Wednesday, April 29, 2020
अपन तो यार हैं !
Tuesday, April 28, 2020
नजरिया।
आज भी कितने ही अनुभव और दु:खों को यथार्थ शायरी और कविता में लिखा ही जा रहा है जो अब हमारे वास्तविक जीवन से बाहर जा चुके हैं। या हैं भी तो प्रसंगहीन हैं। उन कविता/शायरी की प्रशंसा और सराहनाएं भी हो रही हैं।
साहित्य में इस सच को कैसे देखा जाना चाहिए ?
गंगेश गुंजन
[उचितवक्ता डेस्क]
Monday, April 27, 2020
सुखानन्द
एक जिज्ञासु ने पूछा : सुख क्या होता है ?
-सुख आनन्द काडर का लोअर डिविजन क्लर्क होता है।और उसका सर्वोच्च प्रोमोशन आनन्द है।' विशेषज्ञ ने शान्त चित्त उत्तर दिया।
[उचितवक्ता डेस्क]
Sunday, April 26, 2020
ज़िन्दगी से यारी
सांस पर सांस की सवारी है।
ज़िन्दगी से ये कैसी यारी है।
गंगेश गुंजन
[उचितवक्ता डेस्क]Saturday, April 25, 2020
दोस्त हैं दु:ख !
देखें तो दु:ख भी दोस्त ही है मनुष्य का। ज़रा कपटी लेकिन अभिन्न मित्र है।
गंगेश गुंजन
[उचितवक्ता डेस्क]
Friday, April 24, 2020
सुख की थकान
सुख भी देर तक रह जाय तो थक जाता है और आदमी को भी थका देता है।
गंगेश गुंजन
[उचितवक्ता डेस्क]
Sunday, April 19, 2020
घरबंदी में परिन्दे !
परिंदा जिसने आजतक कभी कर्फ्यू नहीं माना। घरबंदी में वो भी घोंसलों से कम निकलता है ।
गंगेश गुंजन।
[उचितवक्ता डेस्क]
Thursday, April 16, 2020
कहिए कुछ आसान ग़ज़ल
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कहिए कुछ आसान ग़ज़ल हर इक दिल की जान ग़ज़ल।
एकेक मन की परछाईं। बोले ऐसी प्रान ग़ज़ल ।
सब रोते अपना - अपनी हो सबकी मुस्कान ग़ज़ल ।
गांव नगर भर आंगन हो भटके मत सुनसान गजल ।
झिलमिल जनमन स्वच्छ सपन ऐसी गंगास्नान ग़ज़ल।
एक आदम क़द गूंजे गीत इक सामूहिक गान ग़ज़ल।
दु:ख में गर रो पड़े कभी धो दे सकल जहान ग़ज़ल।
शब्द जो रस्ता दिखलाएं उसकी हो पहचान ग़ज़ल।
आकांक्षा हो जन-जन की कविता का अभिमान ग़ज़ल।
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गंगेश गुंजन
Tuesday, April 14, 2020
Monday, April 13, 2020
आवारा हैइए कविता
कविता बड़का आवारा होइअए तें आइ धरि ओकर कोनो एक टा अपन स्थायी घर नहिं भेलैक। बौआइत रहैए।
गंगेश गुंजन
[उचितवक्ता डेस्क]
Sunday, April 12, 2020
Tuesday, April 7, 2020
रंगमंच
आदमी के लिए रंगमंच जीवन की तरह ही आवश्यक है। परिवार रंगमंच की सबसे छोटी ईकाई है।
यह टिप्पणी कोई अवज्ञा,अनादर अथवा निर्वेद या वैराग्य बुद्धि से नहीं की जा रही है.नाटक की भी अवधि-आयु निर्धारित है.कोरोना-नाट्य का भी पटाक्षेप होगा. गंगेश गुंजन
[उचितवक्ता डेस्क]
Monday, April 6, 2020
ईमान ग़ायब है
हमारे दौर में सबसे बड़ा ईमान ग़ायब है ।बची मोटर में आदमी की तो पेट्रोल ही नहीं।
गंगेश गुंजन
[उचितवक्ता डेस्क]
Saturday, April 4, 2020
प्रेमक बन्हकी
स्नेह मे तेना गिरफ़्तार भ' गेल बेचारा । देह संग प्राणों कें राखि आयल बन्हकी ।
गंगेश गुंजन
[उचितवक्ता डेस्क]
Friday, April 3, 2020
नदी होकर
वही है जिसने मुझे बना डाला पत्थर। रेत में बहता हूँ उसी की नदी होकर।
गंगेश गुंजन [उचितवक्ता डेस्क]
Wednesday, April 1, 2020
बच्चा,तोता और पुलिस
!! करोना-बुलेटिन !!
