Saturday, September 26, 2020

इबारत रोष में मेरी होगी

डरी सहमी इबारत रोष में हो तो मेरी होगी।  तबस्सुम से भरी हो तो पढ़ो राजा का है फ़र्मान।

                  गंगेश गुंजन

            #उचितवक्ता डेस्क।

Tuesday, September 22, 2020

एम्बुलेंस ।

एंबुलेंस की चेतावनी-ध्वनि हरदम अशुभ और डरावनी ही लगती है। वह बेचारा अस्पताल से किसी स्वस्थ व्यक्ति को घर पहुंचाने जा रहा होता है तब भी उसका हॉर्न अप्रिय और चिंता पैदा करने वाला ही सुनाई पड़ता है।    

                     गंगेश गुंजन 

                 #उचितवक्ता डेस्क।

Saturday, September 19, 2020

कवि की शहादत !

☔☔☔☔।। कविता के कार्य ।। ☔☔☔,☔

कुछ कवि, कविता में अपने अंदेशे भी लिखते ‌हैं कि अपनी कविता के कारण वे किसी दिन मारे जाएंगे। लेकिन वे शायद ही मारे गए।

कवि मारे भी अवश्य जाते हैं लेकिन वे और थे और आज भी इनसे अलग होते हैं। 

                          🌼। ।🌼
                   # उचितवक्ता डेस्क।

Friday, September 18, 2020

हज़ूरी गेट का कोरस। जाली की डायरी।

[ दलित जीवन-बोध पर लिखे अपने 'हजूरी गेट का कोरस' काव्य से।                                      ** इस काव्य की केन्द्रीय किरदार नई पीढ़ी की जॉली नाम की बहुत सचेत और स्वप्न दर्शी एक अहिंसक जुझारू लड़की है।यह अंश जॉली की डायरी से।]

           🌿🔥🌿

मतलब था बस होने में।                                  इस घर के इक कोने में।

यूं ही कटती गई चली।                                    उम्र बरोबर होने में।

हां लेकिन तमाम मुश्किल।                              काटी नहीं य' रोने में।

था ही क्या बतौर पूंजी                                    डर क्या था कुछ खोने में।

संघर्षों की सख़्त ज़मीन।                              तोड़ी काटी बोने में‌।

माटी का मानुष माटी।                                  लोभ नहीं था सोने में।

तैरे तो क़श्ती संभली।                                      थे कुछ लोग डुबोने में।

**

गंगेश गुंजन। रचना : २३.२.'११. बाटे-घाटे।

             #उचितवक्ता डेस्क।




Thursday, September 17, 2020

** ग़ज़ल **

*                   ग़ज़लनुमा                    *

  मेरी मुश्किल उसकी मुश्किल अब होती है 
  अलग-अलग।
  उसकी आंखें मेरी आंखें,शब रोती हैं अलग-
  अलग।            
  दीवारों को तोड़ ढहा देने का जज़्बा कहां गया।
  मंसूबे क्यों बदले साथी निकल पड़े हम अलग-
  अलग।
  लोगों से हम पूछ रहे हैं इतना भर बस एक
  सवाल।
  जीओगे यूं तन्हा कबतक और मरोगे अलग-
  अलग।
  अब ठट्ठा है क़सम तोड़ना तब लेकिन ऐसा ना
  था।
  कहां अकेलापन था ऐसा और रिहाइश अलग-
  अलग।
  चूस रहे जिस्मों की हड्डी सदियों के ये जो
  भुक्खड़। 
  रूहानी लफ्ज़ों पे है और पहरेदारी अलग-  
  अलग। 
  मेरे तसव्वुर को होना था इस तरह' से भी
  शमशान।
  रुख़्सत हुई रूह अपनों से बनी सियासत अलग 
  -अलग।
  बढ़ी तीरगी रातों की दिन भी कितने कम रौशन
  हैं।
  मजबूरी-ए-फ़ितरत गुंजन भी तन्हा हैं अलग-
  थलग।
                                 **
                           गंगेश गुंजन
                      [ #उचितवक्ता डेस्क ]

Wednesday, September 16, 2020

हिमाक़त

बिना सियासी तड़के की ग़ज़ल कहता है।        आज के दौर में ऐसी हिमाक़त गुंजन की।     

                      गंगेश गुंजन

                 #उचितवक्ता डेस्क।

Monday, September 14, 2020

हिन्दी।

                     ।। हिन्दी ।।

'मैं अंग्रेजी नहीं जानता हिन्दुस्तानी अंग्रेजो !'
मैं भी तो सन् १९६१ ई.से ही कह रहा हूं,जिस दिन पटना विश्वविद्यालय से स्नातक-परीक्षा उत्तीर्ण हो गया। हिंदुस्तानी अंग्रेज़ मुझे गांधी जी मान लेंगे ? 
*
यह हिन्दी की बेचैन आत्मा भी है और विनोद भी।                               !🙏!
                               
                          गंगेश गुंजन
                     #उचितवक्ता प्रस्तुति।

हिन्दी माने मां की गोद!

मां का प्रेम छंद की तरह अनुशासित और ललित है। पिता का प्रेम व्याकरण की तरह है।

                       गंगेश गुंजन 

                 [# उचितवक्ता डेस्क]

Wednesday, September 9, 2020

ग़ज़लनुमा

सब कुछ स्वप्न सरीखा है।                            जीवन में यह दीखा है।

पाकर मीठा छूट गया                                  मिला बहुत जो तीखा है।

अनुभव बुद्धि समझ भी सब                          जीने का ही तरीक़ा है।

वह यूं आज देखता है                                उसका अलग सलीक़ा है।

आंखें सब की एक समान                            सपना अलग सभी का है।

हर इक दिल अपनी बस्ती                            रहना अलग सभी का है।

उसमें शान्त अंधेरा है                                    इसमें एक झरोखा है।

सुख में जो रस्ता भूला                                  दुःख में वो भी दीखा है।

दीप वही जो जलता है                                जीवन से यह सीखा है।                                         *** **                                                     गंगेश गुंजन                                                  [# उचितवक्ता डेस्क ]

Wednesday, September 2, 2020

बिना उसको हंसाते

मेरी नाकाम बदहाली में मेरे साथ रोया है
बिना उसको हंसाये मन नहीं करता यहां से
जायं
                    गंगेश गुंजन
              # उचितवक्ता डेस्क