Thursday, May 30, 2019

लोकशक्ति का महासमर: ग़ज़ल

                 🌈

बस  यादों  का ही मंज़र
होकर रहा ये अपना घर

उनको कहां ज़रा फ़ुर्सत
हर लम्हा पहाड़ हम पर

आसमान में  तनहा वह
एक   परिंदा    मारे पर

भूले से उनके  भी कदम
कभी भटक जाते जो इधर

अब मुश्किल ही लगता है
जी कर  पड़े  निभाना गर

वे  अमीर  मातवर  मस्त
दीनों  का   जीना   दूभर

क्यों सबकुछ बेज़ार लगे
दो पल दम ले,सोच ठहर

कुछ उनके  बारे में सोच
कुछ  इनके बारे  में  कर

भाषा-शब्द  चुने  तुमने
लोगोंके हित जी औ’ मर

बचा  हुआ  है  एक अभी
लोक-शक्ति का महासमर !
       
        🌾🌾🌾🌾🌾

गंगेश गुंजन, 30 जून, 2011 ई.

इश्क़ और नज़्म बिना

                    🌼

    बिना इश्क़ के उम्र गुज़ारी
    नज़्म न एक लिखी।
    जाने वो कमबख़्त जिया तो
    क्या करके जीया।
                    🌸
               गंगेश गुंजन

Wednesday, May 29, 2019

ख़ुशी और शोर

                     🌾
      ख़ुशी बहुत अच्छी है लेकिन
        इसमें शोर‌ बहुत होता है।
                    ! 💐 !
            उचितवक्ता डेस्क

Monday, May 27, 2019

प्रेम का निवास


                      🌼

    प्रेम को भी रहनेके लिए स्वस्थ तन   
    और दृढ़ हृदय का घर चाहिए।
                       🌼
                गंगेश गुंजन

Sunday, May 26, 2019

कर्मकाण्ड और शास्त्र


                    🌞
कर्मकाण्ड से लदा-घिरा शास्त्र लोक और समाज को पाखण्डी बनाता है।
                    🌞
           उचितवक्ता डेस्क

Saturday, May 25, 2019

वीणा के तार !

                        🌈
         खींच कर इतना मत चढ़ा   
         लीजिएगा तार।
         टूट कर वीणा ही हो जाये 
         बेआवाज़।
                          🌫️
                          गंगेश गुंजन

Wednesday, May 22, 2019

सतत् विपक्षी कविता ।


      इस सृष्टि के लोकतंत्र में कविता     
      सतत् विपक्ष रहने ‌आयी है।
                      🌻
                                गंगेश गुंजन

सृष्टि-ऋण जीवन .


      सृष्टि का ऋण है यह जीवन।
      आदमी मरण  से चुकाता है।
                        🌅
                   गंगेश गुंजन

Monday, May 20, 2019

पर्यावरण: चिंतित फूलसखियां !

-गंगेश गुंजन। २१.५.’१९.