। बच्चा, तोता (कोरोना)और पुलिस।
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आज एक बहुत मासूम और मार्मिक घटना घटी। पड़ोस में चार-पांच साल का एक बालक जोर-जोर से रो रहा था।ऐसा रोना कि सुनकर किसी को भी करुणा और चिंता हो आय।अभी तो पहली चिंता यही होने लगती है, कि कहीं इस इक्कीस दिना घर बंदी में शायद घर में दाना-पानी खत्म हो गया हो और बालक भूख से व्याकुल होकर बेसहारा रो रहा होगा। तब पड़ोसी लोग मन ही मन उसकी मां को कोसते हैं। 'उस अभागी को पहले ही इसका बंदोबस्त करके नहीं रख लेना चाहिए था? घर में छोटा बच्चा है।'
बच्चा रोते ही जा रहा है और बालकनी से हटने का नाम नहीं ले रहा। मां प्यार-दुलार और तब फटकार-मार से समझा कर बालक को घर में अंदर करना चाह रही है।लगातार परेशान हो रही है।वह अड़ा हुआ है।नहीं मानता।तब इसी बीच पड़ोस की एक अधेर माता काग़ज़ प्लेट में ढंक कर दो रोटी ले आकर देती हुई स्त्री को समझाती हैं :
'अकेली हो।घर में छोटा बालक है। सोच कर पहले ही इंतजाम कर रखना चाहिए था न?सब पर अभी कैसा बख़त है। लो यह। अभी खिला दो।फिर देखते हैं! अभी तो पन्द्रह दिन बाकी ही हैं।इस विपदा में पड़ोसी को पड़ोसी न देखें और आपस में सहायता नहीं करें तो कोई अच्छी बात है।' बोलती हुई अपने हाथ की तश्तरी स्त्री की तरफ़ बढ़ाने लगी तो उस मां ने उन्हें
अजीब ही आंखों से उन्हें देखा। पूछा:
' क्या है आंटी ?'
'बच्चे के लिए रोटी है। भूख से रो रहा है। सुना तो मुझसे रहा नहीं गया। सो ले आयी हूं।'
आंटी महिला ने उससे कहा।
'किसने कहा कि भूख से रो रहा है? यह रोटी के लिए नहीं रो रहा है।'
बालक की मांने जैसे तनिक अपमानित महसूस कर थोड़ा तीखे होकर ही उनसे कहा।
'लेकिन बालक रोटी के लिए नहीं रो रहा है,तो फिर क्यों रो रहा है? और सो भी इतनी देर से कि कलेजा फट जाए..'. प्रौढ़ महिला और भी अचंभित हो गयीं।
-नहीं आंटी,भूख से नहीं,यह तोता के लिए रो रहा है !' लाचार खीझ भरे स्वर में वह बोली।
'तोते के लिए ?' यह कारण सुनकर वे और भी परेशान हो उठीं।
'हां तोते के लिए। क्या करें,दाना पानी बदलते समय पिंजरा तनिक खुला रह गया और तोता उड़ गया। अब यह उसी के लिए रो-रो कर जिद कर रहा है।अभी ऐसे में कहां से तोता लाऊं।'
'तो समझाओ न बेटी। सुबह ला दोगी तोता ?' आंटी ने सुझाया।
'आन्टी वही तो समझा कर थक गई हूं।मानने को तैयार ही नहीं है।'
'अब इस समय शाम में तोता कहां ढूंढ़ें,कैसे मिलेगा। सुबह ला देंगे !' समझाओ ।
'तब से यही कह रही हूं। मगर अब वह दूसरी फिक्र में जिद किये जा रहा है कि तोता उड़ कर घर से बाहर निकल गया है। उसे कोरोना हो जाएगा।'
सुनकर उन आन्टी को तो आई ही,उस ग़ुस्से में भी मां को दबी हुई हंसी छूट गई।
'लाख समझाया कि पक्षी को कोरोना नहीं लगता है मेरा बच्चा। सिर्फ आदमी को लगता है। तब कहीं मान गया लेकिन फिर बिफरने लग पड़ा:
'मगर घर से बाहर निकलने के लिए उसे पुलिस तो पकड़ सकती है। पकड़ के पुलिस मेरा तोते को कहीं जेल में डाल दे। तब ? उसे कौन छुड़ा कर लाएगा ?'
...और अभी तोते के लिए इसी पुलिस और जेल की चिंता में परेशान रोते जा रहा है कि अभी के अभी तोता तलाशने जाइये…।
रो-रो कर थक चुका बालक अब भी हिचुक- हिचुक कर रोये जा रहा है।
बालक की ऐसी चिन्ता पर ममता से आन्टी का दिल भर आया। उसका सिर छूने जाती हैं तो फिर रोने लगता है मेरा तोता, मेरा तोता ला दो...