Saturday, August 31, 2019

स्वाभिमान

     रखो जो स्वाभिमान तो दूब के  
     जैसा।
     बरगद का नहीं,कोई आंधी
     झुका जाये।
     *
     -गंगेश गुंजन

Friday, August 30, 2019

लोकतंत्र


   संसद भर शोर ! वृद्ध विपक्ष का
   लटका हुआ चेहरा,हकलाते बोल,
   दुविधा ग्रस्त विचार ! लोकतंत्र। 

               गंगेश गुंजन
          (उचितवक्ता डेस्क)
   

Wednesday, August 28, 2019

बाग़ी फूल !

    सुबह-सुबह पी रहे धूप और लेते हैं
    स्वाधीन सांस।
    तारों के घेरे से बाहर सिर निकाल 
    कर बाग़ी फूल ! 

                 गंगेश गुंजन

Sunday, August 25, 2019

सुनती भी कहां है सियासत


🌿
    सुनती कहां है अब सियासत भी
    दुखी की।
    लोगों के ग़म लिए और शाइरी में   
    बो दिए।
     *
                       🌾
                  गंगेश गुंजन.

Saturday, August 24, 2019

रोये मगर ज़रा-सा नहीं । शे'र

    रोये मगर ज़रा-सा नहीं उसके नाम 
    पर।
    जिसने सभी सुकून ग़मों में डुबो  
    दिए।

                              -गंगेश गुंजन

... ज़माने के हो लिए

    🍂🍂
 
   अपना नहीं ‌मिला तो ज़माने  के हो 
   लिए।
   दिन इस तरह से मैंने ज़िन्दगी के ढो
   लिए।                           🍂🍂
                  गंगेश गुंजन   

Thursday, August 22, 2019

महान् और साधारण

🌿
   साधारण मनुष्य,विशेष दिन-तिथि
   में जन्म लेकर भी ऐतिहासिक नहीं
   बन पाता है। जबकि महान् व्यक्ति
   अपनी मृत्यु से साधारण दिन-तिथि
   को भी इतिहास-स्मरणीय बना     
   जाते ‌हैं।                             🌳  
                  गंगेश गुंजन
              (उचितवक्ता डेस्क)

Tuesday, August 20, 2019

यक़ीन रख हम पर


🌾
    यक़ीन रख हम पर और नज़र। 
    सहर हूं  मैं, ज़रूर आऊंगा।
                                        🌻
               गंगेश गुंजन
                २०.८.'१९.

Saturday, August 17, 2019

राजभाषा, अंग्रेज़ी और संविधान !


हिन्दी को भी मुक्त कीजिए,सरकार !
                       *
देश की हिन्दी और अंग्रेजी की संवैधानिक भाषा-व्यवस्था और राज्य व्यवस्था में कश्मीर की धारा ३७० और संवैधानिक व्यवस्था एक समान ही नहीं लगती है ? तो यह हिन्दी को भी अंग्रेज़ी से मुक्त करने का वक़्त नहीं है? कश्मीर की साधारण जनता की तरह हिन्दी भी देश की जनता ही तो है। अंग्रेज़ी महज़ १० वर्षीय वैकल्पिक सुविधा के संवैधानिक प्रावधान का ७० वर्षों ‌से अनावश्यक और मनमाना सुविधा-भोग कर रही है।राजभाषा हिन्दी आज भी लगभग अंग्रेज़ी के अधीन,दास होकर जीवन बिता‌ रही है। इस कारण राष्ट्रीय मेधा और प्रतिभा की स्वाभाविक और वांछित प्रगति नहीं हो पायी।प्रगतिअवरुद्ध हो रही है।
     हिन्दी सत्तर साल से लाचार है ! क्यों ?
        गंगेश गुंजन।  १८.८.'१९.

खंडहर की लिपि


    साम्राज्य खंडहरों की लिपि में
    पढ़े जाते हैं !
                  गंगेश गुंजन
             (उचितवक्ता‌‌ डेस्क)
     

Friday, August 16, 2019

आज्ञाकारी सूर्य !

                     🌻

  महाप्रतापी सूर्य भी,सृष्टि का आदेश 
  मानता है। नित्य समय पर उगता है  
  और अस्त हो जाता है।मनुष्य किस
  गुमान में प्रकृति की अवज्ञा करता 
   है ?
                      🌻
          (उचितवक्ता डेस्क)

Thursday, August 15, 2019

...ठहर गये तुम भी

     ज़िन्दगी से गुज़र गये तुम भी।   
     रास्ते में ठहर गये तुम भी !
                           ०
      मानते हैं बहुत है धूप कड़ी।
      झेल पाए न दोपहर तुम भी।

                         -गंगेश गुंजन

Wednesday, August 14, 2019

स्वतंत्रता दिवस की बधाई

       
      
                  💐🙏💐
        स्वतंत्रता दिवस की बधाई !

