Thursday, July 29, 2021

नागार्जुन और अज्ञेय

              आलोचना से इतर

    नागार्जुन हिन्दी के अनुकरणीय लेखक
    हैं और अज्ञेय स्पर्धेय।
                       |🌸|
                  गंगेश गुंजन
            #उचितवक्ताडेस्क।

Wednesday, July 28, 2021

मतला और शे-एर


    किसी मतले पे सो गया हूँ मैं
    ग़ज़ल ग़ालिब की हो गया हूँ मैं।
 
    हाल बेहाल मैं यों ही  नहीं हूँ
    बहुत हैवान सदी ढो रहा हूँ मैं।
                   गंगेश गुंजन
              #उचितवक्ताडेस्क।

Monday, July 26, 2021

दो स्वतंत्र दो पँतिया

 🌻|🌻🌻🌻|🌻🌻🌻|🌻🌻

    जिसने उसकी जीवन भर होने
    ना दी इक रुसवाई।
    आती रुत में उसने उसको सरे
    आम बाज़ार किया।
                  ‌।२.।
    जितना रूखा-सूखा रस्ता
    मुश्किल जितनी मंज़िल थी।
    कहाँ कहीं सुस्ताये, की पर्वाह
    पांँव के छालों की।
                  |🌻| 

               गंगेश गुंजन
           #उचितवक्ताडेस्क।

Saturday, July 24, 2021

पुस्तक

                    पुस्तक

कई दफा पुस्तक आपकी होती है और उसमें जगह-जगह, ख़ास कलम, लाल-नीली रोशनाई से की गई रेखांकित पंक्तियाँ किसी और की। ये निशान उस पुस्तक की उम्र में गहरे जुड़े रहते हैं और आपकी स्मृतियों से।

                        |🌻|

                   गंगेश गुंजन    

               #उचितवक्ताडेस्क।

Wednesday, July 21, 2021

... अंधेरे छाँटते हैं...

🛖|
             अंधेरे छांँटते हैं
                     *
   पुराने  घर में  रातें  काटते हैं।
   काटते क्या अंधेरा छांँटते हैं।

   रौशनी ही नहीं जब मेरे घर में
   तीरगीयाँ सहर तक काटते हैं।

   ख़ुशी अबतक मयस्सर ही नहीं जब 
   मिले हैं दु:ख तो दु:ख ही बाँटते‌ हैं।

   वो बूढ़े हैं जो उस घर के  दादा
   वक़्त बेवक़्त कितना खाँसते हैं।

   अजब मातम का डेरा जग हुआ है
   लोग जीने को दु:ख भर काटते हैं।

    बड़ा सुकुमार है  दादी का पोता
    कहे  दादी  को- 'दादा डाँटते हैं।'

   किसी पल मरने वाले ज्योतिषीजी
   अजब है   भाग्य  मेरा  बाँचते‌ हैं ।

   अनर्गल करने वे कविता में हमको,
    ख़ुद को कवि निराला ही आँकते हैं।

    नहीं आते अब उसके छलावे में
    रात भर खुली आँखों जागते हैं ।

    छुपा कर रौशनी रक्खेंगे कब तक
    हम उनके अंधेरे जब फाँकते हैं।
                       *
                गंगेश गुंजन,
                २४.जुन.'२१.

              #उचितवक्ताडेस्क।

Tuesday, July 20, 2021

जिस्म रूह की तफ़्सील है

 ...बोले तो यह जिस्म,
    रूह की काम चलाऊ तफ़्सील भर है।        कोई मुकम्मल नहीं।
    क्या कहते हैं ?

            🌘 गंगेश गुंजन
   #उचितवक्ताडेस्क।

Wednesday, July 7, 2021

आधी हक़ीक़त

हक़ीक़त जो हो न आधी तो कठिन है ज़िन्दगी।

मुकम्मल मिलती नहीं है इसलिए सब रौशनी।

रात दिन यूँ चाँद और सूरज में बांँटा तब दिया।

इशारा ये ही तो क़ुदरत ने कभी का कर दिया।

                 गंगेश गुंजन

             #उचितवक्ताडेस्क


Tuesday, July 6, 2021

उम्मीदों के पंख

 🌈
       जब से कन्धों पर उग आये
       आशाओं के पंख।
       धरती पर लड़ना मुश्किल से
       आसाँ लगता है।             🌈
       

               गंगेश गुंजन
            #उचितवक्ताडेस्क।                                             

आज्ञाकारी मॉम-डैड

🏡|🏘️

    पहले बेटी-बेटे आज्ञाकारी होते थे।
    समाज में उनकी ही प्रशंसा होती थी।
    अब माँ-बाप आज्ञाकारी होते हैं।और         आज्ञाकारी मॉम-डैड आजकल सोसा-       यटीमें बहुत लोकप्रिय हो रहे हैं।

                    गंगेश गुंजन

               # उचितवक्ताडेस्क।