पाखण्ड तो कला नहीं है लेकिन पाखण्डी अभिनेता ज़रूर होता है। जितना बड़ा पाखण्ड होता है उतना ही बड़ा अभिनेता होगा। सबसे खतरनाक धर्म एवं संस्कृति का पाखण्ड होता है और इसका अभिनेता।
गंगेश गुंजन
# उचितवक्ता डेस्क।
पाखण्ड तो कला नहीं है लेकिन पाखण्डी अभिनेता ज़रूर होता है। जितना बड़ा पाखण्ड होता है उतना ही बड़ा अभिनेता होगा। सबसे खतरनाक धर्म एवं संस्कृति का पाखण्ड होता है और इसका अभिनेता।
गंगेश गुंजन
# उचितवक्ता डेस्क।
कभी-कभी प्रमुख आफिसर से भी अधिक विशेष,कार्यवाहक अधिकारी कर जाते हैं।जैसे ईश्वर का कार्य वाहक विज्ञान,कमाल पर कमाल कर रहा है।
गंगेश गुंजन
# उचितवक्ता डेस्क।
' विज्ञान ईश्वर का ही कार्यवाहक अधिकारी है।' ऐसा मेरे मित्र समाधान प्रसाद बड़ी दृढ़ता से मानते हैं और मुझे सुनाते रहते हैं। आपका मत ?
गंगेश गुंजन
# उचितवक्ता डेस्क
कुछ दर्द के रिश्ते से और नेह भी बहुत था।
पल-पल भी मरे हम तो अच्छा बहुत लगता था।
गंगेश गुंजन
# उचितवक्ता डेस्क
चुनो तो मंजिल ऐसी कि राह ख़ुद लिएचले और फ़ख़्र भी करे इसी पथ से गये हो तुम।
गंगेश गुंजन
# उचितवक्ता डेस्क
साहित्य में यथार्थ के कुर्ता-ब्लाउज की सिलाई लेखक के नाप की होती है।
गंगेश गुंजन
[उचितवक्ता डेस्क]
साहित्य
साहित्य मानवीय उदात्तता और आदर्श प्रयोजन के सामाजिक आशयों का भाषा में आविष्कार है।कदापि स्पर्धा नहीं है। समकालीन दो उल्लेखनीय लेखकों की तुलना अनावश्यक है।
गंगेश गुंजन
# उचितवक्ता डेस्क।
श्रेष्ठता पर विचार
सभी श्रेष्ठता अपनी गुणवत्ता पर ही टिकी हो यह ज़रूरी नहीं है। साहित्य में तो और भी नहीं। बहुत सूक्ष्म और कूटनीतिक स्तर तक बौद्धिक कुशलता से संस्थापित अधिकतर ऊंचाई और श्रेष्ठता भी अक्सर,संगठनात्मक प्रक्षेपण और प्रायोजित होती है। कभी विचारधारा, कभी पारस्परिक स्वार्थ और प्रवृत्ति मूलक योजना में। वैसे दुर्भाग्य से ऐसी तुच्छताओं के संकीर्ण संगठन साहित्य कलाएं और प्रबौद्धिक समाजों में अधिक ही सक्रिय रहते हैं।इनके कारण प्रतिगामी विचार और कार्य को अदृश्य और बहुत सूक्ष्म रूप में ताक़त मिलती रहती है। दिलचस्प कहें या दोहरा दुर्भाग्य, यह है कि मीडिया-माध्यमों में ये ही वर्ग, साहित्य की मशाल होने का भी दम भरते दृष्टिगोचर होते हैं।
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गंगेश गुंजन। २९.५.'१९.
# उचितवक्ता डेस्क।
यमुना के किनारे कहीं पर भी कोई ताजमहल बना ले तो ताजमहल हो जाएगा अब ?
गंगेश गुंजन
# उचितवक्ता डेस्क
अकेलेपन में हर उस आदमी के सामने से काश नन्ही कोई चिड़िया ही गुजर जाया करे।
गंगेश गुंजन
# उचितवक्ता डेस्क
पुस्तक में ज्ञान है। घर-घर में पुस्तक है।लेकिन सभी घरबैया ज्ञानी नहीं हैं।
गंगेश गुंजन
# उचितवक्ता डेस्क।
हमारी कोशिशों की सीढ़ी टूटी नहीं है। हमारा हौसला थकने में अभी देरी है।
गंगेश गुंजन
# उचितवक्ता डेस्क।
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शोर नहीं करते मज़्लूमों के दुःख दर्द। अक्सर अंगारों में भी बोला करते हैं।
गंगेश गुंजन
# उचितवक्ता डेस्क।
उद्दंड और घमण्डी आंधी इस खुशफ़हमी में रहती है कि उसने पत्तों को तोड़ कर,उड़ा कर बेघर कर डाला ! जबकि उसे यह ख़बर ही नहीं कि वे पत्ते उसी की ऊंची पीठ पर चढ़ कर आसमान का सैर कर लेते हैं और धरती से भी विस्तृत विशाल महासागरों में नहाने उतर जाते हैं।
गंगेश गुंजन
# उचितवक्ता डेस्क ।
नव-पुरान सब रचनाकार कें आलोचना ओ आलोचकक आदर अवश्य करबाक चाही, परंतु दुरालोचक आ दुरालोचनाक सस्वर प्रतिरोध सेहो करब आवश्यक।
गंगेश गुंजन
# उचितवक्ता डेस्क।
गंगा नदी भी प्रदूषित हो गई। संस्कृति भी प्रदूषित हो जाती है। गंगाजल तो शुद्ध हो जा सकता है,संस्कृति नहीं। या शायद ही।
गंगेश गुंजन
# उचितवक्ता डेस्क।
कहते हैं कुशलता और दक्षता की सीढ़ी से कोई भी ऊंचाई मापी जा सकती है।थोड़ा जुनून चाहिए।
गंगेश गुंजन
# उचितवक्ता डेस्क।
संस्कृति तत्सम नहीं रहती। हम तद्भव संस्कृति जीते हैं। आप क्या मानते हैं साथियो ?
गंंगेश गुंजन
# उचितवक्ता डेस्क।
जातिवाद और पूंजीवाद दोनों सहोदर। हैं क्या ?
विद्वज्जन बतलाएंगे कृपया।
गंगेश गुंजन
#उचितवक्ता डेस्क।
नसीब देखिये मक़्तूल का आप भी ज़रा।उसे पनाह जो मिली तो क़ातिल के घर में। गंगेश गुंजन
# उचितवक्ता डेस्क।