Tuesday, April 28, 2020

नजरिया।

आज भी कितने ही अनुभव और दु:खों को यथार्थ शायरी और कविता में लिखा ही जा रहा है जो अब हमारे वास्तविक जीवन से बाहर जा चुके हैं। या हैं भी तो प्रसंगहीन हैं। उन कविता/शायरी की प्रशंसा और सराहनाएं भी हो रही हैं। 

    साहित्य में इस सच को कैसे देखा जाना चाहिए ?

                     गंगेश गुंजन

                  [उचितवक्ता डेस्क]


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