पर्यावरण विनाश के क्रम में वनस्पतियां बहुत चिंतित हुईं।पेड़ पौधे सब। दूब तक चिंतित हुई थी। प्रकृति के ये असुरक्षित अंग आपस में संवाद कर रहे थे। दूब तो बहुत ज्यादा चिंतित नहीं थी। सबसे अधिक चिंतित थे फूल ! उसकी प्रजातियां खुशबू,रंग और सुंदरताओं वाले विविध फूल पर चिंता की लहर दौड़ी तो एक सखि ने पूछा दूसरी फूल सखी से-
-इस विनाशलीला में तो अब हमलोग जल्दी मर जायेंगे।और क्यों खिलेंगे,किसके लिए?
दूसरी फूल सखी ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया -देखो हम तो तब तक खिलेंगे जब तक मनुष्य की आंखों में हमें देखने का चाव बचा है और  रह है। नाक में सूंघने की स्पृहा। कोमलता से स्पर्श करने की इच्छा और किसी के जूड़े में,किसी के चरणों और किसी के हाथों में हमें हमारा गुच्छा थमाने का हृदय जीवित है । कौन हम अपने लिए खिलते हैं ?हम तो खिलते हैं मनुष्य के लिए।की आंख श्रद्धा जुड़े के लिए। सो जब तक यह है हमें कोई जला नहीं सकता हम यूं ही खिलते रहेंगे । सौरभ बिखेरते रहेंगे। लेकिन सखि,मनुष्यता ही कौन सुरक्षित है अब? वह खुद भी दो विचित्र जोखिम में पड़ी हुई है। तो हमारी उम्मीद थी तो कम ही उम्र की लगती है। पहली फूल सखी ने बहुत पागल बता से मुस्कुराए मुस्कुराए बोली-अभी भी तो हम दिन ही भर के लिए खिलते हैं सखी ! लेकिन हमारी 1 दिन की उम्र भी एक युग भर है। चिंता क्या ?
तभी एक नवजात का प्रथम रुदन सुनाई पड़ने लगता है और दोनों सखि फूल एक दूसरे को देख कर प्यार से मुस्कुराते हैं। तभी एक उल्लास के साथ कहती हैं- बच्चा रो रहा है! अभी-अभी धरती पर उतरा है !
-नहीं तो। यह तो पिलखवाड़ गाम के खुबलाल भाई रसन चौकी* बजा रहे हैं (ग्रामीण आदि शहनाई*)।
-सुनो-सुनो स्त्रियां गाना गा रही हैं…’ एक सखि बहुत ख़ुश होकर चहकने लगती है और कोयली (कोयल) बन जाती है।
तभी दूसरी सखी और भी उत्साहित होकर कहती है चल न वहां हम सोहर गाने चलें !
दोनों सखियां मिलकर जाने लगती हैं कितने भी एक बेटी है कहती है क्यों ने सब को साथ ले ले और मजा आएगा नहीं ले जायेंगी तो सब बाद में झगड़ा करेंगी।
लेकिन कई तो डालों में मूर्छित पड़ी हैं और कुछ डालियों पर लटकी हुई प्यास से तड़पती पानी-पानी पुकार रही हैं ! यह सब देख कर
इन्हें साथ लेने के लिए आई फूल सखि बेचैन हो जाती है। और इधर उधर तलाशने लगती है। वहीं पास में ही तो कितना अच्छा झरना था वह कहां चला गया? अरे उसे सूखे हुए तो
जमाना हुआ ! अब क्या करें बेचैनी में इधर-उधर तलाशती है। तभी उसे ध्यान आता है उस चट्टान की उस तरफ़ खोह में एक बड़ा-सा गड्ढा है जो पत्थरों से ढंका हुआ था हरे पत्तों से छुपा हुआ भी था। झरना के सूख जाने पर हमलोगों रो-रो कर बहुत आंसू बर्बाद करते रहते थे तो हमलोगों ने …..
के बाद सोचा था किस तरह पुनीत का कुछ मतलब नहीं है क्यों ना हम अपने आंसुओं को जमा करके जगह कि जब बिल्कुल ही कहेंगे पानी ना मिलने लगे तो अपनी-अपनी सोच है उसे ही बूंद बूंद पीकर अपनी जान बचाने का उपाय रखें। वह बेजान उसी तरफ भागती है और जल्दी हरे पत्ते के दोहे में थोड़ा जल जाती है और लटकी हुई चिड़िया की चोंच के पास ले जाती है। लटकी हुई चिड़िया नन्हें पंख परंपरा ने लगती है और फिर फुदकने लगती है। और इस तरह अब उड़ते हुए कई फूल पक्षी उस नवजात शिशु की तरफ जाने लगते हैं। गाना सुनते-सुनते जल्दी ही वहां पहुंच भी जाते हैं। और आश्चर्य से देखते हैं वहां तो कई स्त्रियां सोहर गा रही हैं ! कुछ घूंघट काढ़े कुछ सिर पर पल्लू रखें। और तो और स्त्रियों में तो सुधा मल्होत्रा बैठी हैं, विंध्यवासिनी देवी बैठी हैं,शारदा शारदा सिन्हा और यह तो मालिनी अवस्थी-विजय भारती सभी हैं ! इस बच्चे का सोहर गा रही हैं। कि तभी उस महफिल में एक ढब की महिला आती हैं जो सलवार पहने हुई हैं।उनके कानों में बड़ी-बड़ी सुंदर बालियां हैं। सिर पर काज़ किया सफ़ेद पल्लू है।कंधे पर आसमानी रंग दुपट्टा। पान खाए हुई हैं। और बहुत मुस्कुरा रही हैं। जैसे रास्ते से ही गाती आ रही हैं।
लेकिन सहरसा नं की आरती ज्यादातर महिलाएं आंख-भौं सिकोड़ती उन्हें आने से रोकने लगीं- नहीं तुम इसमें नहीं आ सकती हो और हमारे साथ बैठकर गा नहीं सकती हो -क्यों चली जाऊं भला ? वह महिला बिन गुस्साये मुस्कुराती हुई पूछती हैं!और अपने दुपट्टे से प्यारा सा एक ढोलक निकालती हैं। अपने एक ठेहुन के नीचे दबा कर ढोलक पर थाप देने लगती हैं...
एक घूंघट से ही चीखती हुई बोलती है-
तुम हमारे गांव की नहीं,दूसरे देस की हो। हमारे समाज की नहीं, बाहर से आई हो। हमारी खुशी में कैसे शामिल हो गई?
तुम चली जाओ यहां से।’ वह स्त्री उनकी बांह पकड़ कर झकझोरती हुई उठ जाने कहती है।
वह महिला कोई इनसे दुबली-पतली नहीं मस्त है सो अड़ जाती है।