        स्मृति,संस्कृति की आयु होती
        है‌,भविष्य का लेख।

                 गंगेश गुंजन

कम्यूनिस्ट कवि की हवाई यात्रा


      पड़ोसी समाधान प्रसाद जी का  
      कहना है :

       प्रगतिशील कविता पाँव पैदल
       आयी थी।पिछड़ गयी।आख़िर
       कम्यूनिस्ट कवि भी हवाई 
       जहाज़ पर यात्रा तो करते ही हैं।              
                     🌍
            
            -उचितवक्ता डेस्क-

Tuesday, August 13, 2019

.। तमाम लोग ।



                   कहीं से कोई नहीं आया कितना पुकारा।
मिज़ाजपुर्सी में घर मिरे आये तमाम लोग।
- गंगेश गुंजन

Monday, August 12, 2019

...देश में देश बदल गया


मेरे गांव में गांव बदल गया। बिहार में बिहार बदल गया। देश में देश बदल गया।कश्मीर में कश्मीर नहीं बदला होगा !
                 🕊️ उचितवक्ता डेस्क

। ख़्वाबों के घर ख़ूबसूरत ।


                   🌾🌾
    ख़ूबसूरत हैं ख़्वाबों के घर💧
    दरकार तक नहीं कोई बिल्डर।
                     🌧️
                गंगेश गुंजन
           (उचितवक्ता डेस्क)

Saturday, August 10, 2019

* सियासत में आदमी *


                     🌻
    कुछ रोज़,माह या भले और भी 
    कुछ ज़्यादा।
    सियासत बदल देती है आदमी
    का फ़ल्सफ़ा।         
                     🌾
               गंगेश गुंजन

Friday, August 9, 2019

। डुप्लिकेट काल ।

  
                     🌓
   सच और झूठ दोनों डुप्लिकेट।  
   इतिहास में यह डुप्लिकेट-काल‌
   चल रहा है ।       
                   ! 🌍 !
               गंगेश गुंजन
            उचितवक्ता डेस्क

Thursday, August 8, 2019

समस्या बडगद


                       🌾🌾
      भविष्य में बरगद और पहाड़ हो  
      जाने वाली समस्या भी प्रारम्भ
      में दूब के सामान ही मामूली
      लगती है।
      
                   गंगेश गुंजन        
              (उचितवक्ता डेस्क )

Tuesday, August 6, 2019

भाषा

                    🌱
                   भाषा

   गुज़ारे लायक़ भाषा ‌की भूमि
   होती तो सब के पास है लेकिन
   भाषा के असली ‌गृहस्थ,कवि-   
   लेखक ही ‌हैं।भाषा के गृहस्थ,  
   स्वामी नहीं।कुछ कवि-लेखक  
   भाषा के स्वामी जैसा बर्ताव
   करते लगते हैं।
                   🌱🌱
             उचितवक्ता डेस्क

Monday, August 5, 2019

संस्कृति लफ़्ज़ और ...

                     🌻

      संस्कृति लफ़्ज़ और तलफ़्फुज़
      भर नहीं है। अच्छे-अच्छों को
      यह ग़लतफ़हमी है।
                    🌳     
          (उचितवक्ता डेस्क)
               गंगेश गुंजन

कहने से नहीं करने से क्रान्ति

                       🔥
        क्रान्ति गाने से नहीं,लाने से
        आती है। जैसे कहने से नहीं,  
        करने से,प्रेम आता है।
                   🕊️🕊️
            (उचितवक्ता डेस्क)
                 गंगेश गुंजन

।। ग़ज़ल ।।

               ग़ज़ल
                  १. 
    कभी नहीं  बेचारा दिखना
    दिखना तो ध्रुवतारा दिखना।  
                  २. 
    सुनना  तो  मां  के कानों से 
    कहना तो मां के मुख कहना
                  ३.
    बैठें  पिता उच्च आसन पर 
    पांवों में  तो मां  के  बैठना।
                 ४. 
    एकान्तों  में जोखिम-खतरे 
    रहना हो  बस्ती  में   रहना
                 ५. 
    झुकना  तो फल के वृक्षों-सा
    तनना तो तलवार में  तनना
                  ६. 
    रोना मत कुछ करने लगना
    गाना  गाना चलने  लगना।
                  ७. 
    कभी नहीं क़िस्मत पर रोना
    हां, मजबूरी  पर पछताना।
                   ८. 
    जहां - तहां मत बैठ-बैठ कर
    मंज़िल से  पहले थम जाना।
                   ९. 
    पत्थर  में पानी - सा बहना
    पानी -सा पत्थर को सहना।
                  १०. 
    दोस्त  ढूंढ़ना   यार  बनाना
    उसको अपना सपना कहना।
                     *
             गंगेश गुंजन

