* दु:ख का पहाड़ और ज़िन्दगी *
मनुष्य के जीवन पर दु:ख का पहाड़ भी पड़ जाये तो भी जीवन उसे बेल्लाग उतार फेंक कर निकल जाता है।ज़िंदगी उसे ऐसाचकमा देती है कि दु:खोंका पहाड़ धरा ही रह जाता है।
-गंगेश गुंजन। [उचितवक्ता डेस्क]
* दु:ख का पहाड़ और ज़िन्दगी *
मनुष्य के जीवन पर दु:ख का पहाड़ भी पड़ जाये तो भी जीवन उसे बेल्लाग उतार फेंक कर निकल जाता है।ज़िंदगी उसे ऐसाचकमा देती है कि दु:खोंका पहाड़ धरा ही रह जाता है।
-गंगेश गुंजन। [उचितवक्ता डेस्क]
।। फेसबुक-क़द ।।
🤔
कभी सामान्य मित्र के रूपमें फेसबुक पर पधारे हुए कुछ लोग अकस्मात अपना क़द बहुत ऊंचा कैसे कर लेते हैं और हमारा पद इतना नीचा ?
[उचितवक्ता डेस्क]
२६फ़रवरी,२०२०.
हिंसक राजनीति बाल रोगी और अल्पायु होती है। बहुत जल्द काल कवलित हो जाती है।
-गंगेश गुंजन (उचितवक्ता डेस्क)
राजनीति का पतझड़
देश में राजनीति का पतझड़ कुछ ज़्यादा ही समय चल रहा लगता है। कहीं से नयी कोंपल फूटती दिखे तो वसन्त की उम्मीद झलके।🍂🍂🍂🍂🍂 गंगेश गुंजन। ।उचितवक्ता डेस्क।
कभी-कभी
कभी-कभी हम दोनों किसी रेस्तरां में खाने-वाने चले गये तो वहां प्रेम से एक साथ खाते-बतियाते जवान जोड़ियों को देख कर भी बहुत आनन्द होता है।बल्कि मन ही मन उनके लिए और आशीर्वाद आता है। लेकिन ऐसे में ही कहीं जो किन्हीं अकेले बृद्ध जोड़े पर नज़र पड़ जाती है तो मन में उनके लिए अथाह करुणा भी हो आने लगती है।
मैंने एक दिन यह बात पत्नी से जो कही तो पलट कर बोलीं-'और हमलोगों को देख कर उन्हें ? हम दोनों पर भी उनको दया आती होगी। ऐसे ही।' कह कर वह मुस्कुराना नहीं भूलीं।
आपको क्या लगता है?
😊!😊
-गंगेश गुंजन
वही जिसने मुझे बना डाला पत्थर । रेत में बहता हूँ उसी की नदी होकर। ***
गंगेश गुंजन
सबकुछ बदलने के लिए कुछ खुद भी बदलिए। यूं ही नहीं बन जाता मन माफ़िक़ संसार।
गंगेश गुंजन
(उचितवक्ता डेस्क)
मैथिलीक संकट : चटनी-चुटुक्का!
गोविंद बाबू मैथिलीक एक विकट संकट पर टिपलथिन जे :
'मैथिली मे प्रतिष्ठा भेटैत देरी मैथिलीक कवि,हिन्दी मे लीखऽ लय दौड़ैत छथि।'
-'चिंता नै पण्डित जी। मैथिलीक ईहो संकट अपने जकाँ टरि जयतैक।मैथिलीओ तं महाप्राणे भाषा ने अछि !'बोल-भरोस दैत गंगेश गुंजन कहलखिन।आ कि पीट्ठे पर गिरिधर गोपाल जी टिपलनि :
'... ई तं निर्बिवाद जे मैथिलीक पाठकक संख्या बड़ सीमित अछि। सार्बजनिक स्थान पर मैथिली बजबो में कतोक मैथिली लेखको कें हीन भावनाक बोध रहैत छनि। बैकवार्ड ने बुझल जाइ से साकांक्षता रहैत छनि। तें प्रसिद्धि भेटि गेला पर मैथिलीक कवि हिंदी दिसि दौड़ैए। ओना स्वयं हिन्दीयो मे तं प्रतिष्ठित भ' गेला पर हिन्दी कवि-लेखक अंग्रेजीमे लीख' दौड़ैए। 'कैश-यश लिप्सा' मे एहन ई आकर्षण स्वाभाविके छैक। आखिर लिखबो तँ करैए लेखक पाइए-प्रतिष्ठा वास्ते ' ने।
तावत युवकोचित तेवर मे विरोध करैत मैथिलीक एक टा नव लेखक कवि, गिरधर बाबूक ऐ कथनक आपत्ति करैत बात कटलथिन:
'तखन तंँ गंगेश गुंजन कहिया ने अंग्रेजी मे लिख' लागल रहितथि।ओ कहाँ अंग्रेजी मे लिखऽ दौड़लाह।'
'आहि रे बा, गुंजन जी कें अंग्रेजी अबिते ने छनि तं की करताह !' डाॅ रमानन्द झा रमण चोट्टहि अपन ई विशेष समालोचकीय राय दैत टिपलथिन आ "पाग बचाउ आंदोलन'' क प्रणेता डॉ.बीरबल झाक नवका संस्करणक टटका टटकी पहिराओल माथ परक पाग कें सिनेह सँ सरिआबऽ लगलाह। पहिने जेना ज्येष्ठ श्रेष्ठ के गोरो एकहि हाथे लागय पड़ैत रहैक कारण जे निहुंरला पर पाग खसि ने पड़य तें एक टा हाथ तं पागे सम्हारै मे लागल रहैक,से सुनैत छी जे आब ई पाग बेर-बेर माथ पर सम्हारऽ नै पड़ैत छैक। जे से। क्यो गोटय आलोचक प्रोफ़ेसर देवशंकर नवीन कें कहैत रहथिन।
उचितवक्ता डेस्क कें ई चर्चा,सुनबे मे आयल छैक। **
पुनरुक्ति दोष प्रस्तुति।
(उचितवक्ता डेस्कक ई आवश्यक सूचना जनहित मे जारी।)
पुराने ज़ख़्म छुपाने के लिए क्या करते।वक़्त के नये ज़ख़्मों का इस्तक़बाल किया।
🌸🌸🌸
-गंगेश गुंजन (उचितवक्ता डेस्क)
मैं अपने ही जैसा अपना जो वही हूं । कलम से हूँ किसी का तरजुमा नहीं हूं।
गंगेश गुंजन उचितवक्ता डेस्क
राज्य-व्यवस्था के द्वारा जबतक जन साधारण का अधिकार सुरक्षित और सुनिश्चित रहता है और न्यायोचित रूप में मिलता है तब तक नागरिक कर्तव्य भी जाग्रत रहता है। उसमें मंदी नहीं आती।
कर्तव्य मनुष्य का कार्य और परिश्रम है और अधिकार विश्राम। ऐसा विधान है।
-गंगेश गुंजन। (उचितवक्ता डेस्क)