Wednesday, August 30, 2023

सिलसिले टूटे थे जो फिर से : ग़ज़लनुमा

🌀।                📔               ।🌀
   सिलसिले टूटे थे जो  फिर से
   नये आग़ाज़  में  हुए फिर से।

   टूट ही तो चली थी अब उम्मीद
   एक दस्तक ने बचा दी फिर से।

   कोंपलें फूटी  हैं फिर  कुछ तो
   रूह में रुत है, ख़ुशबू फिर से।

   सुकूनदेह कितनी आहट है
   चलो,आयी तो है वो फिर से।

   अभी तो सुर में ही था सबकुछ
   अभी कुल हाथ में पत्थर फिर से।        

   कोई  बदले, बदले  मत बदले
   दिल ने ले ली है करवट फिर से।

   कोई मजबूर न होगा, मौसम 
   सबा आज़ाद चलेगी फिर से।   
                          .
                  गंगेश गुंजन                                   #उचितवक्ताडेस्क।

Saturday, August 26, 2023

दो पंतिया

बुझ रहा हूँ सान्ध्य सूरज-सा              हरेक पल मैं
रात भर की रौशनी का देख लो
अब इन्तज़ाम।
                गंगेश गुंजन                                    #उचितवक्ताडूस्क।     
                 २७.०८.'२३.

Tuesday, August 22, 2023

दिल मुझको दरिया कर दे : दोपंतिया

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   दिल मुझको दरिया कर दे और
   इरादा पत्थर कर
   इस पूरी धरती भर को एक
   मुकम्मल-सा घर कर।
                        २.
      देख लेते जो एक बार कभी
      मर न जाते होते क्यों हम भी।
                      🌕❄️❄️❄️❄️❄️❄️❄️❄️❄️❄️❄️❄️
                गंगेश गुंजन                                   #उचितवक्ताडेस्क।

Friday, August 18, 2023

ग़़ज़लनुमा : जैसे मेरा अवसरवादी बहुत पुराना यार

                  । 🌼। 
  जैसे मेरा अवसरवादी बहुत
  पुराना यार
  काल सत्य भी ऐन वक़्त पर ऐसे
  हुआ फ़रार।
                     *
  विपदा में तो सभी छोड़ जाते हैं
  अक्सर साथ
  रोज़ाने रिश्ते साथी पर तुम भी
  मेरे यार

  कल भी हो ही आये हो तुम फिर
  उसकी मजलिस से
  इख़्लाक़न सजदा भी करके
  आये हो दरबार।

  लफ़्ज़-लफ़्ज़़ फ़र्माते हो ज्यों
  दहके अंगारे हों
  ऐसे इन्क़लाब ही थोथे कर जाते
  हर बार।

  महज़ इसी लफ़्फाज़ी से गर
  जीती जाती जंग
  करती क्यों ईजाद सल्तनत रोज़
  नए हथियार।

  भोले मीठे प्यारे शब्द काम तो
  करते हैं
  झूठ इश्क़ में,ले-दे कर तो बहुत
  हुआ व्यापार

  गाली और फ़ज़ीहत की कविता
  लिख हो  इल्हाम भले
  सुल्तानों के समझाने काम आएँ
  इल्म औज़ार।     💥
                    गंगेश गुंजन                                   #उचितवक्ताडेस्क।

Wednesday, August 16, 2023

जीने मरने का बोध

'कुछ नहीं करने' और 'कुछ नहीं कर सकने' के एहसास में जीने और मरने जैसा अन्तर है।
                  गंगेश गुंजन                                    #उचितवक्ताडेस्क।                                 १६अगस्त,'२३.


