सुख में हम सभी मगन भर होते हैं। क्यों ?
‘तो फिर,अंकल ?' एक युवक ने उत्सुकता से टोका।
‘यही कि जितना बड़ा बर्तन रहता है उसमें उतनी ही वस्तु रखी जा सकती है। ठीक वैसे ही हृदय की हालत है।इसमें छोटा बड़ा सुख समझना हमारी अपनी भूल है। दरअसल सुख का आकार हमारे भीतर उपस्थित अपने हृदय के आकार के अनुपात में होता है।यही समझने की बात है। इसका मतलब यह भी हुआ कि जिस व्यक्ति के हृदय में सुख या दुख  ग्रहण करने की जितनी क्षमता है उस सुख या दु:ख का वही आकार समझना चाहिए। यह पूरा मनुष्य के अपने स्वभाव,अपनी समझ,संवेदनशीलता और जीवन के बारे में अपने नजरिये पर निर्भर है। इसी से यह भी निर्धारित होता है सुख या दु:ख का हमारा अनुभव भी।अब देखो,बड़े से बड़े दु:ख को कुछ लोग तिनके की तरह उड़ा देते हैं। जबकि छोटे से छोटे सुख को कुछ लोग कुतुब मीनार बना लेते हैं । ऐसा,अनुभव करने वाले या इस अनुभव को लेने वाले व्यक्ति की अपनी पात्रता और अपनी बनावट 
पर निर्भर होता है। सुख या दु:ख का आकार जिस हृदय में आया है उसी आकार का होता है।
  सब चुपचाप सोचने रहे।
                        *
गंगेश गुंजन,
29 अप्रैल 2019.

सुख का आकार

                                                                 

सुख का आकार
*
उस दिन कुछ लोगों में बहस छिड़ी कि सुख का आकार कितना बड़ा है।सब सुख एक समान तो नहीं होता,कोई छोटा कोई बड़ा होता है। तो यह छोटा-बड़ा क्यों होता है ?'
एक बुजुर्ग बैठे-बैठे मुस्कुरा रहे थे। हस्तक्षेप करते हुए बोले-
‘सुख भला बड़ा छोटा क्यों होगा? ध्यान दो तो सब तो दिल में ही होता है। हृदय में ही ठहर कर रहता है। अगर कोई सुख बड़ा होता तो फ़िट ही नहीं होता। ह्रदय फट जाता। या छलक कर उससे बाहर गिर जाता। और जो सुख छोटा होता तो जल से आधा भरे घड़े की तरह बजता रहता। लेकिन ऐसा होता तो नहीं है।सुख में हम सभी मगन भर होते हैं। क्यों ?
‘तो फिर,अंकल ?' एक युवक ने उत्सुकता से टोका।
‘यही कि जितना बड़ा बर्तन रहता है उसमें उतनी ही वस्तु रखी जा सकती है। ठीक वैसे ही हृदय की हालत है।इसमें छोटा बड़ा सुख समझना हमारी अपनी भूल है। दरअसल सुख का आकार हमारे भीतर उपस्थित अपने हृदय के आकार के अनुपात में होता है।यही समझने की बात है। इसका मतलब यह भी हुआ कि जिस व्यक्ति के हृदय में सुख या दुख  ग्रहण करने की जितनी क्षमता है उस सुख या दु:ख का वही आकार समझना चाहिए। यह पूरा मनुष्य के अपने स्वभाव,अपनी समझ,संवेदनशीलता और जीवन के बारे में अपने नजरिये पर निर्भर है। इसी से यह भी निर्धारित होता है सुख या दु:ख का हमारा अनुभव भी।अब देखो,बड़े से बड़े दु:ख को कुछ लोग तिनके की तरह उड़ा देते हैं। जबकि छोटे से छोटे सुख को कुछ लोग कुतुब मीनार बना लेते हैं । ऐसा,अनुभव करने वाले या इस अनुभव को लेने वाले व्यक्ति की अपनी पात्रता और अपनी बनावट 
पर निर्भर होता है। सुख या दु:ख का आकार जिस हृदय में आया है उसी आकार का होता है।
  सब चुपचाप सोचने लगे।
*
गंगेश गुंजन,
29 अप्रैल 2019.

रेत की दीवार

   
  🕊️
      ग़ैरों के भरोसे से अपनों को 
      छोड़ आये।        
      वो रेत की दीवार थी ये रेत का  
      सहरा है।
                       🕊️
                             गंगेश गुंजन

Wednesday, July 31, 2019

।। दास्तां दुहरा ‌रहा है ।।

          🌳🌳🌳🌳🌳
         🌳🌳🌳🌳       🌳🌳

   🌳। 🌳               🌳
   इधर हम ग़म भुलाने में ‌लगे हैं।
   उधर वो  दास्ताँ  दोहरा रहा है।    
                  ! 💔 !   
               गंगेश गुंजन