इस लोकतंत्र में विपक्ष एक नियति ।
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विपक्ष की नियति ही है विपक्ष । जिन्हें अपने विपक्ष होने का अभिमान है उनकी आयु सत्ता परिवर्तन तक की है। इसलिए अन्य कई झोलदार लोकतान्त्रिक विशेषणों की तरह विपक्ष भी पर्याय: जुमला भर बच गया लगता है। मुक्तिबोध का ‘पार्टनर तुम्हारी पालिटिक्स क्या है’ का यह समय नहीं बचा है। लोकतंत्र में आप ज्योंही किसी राजनीति दल के पक्ष में किसी सत्तासीन दल का विपक्ष कर रहे हैं तो मौजूदा सत्ता शासन का अंत और आपके पक्ष का सत्ता ग्रहण के साथ ही आपका विपक्ष भी पक्ष में तिरोहित भर होता है जैसे महा नगर का कोई नाला किसी महानद में।
अभी तक एक मात्र कविता विपक्ष है और विचार। कवि भी समष्टिक नहीं।
विचार कभी,आडम्बर में किसी एक विचारधारा का दूसरी विचारधारा में विलयन का अंजाम देने तक ले जाने भर के लिए पालकी नहीं ढोता है । विचार राजनीतिक दलों की पालकी का कहार नहीं बन सकता।
कविता तो विपक्ष का पर्याय ही है।
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गंगेश गुंजन।२८.४.’१९.
Monday, April 29, 2019
इस लोकतंत्र में विपक्ष ।
Sunday, April 28, 2019
सुख-दुख के रस्ते। शे'र
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सुख पाने के अपने रस्ते,दुख
के भी अपने रस्ते।
कोई पी कर ख़ुश होता है और
कोई पिला कर के।
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-गंगेश गुंजन
Friday, April 26, 2019
पास जज़्बात भर है । ग़ज़ल
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ज़िन्दगी रात भर है
इक मुलाक़ात भर है
प्यार के मौसम की
हिज्रे सौग़ात भर है
असल तो दिन न रहे
बस ख़यालात भर है
रात अब जुगनू की
कोई बारात भर है
चाहिए पैसा-रुपया
पास जज़्बात भर है
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गंगेश गुंजन
Wednesday, April 24, 2019
स्वतंत्रता की तालाश
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स्वतंत्रता की नाल व्यक्ति के स्वविवेक की नाभि से जुड़ी है। कुछ लोग संविधानों में ढूंढ़ते हैं।
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गंगेश गुंजन
Wednesday, April 17, 2019
Monday, April 15, 2019
बाबा साहेब आम्बेडकर का ख़त : लोगों के नाम
(लोगों के नाम बाबा साहेब आम्बेडकर का यह खत जो डाक
में गुम हो गया था और अब आकर रोली के एक सपने में बरामद हुआ है।रोली मेरे प्रबंध ‘हजूरी गेट का कोरस’की श्री पौध नायिका है।)
!🌹!
बाबा साहेब आम्बेडकर का खत:
लोगों के नाम!
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मेरे प्यारे लोगो !
मैं जानता हूँ तुम मुझे बहुत प्यार करते हो
तुम में से ज़्यादातर तो मेरे लिए जान भी कुर्बान कर सकतेहो
मैं पूरे यकीन से यह मानता हूँ मेरे लोगो !
मैं भी तुम्हारे लिए इसी तरह कई जनम मर सकता हूँ
जैसे इस जीवन में जीता रहा मात्र तुम लोगों को।
लेकिन अपने इसी भरोसे के कारण मुझे डर भी लगता है.
मेरे लिए तुम्हारा प्रेम किसी पल श्रद्धा न बन जाए.
कहीं तुम मुझेए मक़बरा या मीनार न बना डालो या कि
समाज से जुदा, गाँव से दूर बहुत दूर,किसी बियाबान में कोई एक भव्य मंदिर !
कृपया मेरे साथियो!
प्यार है तो कोई बुत मत बनाना मुझे किसी दिन!
बनाना चाहो तो अपनी बस्ती के नलके बनाना
गाँवों में बानाना पोखरा.तालाब।
किसी बाबू की ड्योढ़ी.दालान का खानदानी कुआँ
मत बनाना कभी भूले से भाई मेरे।
सबजनिया कुआँ ही बनाना
पानी ले जाय जिससे गाँव भर समाज
ज़रूरत भर गाँव के लिए कुआँ चापाकल ही बनाना।
गंगा-जमना के साथ एक और नदी बनाना। जी भर नहाना । निर्भय पीना छक कर, प्यास भर पानी ।
उसका स्वच्छ मीठा जल रखने करना पुख्ता इंतज़ाम !
मुक्त करे इस घृणित पेशे से,नई तकनीक करना ईजाद।
बनाओ तो देश भर सुलभ पब्लिक स्कूल बनाना
और-बहुत से और नई दिशायें सेंटर खोलना।
मगर अपने ही सुख में निश्चिन्त मत हो जाना
इस घिनौने पेशे से मुक्त होने में अब और देर मत करना ।
मुझे मालूम है, समाज की प्रथा की उम्र बहुत नहीं होती है
हमारे पेशे की तो और भी कम है
अब जग गए हो तुम सब तो कल खत्म होनी ही है।
लेकिन तब भी सफ़र नहीं होगा आसान।
बापू ने समाज का आखिरी आदमी कहा !
