Saturday, August 3, 2019

सुख का आकार

                                                                 

सुख का आकार
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उस दिन कुछ लोगों में बहस छिड़ी कि सुख का आकार कितना बड़ा है।सब सुख एक समान तो नहीं होता,कोई छोटा कोई बड़ा होता है। तो यह छोटा-बड़ा क्यों होता है ?'
एक बुजुर्ग बैठे-बैठे मुस्कुरा रहे थे। हस्तक्षेप करते हुए बोले-
‘सुख भला बड़ा छोटा क्यों होगा? ध्यान दो तो सब तो दिल में ही होता है। हृदय में ही ठहर कर रहता है। अगर कोई सुख बड़ा होता तो फ़िट ही नहीं होता। ह्रदय फट जाता। या छलक कर उससे बाहर गिर जाता। और जो सुख छोटा होता तो जल से आधा भरे घड़े की तरह बजता रहता। लेकिन ऐसा होता तो नहीं है।सुख में हम सभी मगन भर होते हैं। क्यों ?
‘तो फिर,अंकल ?' एक युवक ने उत्सुकता से टोका।
‘यही कि जितना बड़ा बर्तन रहता है उसमें उतनी ही वस्तु रखी जा सकती है। ठीक वैसे ही हृदय की हालत है।इसमें छोटा बड़ा सुख समझना हमारी अपनी भूल है। दरअसल सुख का आकार हमारे भीतर उपस्थित अपने हृदय के आकार के अनुपात में होता है।यही समझने की बात है। इसका मतलब यह भी हुआ कि जिस व्यक्ति के हृदय में सुख या दुख  ग्रहण करने की जितनी क्षमता है उस सुख या दु:ख का वही आकार समझना चाहिए। यह पूरा मनुष्य के अपने स्वभाव,अपनी समझ,संवेदनशीलता और जीवन के बारे में अपने नजरिये पर निर्भर है। इसी से यह भी निर्धारित होता है सुख या दु:ख का हमारा अनुभव भी।अब देखो,बड़े से बड़े दु:ख को कुछ लोग तिनके की तरह उड़ा देते हैं। जबकि छोटे से छोटे सुख को कुछ लोग कुतुब मीनार बना लेते हैं । ऐसा,अनुभव करने वाले या इस अनुभव को लेने वाले व्यक्ति की अपनी पात्रता और अपनी बनावट 
पर निर्भर होता है। सुख या दु:ख का आकार जिस हृदय में आया है उसी आकार का होता है।
  सब चुपचाप सोचने लगे।
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गंगेश गुंजन,
29 अप्रैल 2019.

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