डरी सहमी इबारत रोष में हो तो मेरी होगी। तबस्सुम से भरी हो तो पढ़ो राजा का है फ़र्मान।
गंगेश गुंजन
#उचितवक्ता डेस्क।
डरी सहमी इबारत रोष में हो तो मेरी होगी। तबस्सुम से भरी हो तो पढ़ो राजा का है फ़र्मान।
गंगेश गुंजन
#उचितवक्ता डेस्क।
एंबुलेंस की चेतावनी-ध्वनि हरदम अशुभ और डरावनी ही लगती है। वह बेचारा अस्पताल से किसी स्वस्थ व्यक्ति को घर पहुंचाने जा रहा होता है तब भी उसका हॉर्न अप्रिय और चिंता पैदा करने वाला ही सुनाई पड़ता है।
गंगेश गुंजन
#उचितवक्ता डेस्क।
☔☔☔☔।। कविता के कार्य ।। ☔☔☔,☔
कुछ कवि, कविता में अपने अंदेशे भी लिखते हैं कि अपनी कविता के कारण वे किसी दिन मारे जाएंगे। लेकिन वे शायद ही मारे गए।
कवि मारे भी अवश्य जाते हैं लेकिन वे और थे और आज भी इनसे अलग होते हैं।
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# उचितवक्ता डेस्क।
[ दलित जीवन-बोध पर लिखे अपने 'हजूरी गेट का कोरस' काव्य से। ** इस काव्य की केन्द्रीय किरदार नई पीढ़ी की जॉली नाम की बहुत सचेत और स्वप्न दर्शी एक अहिंसक जुझारू लड़की है।यह अंश जॉली की डायरी से।]
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मतलब था बस होने में। इस घर के इक कोने में।
यूं ही कटती गई चली। उम्र बरोबर होने में।
हां लेकिन तमाम मुश्किल। काटी नहीं य' रोने में।
था ही क्या बतौर पूंजी डर क्या था कुछ खोने में।
संघर्षों की सख़्त ज़मीन। तोड़ी काटी बोने में।
माटी का मानुष माटी। लोभ नहीं था सोने में।
तैरे तो क़श्ती संभली। थे कुछ लोग डुबोने में।
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गंगेश गुंजन। रचना : २३.२.'११. बाटे-घाटे।
#उचितवक्ता डेस्क।
बिना सियासी तड़के की ग़ज़ल कहता है। आज के दौर में ऐसी हिमाक़त गुंजन की।
गंगेश गुंजन
#उचितवक्ता डेस्क।
मां का प्रेम छंद की तरह अनुशासित और ललित है। पिता का प्रेम व्याकरण की तरह है।
गंगेश गुंजन
[# उचितवक्ता डेस्क]
सब कुछ स्वप्न सरीखा है। जीवन में यह दीखा है।
पाकर मीठा छूट गया मिला बहुत जो तीखा है।
अनुभव बुद्धि समझ भी सब जीने का ही तरीक़ा है।
वह यूं आज देखता है उसका अलग सलीक़ा है।
आंखें सब की एक समान सपना अलग सभी का है।
हर इक दिल अपनी बस्ती रहना अलग सभी का है।
उसमें शान्त अंधेरा है इसमें एक झरोखा है।
सुख में जो रस्ता भूला दुःख में वो भी दीखा है।
दीप वही जो जलता है जीवन से यह सीखा है। *** ** गंगेश गुंजन [# उचितवक्ता डेस्क ]