डायरी-सा
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अतीत की आग झुलसने से आगाह करती है,बचाव के अवसर बताती है परंतु वर्तमान की आग तो आपको जला कर राख कर डालती है।आग धार्मिक,सांप्रदायिक,भाषायी और क्षेत्रीय द्वेष की हो तो उत्कृष्ट से उत्कृष्ट समाज और जीवन तक को और अधिक वेग में,और भी जल्द मटियामेट कर देती है।
वर्तमान की यह आग राजनीतिक विचारधाराओं के नाम पर कुछ तथाकथित सामाजिक परिवर्तनकारी तुच्छ-स्वार्थी लोग ही लगाते रहते हैं। 65 साल की अनुभव-यात्रा में एक साकांक्ष सामाजिक प्राणी के नाते मैंने जो अनुभव किया है वह यही है कि किसी भी विचारधारा, राजनीतिक दल,नेता अथवा और इसी तरह के किसी संभ्रांत वर्ग लोग या शक्तिशाली एनजीओ को अपनी-अपनी ज़रूरत के मुताबिक़ ऐसी आग लगाते रहने से कोई परहेज़ नहीं है। वर्तमान में आवश्यकता और अवसर के अनुसार उनकी रुचि ऐसी आग लगाते चलने में ही रहती है। इस देश की यही नियति हो गयी है ।इसमें कोई भ्रम नहीं होना चाहिए ।कोई भी दल या कोई भी विचारधारा अपने वजूद को मजबूत करने के लिए अवसर अवसर पर वर्तमान में आग लगाना अपने एजेंडे में रखता है। इसमें शायद ही कोई अपवाद है ।
सो हमें समझना यह है कि हमारे वर्तमान में आग लगे ही नहीं। आग लगाई जाय उससे पहले लोग समझ लें। इसके लिए मेरे मन-मस्तिष्क में
एक विचार तो यह है कि दो-चार साल तक देश के तमाम नकारात्मक अतीत का जिक्र रोका जाय । एक प्रकार से युद्ध विराम की तरह।
लेकिन यह करना होगा सभी राजनीतिक दलों,विचारधाराओं और अपने इस देश के महज़ थोड़े प्रतिशत संभ्रांत लोगों,कतिपय ढुलमुल बुद्धिजीवी और सीमित ही सही सुविधा कामी संचार माध्यम के एक्टिविस्ट, और प्रशासकों को।
तो क्या वे इसके लिए तैयार होंगे - दो-चार साल तक देश के तमाम नकारात्मक अतीत का जिक्र रोका जाय। एक प्रकार से युद्ध विराम की तरह ?
आप क्या सोचते हैं साथियो !
gangesh Gunjan 16 दिसंबर, 2017