Wednesday, September 15, 2021

लफ़्फाज़ी

 *         लफ़्फाज़ी सिर्फ़
                   🌀
     लफ़्फाज़ी सिर्फ़ राजनीति में
     नहीं,साहित्य में भी है। तो 
     अनुपात: दोनों ही क्षेत्रों में
     अपनी-अपनी जगह
     विश्वसनीयता खत्म हो चुकी है
     अथवा संदेहास्पद अस्तित्व में
     है।
            #उचितवक्ताडेस्क।

                गंगेश गुंजन

Tuesday, September 14, 2021

ख़ुदग़र्ज़ ज़माना है

ख़ुदग़र्ज़ ज़माना है सब पर ना भरोसा कर। क़दमोंमें रख यक़ीं डर डराके मत चला कर।

               #उचितवक्ताडेस्क।

                    गंगेश गुंजन

Sunday, September 12, 2021

बूंद-बूंद अमृत भरा था उसने...

                     |🔥|
           ज़िन्दगी में
           अब किया महसूस
                              मैंने।
      बूंँद-बूंँद अमृत भरा था
                     मुझमें
                          उसने।
                    ज़िन्दगी में
         अब किया महसूस
                           मैंने।
                                  
                 #उचितवक्ताडेस्क।

                      गंगेश गुंजन

Saturday, September 11, 2021

अपवाद का विशिष्ट सन्दर्भ

                     |🌻|
   वास्तविकता तो यह है कि सभी
   काल के लिखे गए समस्त
   साहित्य में भी जो अपवाद-मूल्य
   की कृति होती है प्राय: वही
   विशिष्ट,कालजयी होती है। अतः
   हाशिया अक्सर ही कोई विशिष्ट
   संदर्भ भी बन जाता है।
                       |🌍|
              #उचितवक्ताडेस्क।

                   गंगेश गुंजन

संस्मरण साहित्य

                🌀🌟🌀
  उड़ाया हुआ रत्न,अपने                     सिर-मुकुट में जड़ कर                     प्रदर्शित करने जैसी कला               साहित्य में प्रायश: संस्मरण               कहलाती है।

      अपवाद असंभव नहीं है।
          #उचितवक्ताडेस्क।

                गंगेश गुंजन

Sunday, September 5, 2021

|| भविष्य ||

                    'भविष्य'
  मनुष्य का भविष्य अदृश्य आशंकाओं     और असीम सम्भावनाओं का एकछत्र     साम्राज्य है।
                     |🌓|          

            #उचितवक्ताडेस्क।

                  गंगेश गुंजन

Saturday, September 4, 2021

हिन्दी में धीरोदात्त आलोचक

                         🌍
       ।।   धीरोदात्त आलोचक   ।।
   'बताइए तो हिन्दी में अनुमानत:
   कितने धीरोदात्त आलोचक
   होंगे ? साहित्य शास्त्र में विहित
   काव्य नायक-नायिकाओं की
   तरह आलोचकों के भी प्रकार
   होते ही होंगे।
      इस कोरोना काल में भी मित्र
   समाधान प्रसाद जी बैठे-बैठे
   अचानक कुछ ऐसी ही समस्या
   उपस्थित करते रहते हैं कि कुछ
   कहते नहीं बनता। अभी पिछले
   ही दिन मैथिली साहित्य के दो
   धीरोदात्त आलोचकों का नाम
   पूछ बैठे थे। आज अचानक
   हिन्दी के धीरोदात्त आलोचक
   बतलाने को कहा।
  'अव्वल तो आलोचक का ऐसा
   कोई कोटि-निर्धारण होगा मैं
   उससे तनिक भी अवगत नहीं हूँ।
   दूसरे कि ... ' मैंने अपनी लाचारी
   व्यक्त की जिसे अनसुना करते
   हुए बोल गये कि :
   बाकी तीन धीर प्रशान्त,ललित
   और धीरोद्धत को वे स्वयं भली
   भांँति जानते हैं।
             #उचितवक्ताडेस्क। 