Wednesday, August 9, 2023

राजनीति में पेड प्रतिक्रिया

                         🔥|
        पार्टियों में 'पेड' प्रतिक्रिया बेधड़क जारी है।कभी-कभी  साफ़ दिखाई देती है। वरना चालू समय की एक साधारण-सी राजनीतिक घटना का इतना तीक्ष्ण त्वरित विशेषीकरण और प्रबुद्ध बना डालने का ये ओजस्वी उछाह अच्छे-अच्छे तथाकथितों को भी यों बचकाना कैसे बना रहा होता।
   यह देखना विडंबना ही है।
                      💥
 [यह एक सामान्य जन-मन की भावना है]

                  गंगेश गुंजन                                   #उचितवक्ताडेस्क।                                      १०.८.'२३

बोलबाला सब बाज़ार का है... ग़ज़लनुमा

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  बोलबाला सब बाज़ार का है
  सिलसिला हर सू व्यापार का है।

  हुए इतिहास देश दुनिया सब
  आदमी बचा कारोबार का है।

  रहे कि चली जाये आदमीयत
  हाल जो वक़्ते शर्मसार का है।

  चली गई वफ़ा की वफ़ादारी
  रूप भी मीडिया अख़बार का है।

  सब से नाराज़ ही लगे है सब
  बन्द घर पड़ोसी सब द्वार का है।

  हैं सभी सरंजाम फिर एक बार
  अपने वोटर जन-विस्तार का है।

  फ़िक्र में ही हम अभी से रहते हैं
  अंदेशा सियासी संहार का है।

  वक़्त ये समझे समझाए कोई
  होशियारों से ख़बरदार का है।

  अब दुआओं से नहीं चलता काम
  मामला उसके इन्तज़ार का है।
                   ❄️।❄️

                 गंगेश गुंजन                                     #उचितवक्ताडेस्क

Friday, August 4, 2023

ग़ज़लनुमा : हम न रहेंगे तुम न रहोगे...

                     💥💥

हम न रहेंगे तुम भी नहीं जब वो भी नहीं रहेगा
सुन्दर ऋतुओंके हुलास पर चर्चे कौन करेगा।

कोई तो हो फ़िक्र करे इस झुलस रही फुलवाड़ी की
लोटे भर जल से भी इसको कौन आकर सींचेगा।                       

महिमा दलित स्त्री क्षत-विक्षत पर सब चुप रह जाएँगे 
पत्थर दिल नर-पशु-सभ्यों से कौन आकर पूछेगा।

हिंस्र हो चुकी इन्सानी तहज़ीब जानवर से बदतर
किस जादूगर रहवर का है इन्तज़ार जो बदलेगा।

अच्छा कुछ ही बाकी है अब यहाँ जहांँ रहते हैं हम
उसके जाने से तो ये इतना भी कहाँ बचेगा।

झुंँझलाएगा क्रोधित होगा तब ऐसी दुनिया पर कौन
लाल नील सपनों वाले मन की दुनिया कौन लाएगा।

जाते हो तो जा लो गुंजन मन बहलाने को कुछ दिन
टहल-बूल कर जल्दी लौट आओ तो ठीक रहेगा।

❄️❄️❄️❄️❄️❄️❄️❄️❄️❄️❄️❄️
               गंगेश गुंजन                                    #उचितवक्ताडेस्क।
              २६जुलाई,'२३ 

Tuesday, August 1, 2023

नाटकों का प्रारब्ध

📔    नाटकों का सामाजिक प्रारब्ध !

  कुछ बहुत आवश्यक पटकथा नाटकों को लिखे और कहे जाने के समान ही अपने योग्य रंगमंच भी नहीं मिल जाता।कुछ महान् तक तो अंतिम रिहर्सल के बाद भी अभिमन्चित नहीं हो पाये। परिवर्तन के इतिहास में जेपी आन्दोलन जैसा उपकारी आलेख भी स्टेज रिहर्सल हो कर ही रह गया ! जन-मन को आजतक उसके फाइनल प्रदर्शन का इन्तज़ार है।
     नाट्यालेखों का भी अपना- अपना सामाजिक प्रारब्ध होता है जैसे कुछ ख़ुदा टाईप नाट्य निर्देशकों का।
                       .
                गंगेश गुंजन                                   #उचितवक्ताडेस्क।