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जिसने उसकी जीवन भर होने
ना दी इक रुसवाई।
आती रुत में उसने उसको सरे
आम बाज़ार किया।
।२.।
जितना रूखा-सूखा रस्ता
मुश्किल जितनी मंज़िल थी।
कहाँ कहीं सुस्ताये, की पर्वाह
पांँव के छालों की।
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गंगेश गुंजन
#उचितवक्ताडेस्क।
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