हिन्दी को भी मुक्त कीजिए,सरकार !
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देश की हिन्दी और अंग्रेजी की संवैधानिक भाषा-व्यवस्था और राज्य व्यवस्था में कश्मीर की धारा ३७० और संवैधानिक व्यवस्था एक समान ही नहीं लगती है ? तो यह हिन्दी को भी अंग्रेज़ी से मुक्त करने का वक़्त नहीं है? कश्मीर की साधारण जनता की तरह हिन्दी भी देश की जनता ही तो है। अंग्रेज़ी महज़ १० वर्षीय वैकल्पिक सुविधा के संवैधानिक प्रावधान का ७० वर्षों से अनावश्यक और मनमाना सुविधा-भोग कर रही है।राजभाषा हिन्दी आज भी लगभग अंग्रेज़ी के अधीन,दास होकर जीवन बिता रही है। इस कारण राष्ट्रीय मेधा और प्रतिभा की स्वाभाविक और वांछित प्रगति नहीं हो पायी।प्रगतिअवरुद्ध हो रही है।
हिन्दी सत्तर साल से लाचार है ! क्यों ?
गंगेश गुंजन। १८.८.'१९.
Saturday, August 17, 2019
राजभाषा, अंग्रेज़ी और संविधान !
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