                 गंगेश गुंजन

Friday, September 3, 2021

। प्रेम ।

       स्वभाव से प्रेम पहाड़ है और       व्यवहार में नदी।

                      *
           #उचितवक्ताडेस्क।

                गंगेश गुंजन

Thursday, September 2, 2021

गोद मे बच्चा

                  |🌍|
             गोद में बच्चा
                     *
   अभी कुछ दिन पहले एक
   आदरणीया महिला ने मुझे
  मित्रता का प्रस्ताव भेजा। उनकी
  गोद में बहुत सुंदर लड़की थी
  लड़की ही थी बच्ची मेरे मन में
आया कि उनको लिखूं कि यह
मैत्री सादर सहर्ष क़बूल है बशर्ते आप अपनी बच्ची थोड़ी देर के लिए मुझे गोदी में लेने के लिए दें।' परन्तु मेरा यह लिखना क्या Facebook शिष्टाचार के भीतर होता ?
लेकिन सच बात है दूसरी भी है और वह यह है कि...
मेरा एक अनुज मित्र है। मुझे बहुत प्रिय- यादवेंद्र। आप में से भी बहुतों का मित्र है। ऐसा गुणी है ही वह। (होंगे मैं जानबूझकर नहीं लिखता हूंँ।)
   बहुत दिनों से उसकी भी फोटो में उसकी गोदी में एक ‘भुवन मोहन शिशु’ है। मैंने उसको लिखा- ‘थोड़ी देर के लिए मुझे इसे गोद में लेने दो।’ इसके बाद भाई ने ऐसा ‘पतनुकान’ ले लिया है कि पूछें मत। (मेरे इस अनुभव के लिए मैथिली का ‘पतनुकान’ शब्द ही एकमात्र पूरा कहने वाला शब्द लगा सो मुझे लाचारी यही लिखना पड़ा। पतनुकान का मोटामोटी अर्थ सिर्फ इतना ही कह सकता हूं ऊपर पेड़ के सघन पत्तों में छुप कर बचने वाली साहसी चतुराई।)। जवाब तो देना दूर उसके बाद तो उसका 'लेख- शब्द-दर्शन' भी दुर्लभ है। जब कि यादवेंद्र की गोद का वह बच्चा कहीं ना कहीं मेरा भी नाती पोता कुछ जरूर है !
       गांँव देहात के सहज सरल जीवन में मेरा कई बार देखा हुआ है। किसी मांँ की गोद में प्यारे बच्चे को देखकर अगर उस आदमी ने प्यार से उसे फिर दोबारा देख लिया गोदी में लेने की इच्छा प्रकट की, तो वह मांँ बच्चे को झटपट फुर्ती से आंँचल में छुपाने लगती थी। छुपा लेती थी। मतलब होता था वह बच्चे को बुरी नजर लगने से बचाती थी। यह एक बार नहीं अनेक बार का अनुभव है।
   सोचता हूंँ कहीं न कहीं उसके मन में भी मेरे गांँव या सभी ऐसे गांँव की वही कोई सरल-सहज मांँ तो नहीं जो जमाने की बुरी नजर से बचाने के लिए बच्चे को आंँचल में छुपाए रहती है छुपाती चलती है।
  मगर जो भी हो यह बात है बहुत अच्छी।
  इसे इसे बचाना चाहिए। इस भाव को महज़ कोई प्रचलित दकियानूसी मानना मुझे लगता है कुछ ज्यादा ही आधुनिक और बुद्धिवादी होना हुआ।
   अंतत: कहीं यह,युग-युग से नितांत असुरक्षित शक्तिहीन नारी की अपराजेय मातृ-भावना ही है। अक्सर पुरुष भी साझा करते हैं।
                    *
-गंगेश गुंजन 6 सितंबर 2017.

      #उचितवक्ताडेस्क।

Wednesday, September 1, 2021

बैठे ठाले : भोले भाले !

🌍   भोले भाले : बैठे ठाले !
                  - सोना-
बड़ा और दामी घमंडी होता है। जैसे सोना। वह निर्धन के पास नहीं रहता। जब रहता है तो धनवालों के घर। ग़रीब से घृणा करता है। उन से दूर-दूर रहता है। हालांँकि उसका स्वभाव ही ऐसा है कि वह जहाँ रहने लगता है वह अमीर हो जाता है। वह धनी कहलाने लगता है। तो सोना ग़रीब के यहाँ रहने लगे तो वे भी ग़रीब क्यों रह जाएँगे ? मगर नहीं। सोना तो समाज में व्याप्त वास्तविक जाति वर्ण भेद से भी अधिक द्वेषी,नस्लवादी और होता है।
गरीबों से द्वेष रखता है और गहरी घृणा।
   इतना ताकतवर होकर सोना डरपोक बहुत होता है। छिने जाने या चुरा लिए जाने के डर से वह विशेष अवसर और उत्सवों पर ही बाहर आता है। ज़्यादातर बक्सा-संदूकों में बंद रहता है।आजकल तो
और उसे अपने ही घर में रहने से डर लगता है सो बैंकों के लॉकरों में जाकर,छुप कर रहता है। 
    विवेकहीन भी बहुत होता है सोना। जबकि कहते हैं,विवेकहीन बलशाली बाकी समाज के लिए बड़ा ख़तरनाक हानिकारक होता है। इसीलिए बाकी लोग उससे बच कर रहते हैं उसे कभी अपना नहीं समझते।
    वह ज़रा शान्त होकर,ठंडे दिमाग़ से सोचे और हिसाब लगाये तो जान सकता है कि अपनी सुरक्षा के लिए जितना धन वह साल भर में ख़र्च कर डालता है उतने को अगर समाज भर के गरीबों में बँट फैल कर रहने लगे तो उसे इतना डर डर कर रहने की भी क्या ज़रूरत होगी और दुनिया में
घमंडीलाल भी नहीं समझा जाएगा?
और सबसे बड़ी बात तो यह कि समाज में सर्वत्र ख़ुशहाली फैल जाएगी सो अलग।  बहुत कुछ दुनिया रह कर जीने लायक हो जाएगी।                 
                 #उचितवक्ताडेस्क।

                      गंगेश गुंजन