मैथिलीक संकट : चटनी-चुटुक्का!
गोविंद बाबू मैथिलीक एक विकट संकट पर टिपलथिन जे :
'मैथिली मे प्रतिष्ठा भेटैत देरी मैथिलीक कवि,हिन्दी मे लीखऽ लय दौड़ैत छथि।'
-'चिंता नै पण्डित जी। मैथिलीक ईहो संकट अपने जकाँ टरि जयतैक।मैथिलीओ तं महाप्राणे भाषा ने अछि !'बोल-भरोस दैत गंगेश गुंजन कहलखिन।आ कि पीट्ठे पर गिरिधर गोपाल जी टिपलनि :
'... ई तं निर्बिवाद जे मैथिलीक पाठकक संख्या बड़ सीमित अछि। सार्बजनिक स्थान पर मैथिली बजबो में कतोक मैथिली लेखको कें हीन भावनाक बोध रहैत छनि। बैकवार्ड ने बुझल जाइ से साकांक्षता रहैत छनि। तें प्रसिद्धि भेटि गेला पर मैथिलीक कवि हिंदी दिसि दौड़ैए। ओना स्वयं हिन्दीयो मे तं प्रतिष्ठित भ' गेला पर हिन्दी कवि-लेखक अंग्रेजीमे लीख' दौड़ैए। 'कैश-यश लिप्सा' मे एहन ई आकर्षण स्वाभाविके छैक। आखिर लिखबो तँ करैए लेखक पाइए-प्रतिष्ठा वास्ते ' ने।
तावत युवकोचित तेवर मे विरोध करैत मैथिलीक एक टा नव लेखक कवि, गिरधर बाबूक ऐ कथनक आपत्ति करैत बात कटलथिन:
'तखन तंँ गंगेश गुंजन कहिया ने अंग्रेजी मे लिख' लागल रहितथि।ओ कहाँ अंग्रेजी मे लिखऽ दौड़लाह।'
'आहि रे बा, गुंजन जी कें अंग्रेजी अबिते ने छनि तं की करताह !' डाॅ रमानन्द झा रमण चोट्टहि अपन ई विशेष समालोचकीय राय दैत टिपलथिन आ "पाग बचाउ आंदोलन'' क प्रणेता डॉ.बीरबल झाक नवका संस्करणक टटका टटकी पहिराओल माथ परक पाग कें सिनेह सँ सरिआबऽ लगलाह। पहिने जेना ज्येष्ठ श्रेष्ठ के गोरो एकहि हाथे लागय पड़ैत रहैक कारण जे निहुंरला पर पाग खसि ने पड़य तें एक टा हाथ तं पागे सम्हारै मे लागल रहैक,से सुनैत छी जे आब ई पाग बेर-बेर माथ पर सम्हारऽ नै पड़ैत छैक। जे से। क्यो गोटय आलोचक प्रोफ़ेसर देवशंकर नवीन कें कहैत रहथिन।
उचितवक्ता डेस्क कें ई चर्चा,सुनबे मे आयल छैक। **
पुनरुक्ति दोष प्रस्तुति।
(उचितवक्ता डेस्कक ई आवश्यक सूचना जनहित मे जारी।)
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