Saturday, August 3, 2019

सुख का आकार

सुख का आकार
*
उस दिन कुछ लोगों में बहस छिड़ी कि सुख का आकार कितना बड़ा है।सब सुख एक समान तो नहीं होता,कोई छोटा कोई बड़ा होता है। तो यह छोटा-बड़ा क्यों होता है ?'
एक बुजुर्ग बैठे-बैठे मुस्कुरा रहे थे। हस्तक्षेप करते हुए बोले-
‘सुख भला बड़ा छोटा क्यों होगा? ध्यान दो तो सब तो दिल में ही होता है। हृदय में ही ठहर कर रहता है। अगर कोई सुख बड़ा होता तो फ़िट ही नहीं होता। ह्रदय फट जाता। या छलक कर उससे बाहर गिर जाता। और जो सुख छोटा होता तो जल से आधा भरे घड़े की तरह बजता रहता। लेकिन ऐसा होता तो नहीं है।सुख में हम सभी मगन भर होते हैं। क्यों ?
‘तो फिर,अंकल ?' एक युवक ने उत्सुकता से टोका।
‘यही कि जितना बड़ा बर्तन रहता है उसमें उतनी ही वस्तु रखी जा सकती है। ठीक वैसे ही हृदय की हालत है।इसमें छोटा बड़ा सुख समझना हमारी अपनी भूल है। दरअसल सुख का आकार हमारे भीतर उपस्थित अपने हृदय के आकार के अनुपात में होता है।यही समझने की बात है। इसका मतलब यह भी हुआ कि जिस व्यक्ति के हृदय में सुख या दुख  ग्रहण करने की जितनी क्षमता है उस सुख या दु:ख का वही आकार समझना चाहिए। यह पूरा मनुष्य के अपने स्वभाव,अपनी समझ,संवेदनशीलता और जीवन के बारे में अपने नजरिये पर निर्भर है। इसी से यह भी निर्धारित होता है सुख या दु:ख का हमारा अनुभव भी।अब देखो,बड़े से बड़े दु:ख को कुछ लोग तिनके की तरह उड़ा देते हैं। जबकि छोटे से छोटे सुख को कुछ लोग कुतुब मीनार बना लेते हैं । ऐसा,अनुभव करने वाले या इस अनुभव को लेने वाले व्यक्ति की अपनी पात्रता और अपनी बनावट 
पर निर्भर होता है। सुख या दु:ख का आकार जिस हृदय में आया है उसी आकार का होता है।
  सब चुपचाप सोचने रहे।
                        *
गंगेश गुंजन,
29 अप्रैल 2019.

सुख का आकार

                                                                 

सुख का आकार
*
उस दिन कुछ लोगों में बहस छिड़ी कि सुख का आकार कितना बड़ा है।सब सुख एक समान तो नहीं होता,कोई छोटा कोई बड़ा होता है। तो यह छोटा-बड़ा क्यों होता है ?'
एक बुजुर्ग बैठे-बैठे मुस्कुरा रहे थे। हस्तक्षेप करते हुए बोले-
‘सुख भला बड़ा छोटा क्यों होगा? ध्यान दो तो सब तो दिल में ही होता है। हृदय में ही ठहर कर रहता है। अगर कोई सुख बड़ा होता तो फ़िट ही नहीं होता। ह्रदय फट जाता। या छलक कर उससे बाहर गिर जाता। और जो सुख छोटा होता तो जल से आधा भरे घड़े की तरह बजता रहता। लेकिन ऐसा होता तो नहीं है।सुख में हम सभी मगन भर होते हैं। क्यों ?
‘तो फिर,अंकल ?' एक युवक ने उत्सुकता से टोका।
‘यही कि जितना बड़ा बर्तन रहता है उसमें उतनी ही वस्तु रखी जा सकती है। ठीक वैसे ही हृदय की हालत है।इसमें छोटा बड़ा सुख समझना हमारी अपनी भूल है। दरअसल सुख का आकार हमारे भीतर उपस्थित अपने हृदय के आकार के अनुपात में होता है।यही समझने की बात है। इसका मतलब यह भी हुआ कि जिस व्यक्ति के हृदय में सुख या दुख  ग्रहण करने की जितनी क्षमता है उस सुख या दु:ख का वही आकार समझना चाहिए। यह पूरा मनुष्य के अपने स्वभाव,अपनी समझ,संवेदनशीलता और जीवन के बारे में अपने नजरिये पर निर्भर है। इसी से यह भी निर्धारित होता है सुख या दु:ख का हमारा अनुभव भी।अब देखो,बड़े से बड़े दु:ख को कुछ लोग तिनके की तरह उड़ा देते हैं। जबकि छोटे से छोटे सुख को कुछ लोग कुतुब मीनार बना लेते हैं । ऐसा,अनुभव करने वाले या इस अनुभव को लेने वाले व्यक्ति की अपनी पात्रता और अपनी बनावट 
पर निर्भर होता है। सुख या दु:ख का आकार जिस हृदय में आया है उसी आकार का होता है।
  सब चुपचाप सोचने लगे।
*
गंगेश गुंजन,
29 अप्रैल 2019.

रेत की दीवार

   
  🕊️
      ग़ैरों के भरोसे से अपनों को 
      छोड़ आये।        
      वो रेत की दीवार थी ये रेत का  
      सहरा है।
                       🕊️
                             गंगेश गुंजन