उन तक पहुंचने का रास्ता जो मक्सद है,वह बहुत लम्बा है।
मुझे चेतना बनाना, अंघेरे रस्ते पर ज़हरीले सांप-बिच्छुओं से
बचने के लिए जेब-टार्च की तरह अपने साथ रखना
सको तो मुझे सफर में पास-पास की सराय बनाना।
रखने से पहले सराय मालिक पूछे नहीं किसी बटोही से
आश्रम, उसकी जात, ज़िला उसके गांव का नाम ।
थके हारे यात्रियों में बिन रोक-टोक मुझे करने देना रात भर विश्राम ।
मगर भूले से मुझे पाँचतारा होटेल मत बनाना साथियो ।
कभी मत ।
महानगर में अभी बहुत दूरियां हैं लोग-लोग के बीच।
अब झुग्गी-झोपड़ी मत बनने देना मुझे।खुद बचना और
बचाना । सको तो आज भी अपने इस गरीब और अशिक्षा के
अंधेरे में डूबे हुए लाखों गाँव के बीचोबीच ज़रूरत के
पुस्तकालय बनाना। उपलब्ध हो जाय पढ़ी जाने वाली नई से
नई किताब और प्रकाश
इसकी वजह बनाना मुझे !
मीठे बोल और सुरों का गाना बनाना।
कर्कश आवाज़ और झुलसे हुए आपस के स्वरों का झगड़ालू
शोर कभी मत ! समाज बना कर रखना.
पर याद रहे.ऎसा जातों में बंटा कटा.पिटा.विभेदी विद्वेषी समाज नहीं।
समरस आनन्द के अवसर का सर्व जन उपाय बनाना ।
साथ रखना ।
जीवन का बिल्कुल एक नया ही सांचा बनाना मुझे।
मुझे एक बड़ी बहस बनाए चलना।
सृष्टि के उज्ज्वल सत्य और मानवीय सम्मान का पाठ हो,
वह सार्वजनिक विश्वविद्यालय बनाना । विवाद मत बनाना
साथी विचार बनाकर रखना। मुद्दों के बहस विलासी बौद्धिक
जनों से बचाना। तुम मुझे बहुत प्यार करते हो तो मुझे
जात-पात प्रथा से मुक्त संसार का प्यार ही बनाना ।
बना सको तो ।
समरस धर्म की दिव्य हंसी-खुशी बनाना और बाँटना पूरी दुनिया जहाँ आज भी किसी अभिशापित इतिहास का प्रतिशोध आग बनकर अकसर जला देने आ जाता है हमारे मन-मिज़ाज को अँधेरा कर जाता है ।
मुझे आपसी मतभेद नहीं,सहजीवी वजूद बनाना और विश्व-शान्ति का पाठ।
हिंसामुक्त स्पर्श बनाना मुझे।
आमने-सामने तने हुए तीर-तलवार मत बनाना मेरा।
निश्छल अडिग अपना विश्वास बनाना मुझे लेकिन बुत नहीं ।
कितनी भी बड़ी हो मूरत,वह मूरत ही रहती है।
साबुत सही इनसान के आगे छोटी ही रहती है और बे-जान!
वास्तविक इन दुःखों से आजाद !
बना सको तो आने वाले दिनों मेरे लोगो,
मुझे बने ही दिए रहना इनसान भगवान मत बनाना !
और आखिर में एक और -
बापू और मेरी बहसों का, हमारे विचार के संघर्षो का कभी
नहीं करना इस्तेमाल,गलतफहमी में कभी हमें तुच्छ वर्चस्व की नफ़रत का मैदान मत बनाना।
हमारी उन बहस और विरोधों को
नई ज़रूरी रौशनी की तरह करना तैयार और ,
इतिहास की खुली किताब बनाना।
मिला करें हम इसतरह चौदह अप्रैल को भी,
हर्ज नहीं हर हाल। लेकिन बनाना तो
इन्सानियत का मुकम्मल संविधान बनाना मुझे।
मेरे लोगो जो मुझे बहुत प्यार करते हो
और तुम भी तो हो-मेरी जान !
💐💐
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गंगेश गुंजन
*12अप्रिल 2014.
Saturday, April 13, 2019
पागल पांव चलना चाहते थे
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मुसल्सल राह में कांटे बिछे थे । और पागल पांव चलना चाहते थे !
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...गंगेश गुंजन
Monday, April 8, 2019
स्वतंत्रता
स्वतंत्रता
स्वतंत्रता चक्रव्यूह में फंसे महाभारत के अभिमन्यु की तरह अपनों के शस्त्रास्त्रों से ही घिरी तो रहती है लेकिन वह मरती नहीं है।
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-गंगेश गुंजन
Thursday, April 4, 2019
आत्मा के मूल्य पर। शे'र
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बहुत दामी है ख़ुशहाली ये मेरी।
आत्मा बेच कर ख़रीद लो तुम भी।
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-गंगेश गुंजन
पैरों में नहीं छाले...शेर
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पांवों में कोई छाले ना चाक गिरेबां है।
कैसा है कहे, इश्क़ में बर्बाद हुआ है।
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गंगेश गुंजन
Wednesday, April 3, 2019
हैवानियत से आदमी की जंग
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हैवानियत से आदमी की जंग है आदिम।
लड़ी जाती है ये सब्र,शऊर-ओ
उसूल से।
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गंगेश गुंजन