जुबां सबकी अपनीअपना मिज़ाज होता है इक रिरियाए जी हुजूर दूसरा दहाड़ता है।
गंगेश गुंजन
# उचितवक्ता डेस्क।
जुबां सबकी अपनीअपना मिज़ाज होता है इक रिरियाए जी हुजूर दूसरा दहाड़ता है।
गंगेश गुंजन
# उचितवक्ता डेस्क।
ग़ज़लनुमा
किसी को ग़म नहीं होता किसी का कभी इसका कभी धोखा उसका।
आप करते हैं वफ़ा की बातें इसी में तो जिगर जला उसका।
एक सी है नहीं सबकी तक़दीर कहीं सीधा नसीब, उल्टा उसका
फेर ली है निगाह अपनों ने मिरा नहीं तो क्यूं क़सूर उसका।
बुलाता मैं जिसे सदा देता नाम लव पर नहीं आया उसका
जानते भी कम बस्ती के लोग अब ज़माना भी कहां गुंजन का।
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गंगेश गुंजन
# उचितवक्ता डेस्क
मुश्किलों को पार कर हम गांव आये थे ख़ुशी में, पांव जो छूने झुके काका ने पीछे कर लिए।
गंगेश गुंजन # उचितवक्ता डेस्क।
शाम के बाद भी घर में अंधेरा देखकर अब। 'अंधेरा क्यूं है ' पूछने नहीं आते पड़ोसी।
गंगेश गुंजन, # उचितवक्ता डेस्क।
रूमानियत
मनुष्य के अनुभव या विचार की कोई भी भाव प्रवण मनोदशा एक रूमानियत ही है।क्रान्तिकामी ओज-उद्गार भी।
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गंगेश गुंजन # उचितवक्ता डेस्क।
घरघुसड़ा बनने से रोका क्योंकि...
जवानी में जब घरघुसना बनना चाहते थे तो समाज के डर से पिता जीने रोका क्योंकि तब पुरुषों का अधिक देर तक आंगन में रहना वर्जित था। समाज में हंसी होती थी।
अब इस उम्र में कोरोना ने आकर घरघुसड़ा बना कर छोड़ दिया है। सोशल डिस्टेंसी ऊपर से अंकुश है...विडंबना देखिए।
# उचितवक्ता डेस्क।
मनुष्य की नैतिकता, हाथी के कान में लटके हुए अंकुश की तरह होती है।
गंगेश गुंजन # उचितवक्ता डेस्क।
कोई दुखड़ा रोये तो इज्ज़त से सुनना उसको मत करना नाराज़ दु:ख ख़ुद्दार बहुत होता है।
गंगेश गुंजन। # उचितवक्ता डेस्क।
सृष्टि की समस्त विधाओं में नवाब कविता,आम आदमी के दु:ख दर्द को सबसे पहले,सबसे अधिक समझती और महसूस करती है। सब से पहले विचार होने तक कहती भी है।
यह विरोधाभास-सा लगता है लेकिन यथार्थ है। गंगेश गुंजन
# उचितवक्ता डेस्क।
सफ़र में साथ नहीं अपना अहसास तो दिया।इनायत ये भी ज़िंदगी पर कुछ कम नहीं उसकी। गंगेश गुंजन # उचितवक्ता डेस्क।
लोकतंत्र आदर्श हो तो विपक्ष से अधिक सत्ता पक्ष बेचैन रहता है।
गंगेश गुंजन # उचितवक्ता डेस्क।
दाग़ ज़ख़्म से ज्य़ादा उम्रदराज हुआ करता यह सच है। घाव सूख जाता है दाग़ फ़साना बन कर रह जाता है।
गंगेश गुंजन
# उचितवक्ता डेस्क।
🌺 कोरोना बुलेटिन 🌺
२७मार्च,२०२०.
आज विश्व रंगमंच दिवस पर विशेष भेंट-दो पात्रीय संवाद-नाट्य:
। इकलौता दृश्य ।
[चारों ओर से बंद ड्राइंग रूम में बैठे आमने सामने दो लोग-बेचैन बुज़ुर्ग और बेफ़िक्र युवक। दादा-पोता अथवा गांव दालान आदि ]
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दादा : (बहुत व्याकुलता से खीझ और गुस्से में) : पता नहीं यह अभागा कब जायेगा यहां से।
पोता : जिस्म का फोड़ा नहीं ना है दादू कि एक-दो बारी मरहम लगा देने से चला जाये।आप परेशान क्यों हो रहे हैं? चला जाएगा न।'
दादा : अरे मगर कब जाएगा ? चला जाएगा,चला जायेगा करता है और भी ज़्यादा ग़ुस्साते और ख़ीझते हुए) ।
पोता: कोई देसी तो है नहीं। इम्पोर्टेड बीमारी है दादू। जानते हो। जब तक का होगा उसको वीसा। वीसा ख़त्म होते ही चला जाएगा।(इत्मीनान से मुस्कुराते हुए )...और आपके ज़माने में वो जो
एक गाना बड़ा मशहूर हुआ था न दादू ?
दादा: (अनमने, उदासीन भाव से)कौन-सा गाना ?
पोता : जाएगा -आ-आ जाएगा -आ-आ, जाएगा
जाने वाला,जाएगा-आ-आ….
दादा : अरे वह आयेगा आयेगा था। जायेगा जायेगा
नहीं...(तनिक सहज होते हुए गाना सही
किया तो किशोर वय पोते ने मुस्कराते हुए
कहा-)
पोता: हां दादू। मगर अब आपका आयेगा वाला पूरा सिक्वेंसदल गया। यह तो जाएगा-जाएगा वाला है।
(और काल्पनिक गिटार छेड़ता हुआ बड़ी अदा से तरन्नुम में गाने लगता है-जाएगा जायेगा जायेगा जाने वाला जायेगा….
दादा: बड़ा शैतान हो गया है तू...रुक। ( वह थप्पड़ दिखा कर उसकी ओर लपकने लगते हैं और डरने का अभिनय करता हुआ पोता,गाते-गाते ही ड्राइंगरूम का पर्दा समेटने लगता है।/अथवा स्थान के अनुकूल दालान के ओसारे से उतर जाता है। सचमुच में गिटार की कोई मीठी धुन सुनाई पड़ती है।)
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🦚उचितवक्ता डेस्क प्रस्तुति।🦚
ज़रा इक आह भी उठने न दी मैंने सफ़र में एक बार। पड़ा जो पाँव पगडंडी पे अपने गाँव आकर रो पड़े।
गंगेश गुंजन # उचितवक्ता डेस्क।
अब इसे रक्खें कहाँ पर इतने छोटे ऐसे घर में लौटी है अब जवान होकर बचपन में खो गयी खुशी।
गंगेश गुंजन # उचितवक्ता डेस्क।
। शिक्षा और भाग्य ।
साधारण जन-मानस में गहरे बैठे हुए भाग्यवाद को कोई आत्मनिर्भर सक्षम शिक्षा-प्रणाली ही उखाड़ कर फेंक सकती है। और लोकतंत्र में यह काम सदैव,सत्ता की राजनीतिक इच्छाशक्ति और चरित्र पर निर्भर रहता है।
गंगेश गुंजन
# उचितवक्ता डेस्क।