Wednesday, February 28, 2024

दुर्लभ संजीवनी दृश्य : दादी-पोती।

                दादी - पोती                                               🌼|                             ऐसे दुर्लभ संजीवनी-दृश्य और इस महाकाल में? केवल पार्क में ही मिलेंगे आपको। टहलने के लिए ही सही,जरूर निकला करिए।

...अवश्य ही एक पोती अपनी दादी को सहारा दिए सैर करा रही है ! 
             जीयो बिटिया !
                     🌳 

(पार्क में की एक फोटो जिसमें पोती बहुत वृद्ध दादी को सैर करा रही है)

               गंगेश गुंजन                                    #उचितवक्ताडेस्क।

Friday, February 23, 2024

तीन दो पँतिया

                     🌒
दुखियों का दरबार लगाना आता है
वैभव  का  अम्बार  दिखाना आता है।

सुने किसी की वो कुछ नहीं उसे भाये
उसे फ़क़त अपना फ़र्माना आता है।

फुंसी भर मुश्किल को कर दे घाव बड़ा
फिर उसको कैंसर कर देना आता है।
                 🌈|🌈
         #उचितवक्ताडेस्क।

Thursday, February 22, 2024

उजला हुआ कवि

 विकट काले समय पर
  लाल क़दमों से चलता गया कवि !
                      उजला हुआ कवि।
                          🌄

 (मैथिलीमे एक टा बहुत पहिनेक फेबु पोस्ट।)
                     गंगेश गुंजन                                     #उचितवक्ताडेस्क।

                     २३.०२.'२४.

Monday, February 19, 2024

दो पंँतिया: याद कभी मुझको भी कर लोगे..

  याद कभी मुझको भी कर लोगे                  तो कितना ख़र्चा होगा, 
  एक ग़रीब का जी जुड़ाएगा                      और तुम्हें भी दुआ लगेगी। 
            गंगेश गुंजन                                   #उचितवक्ताडेस्क।

Sunday, February 18, 2024

फेसबुक पर लोग सब

     📕🌿      फेसबुक पर लोग सब !
फेसबुक पर कुछ लोग छींकते हैं
कुछ लोग खाँसते हैं
कुछ लोग हँसते हैं
कुछ लोग बोलते हैं
कुछ लोग चीख़ते हैं
कुछ लोग गाते हैं।
कुछ रोते-कलपते हैं
कुछ लिखते-पढ़ते हैं
कुछ लोग अपना स्वास्थ्य बुलेटिन होते हैं तो कुछ लोग अपनी उपलब्धियों का कैलेन्डर होते हैं।
कुछ लोग अपना सफ़रनामा पढ़वाते हैं,
कुछ अपनी दिनचर्या बतलाते हैं
कुछ लोग अपनी-अपनी राजनीतिक पार्टियों का नगाड़ा बजाते हैं
कुछ कथित तथाकथित परिवर्तन के नारे लगाते हैं।
कुछ किन्हीं का स्तवन लिखते हैं
कुछ उनकी भर्त्सना करते हैं
कुछ उपदेश देते हैं
कुछ उपदेश लेते हैं
फेसबुक पर कुछ लोग वैद्य भी होते हैं
वैसे ही कुछ लोग हकीम होते हैं,जैसे कुछ लोग बड़े-छोटे अस्पतालों के डाक्टर होते हैं।
कुछ लोग विशेषज्ञ होते हैं
कुछ विशेषज्ञों के भी विशेषज्ञ होते हैं।
कुछ लोग सहानुभूति-भिक्षुक होते हैं
कुछ लोग शुभाकाँक्षा के थोक वितरक होते हैं
फेसबुक पर कुछ लोग लेखक-कवि होते हैं
कुछ लोग, कवि-लेखक होने वाले होते हैं

फेसबुक पर सब लोग इतने अपने होते हैं कि सबलोग सबलोग की दैनिक बाट जोहते हैं।
फेसबुक पर कुछ लोग गांँव कुछ नगर होते हैं
कुछ दालान और नगरों के ड्राइंग रूमों में अकेले बैठे बुजुर्ग से खाँसते बोलते हैं
वे कुछ लोग बुरे मौसम में बच्च़ों को घर से बाहर नहीं निकलने की हिदायत देते रहते हैं।
फेसबुक पर जवान होते हुए किशोर उनसे चिढ़ते रहते हैं।
और तो और,कुछ लोग इस पर कुछ भी लिखे हुए को कविता ही समझ लेते हैं।

फेसबुक पर कुछ लोग इतना अच्छा लिखते हैं कि वह अच्छा कुछ लोग,दिल से पढ़ते हैं।
कुछ लोग तो इतना सुन्दर लिखते हैं कि कुछ लोग उनके लिखने का                   इन्तज़ार करते रहते हैं।                                               ।📕।

                  गंगेश गुंजन                                    #उचितवक्ताडेस्क।

Saturday, February 10, 2024

दो पँतिया : धोखे भी शामिल हैं यहाँ...

धोखे भी हैं शामिल यहांँ जीने के हुनर में

जीना है अगर ख़ास कर के मेट्रो नगर में।

                      । 🌒।                                            गंगेश गुंजन                                  #उचितवक्ताडेस्क।

Thursday, February 8, 2024

दिल्ली पुस्तक मेला १०-१८.२.'२४.

पुस्तक मेला

    (१०फरवरीसे१८फरवरी-’२४ई.)

आगामी विश्व पुस्तक मेला,कवि-लेखकों की आने वाली पुस्तकों और प्रकाशनों पर( की खुशामद करती हुई सी)दनादन फेसबुक प्रदर्शित टिप्पणियांँ की बारिश में भीगते पढ़ते हुए मुझे तो लगता है बहुत से लेखकों को पुस्तक मेला जाने में भारी र्अहिचकिचाहट भी होगी। जिन लेखक कवियों की कोई भी पुस्तक, किसी भी प्रकाशन के किसी भी स्टॉल पर प्रदर्शित नहीं दिखने वाली है वे अपनी निरीहता तुच्छता की ग्रंथि से पीड़ित भी हो सकते हैं। जब उनकी किताब ही नहीं छपी है तो वे कहाँ के लेखक,कैसा प्रकाशन और किन महाभागों के कर कमलों से भव्य विमोचन ?उसके समाचार ! सो मुझे तो ज़बरदस्त आशंका है कि इस संकोच और ग्रंथि में बहुत सारे लेखक कवि कहीं पुस्तक मेला जाने से ही न परहेज़ कर लें।

  विज्ञापन विस्फोट का यह परिदृश्य इस दफ़े कुछ और नया है। इधर हर बार यह प्रवृत्ति कुछ और बढ़-चढ़ कर विस्तार से बाजार होती और करती हुई दिखाई देती है। 

     बहरहाल मैं तो जाऊँगा क्योंकि आजतक किसी पुस्तक मेले के मौक़े पर मेरी कोई पुस्तक छप कर आयी ही नहीं। 

मुझे तो उसका स्वाद भी पता नहीं है।😆।

   लेकिन जाऊंँगा ही इसका इससे भी बड़ा और कारण है। वह यह है कि एक समय में एक स्थान पर इकट्ठे इतनी गुणवत्ता,संख्या और मात्रा में पुस्तकें और अध्ययन अध्यापन संबंधी सामग्रीकोसद्य: देख पाना क्या सबको नसीब हो जाता है ? कितने भी प्राचीन और बड़े पुस्तकालय में चले जायें तो भी ?

  तो अगर ऐसा अवसर आ रहा है तो उसे कैसे ज़ाया कैसे होने दूंँगा। इतनी पुस्तकें एक साथ देखकर आंँखों को बहुत दिनों के लिए तृप्ति और राहत मिल जाती है।

     और वे वरिष्ठ-कनिष्ठ आत्मीय प्रिय साहित्यकार साथी जिनसे,एक ही शहर में रहते हुए भी कितने कितने दिनों तक नहीं मिल पाते उनसे भी भेंट होने का सम्भव आनन्द ! यह आशा तो और विशेष है।

   मिलते हैं ।आते हैं । शुभकामना।          📕📕📕📕📕📕📕📕📕📕📕📕

                 गंगेश गुंजन                                      #उचितवक्ताडेस्क।

Tuesday, February 6, 2024

दो पंँतिया : इस अलाव में ताब नहीं अब...

  इस अलाव में ताब नहीं अब
  सभी शरारे बुझे लग रहे।
  और सर्द होते मौसम में थर-थर               क़लम तो और अशुभ है।                                     🔥|🔥                                           गंगेश गुंजन                                    #उचितवक्ताडेस्क।

दो पँतिया : देवता सब पुराने हो गये हैं

                    📔

      देवता सब पुराने हो गए  हैं

      आदमी अब सयाने हो गए हैं।

                 गंगेश गुंजन                                   #उचितवक्ताडेस्क।

Saturday, February 3, 2024

दो पंँतिया : मक़बूल तो इस दौर में कुछ

मक़बूल तो इस दौर में कुछ भी          कहाँ रहा,                                       इक शाइरी पे नाज़ था सो जा             रही बाज़ार।                                                         🌊🌊                                            गंगेश गुंजन।                                 #उचितवक्ताडेस्क।

Friday, February 2, 2024

श्रेष्ठता के पैमाने

📕            श्रेष्ठता के पैमाने 
  सभी श्रेष्ठता अपनी वास्तविक गुणवत्ता पर ही टिकी हो यह ज़रूरी नहीं है। साहित्य में तो और भी नहीं। यहांँ तो और बहुत सूक्ष्म,  कूटनीतिक स्तर तक बौद्धिक कुशलता से संस्थापित होते हैं। अधिकतर ऊंँचाई और श्रेष्ठता भी अक्सर,संगठनात्मक प्रक्षेपण और प्रायोजित होती हैं। कभी विचारधारा, कभी पारस्परिक स्वार्थ और प्रवृत्ति मूलक लाभकारी योजना में। वैसे दुर्भाग्य से ऐसी तुच्छताओं के संकीर्ण संगठन साहित्य कलाएंँ और प्रबौद्धिक समाजों में अधिक ही सक्रिय रहते हैं। इनके कारण प्रतिगामी विचार और कार्य को अदृश्य और बहुत सूक्ष्म रूप में पर्याप्त ताक़त मिलती रहती है। दिलचस्प कहें या दोहरा दुर्भाग्य यह है कि मीडिया-माध्यमों में ये ही वर्ग,साहित्य की मशाल होने का भी दम भरते दृष्टिगोचर होते हैं।
  इनके पीछे अति महत्वाकांँक्षी नवसिखुओं की शोभायात्रा भी चलने लगती है।
   आप माने रह सकते हैं :
   अपवाद का तिनका !
                               💥                                                गंगेश गुंजन 
                    #उचितवक्ताडेस्क।