-नहीं मैं तो नहीं जाती। मैं तो रहूंगी कोई रोक ले। यह बच्चा है। यह मेरा भी बच्चा है।तुम्हारे तुम्हारे गांव का थोड़े ना है? और जो मेरे गांव में बच्चा ना हो तो सोहर गाने मैं कहां जाऊंगी ? मेरे गांव में बहुत दिनों से कोई बच्चा नहीं आया और मेरे गले में सोहर गाने की बेकरी घुस गई थी तब पता चला तो मैं भागी भागी आ गई अब तुम कह रही हो नहीं आ सकती।
यह क्या न्याय है ?
झकझोरी जाकर भी वह बैठी ही रहती हैं। गांव की वह स्त्री इसे उठ जाने को हल्ला मचा रही है। वातावरण में थोड़ी है अशांति और बाधा पहुंचती है कि कइयों की आंखें इधर घूमती हैं। और झगड़ा होते देख कर गाती हुई स्त्रियों में से अचानक शान्ति जैन जी उठ कर जोर से कहती हैं-अरे रेशमा दीदी,रेशमा दीदी!’ वह आकर घूंघटी महिला से भिड़ जाती हैं -अरी मूर्खा यह क्या कर रही है ?
अरे यह रेशमा जी हैं रेशमा जी।’
शान्ति जी के कहने पर वह ठिठक जाती है और किनारे चली जाती है। अब जो लोगों का नाम इस तरफ जाता है तो हर बड़ी मच जाती है। स्वागत में आने के लिए विंध्यवासिनी जी  खड़ी होना चाहती हैं तो लुढ़क ही जाती हैं। वह तो बगल में बैठी कुमुद अखौड़ी जी चाची को संभाल लेती हैं। तब तो देखने से लगने लगा कि जैसे अभी-अभी ही एक औरत बच्चा जन्मा हो! और लगे हुए दूसरे आंगन में फिर लोगों ने सोहर गाना शुरू कर दिया है।
अजब त्योहार हो गया था!
यह सब देख कर उन्हें ख़ुशीसे और भी आश्चर्य होता है। लेकिन तभी वे उदास हो जाती हैं। चिंता होने लगती है कि इतनी नामी गायिकाएं हैं। भला हम छोटे फूल-पंछियों को अपने साथ सोहर क्यों गाने देंगी ?’ वे अभी सोच ही रही थीं-क्या किया जाए ? शिशु को कैसे देखें? कैसे सोहर गाएं कि तभी, गाते-गाते ही इन पर चाची विन्ध्यवासिनी जी की निगाह पड़ जाती है। तब वह गाती भी रहती हैं और इशारे से पास भी बुला लेती हैं। दो-तीन-चार को एक साथ अपनी गोद में बिठा लेती हैं और सोहर गाती रहती हैं। इसी की देखा-देखी उत्साह में एक-एक पक्षी और फूल सभी के कंधे गोद में बैठ जाती हैं।और उनके साथ अपनी चोंच हिला कर गाने लगती हैं। आश्चर्य होता है कि छो जिनकी गोद-कंधे पर हैं सबों के पंख को नरम हथेली से छूते-सहलाती हैं। बीच-बीच में इन्हें देख कर मुस्कुराती हैं गाना गाती है! अभी यह गाना चली रहा है की एक मचलने लगा है-बच्चा को देखेंगे-बच्चा को देखेंगे !

कि बाहर से जबरदस्त आवाज आती है-फटाक् फटाक् ! सभी डर-सहम जाते हैं। तभी वहां कुछ लोग तीर धनुष लेकर तो कुछ हाथ में पत्थर लेकर वहां पहुंच जाते हैं।वे सब आदमी की तरह हैं लेकिन उनके दांत और नाखून बहुत बड़े-बड़े डरावने हैं। गुस्सा होकर

एक दूसरे से पूछ रहे हैं-

-कहां है? कहां हैं वे सब?आखिर जंगल खाली कैसे हो गये हैं।वे सभी कहां छुपे हैं ? कि तभी विंध्यवासिनी जी ने गोद के पक्षियों- फूलों को आंचल में छुपा लिया।और अचानक गाते-गाते थरथराने लगी हैं!
-गंगेश गुंजन 20 मई 2019

Sunday, May 19, 2019

चुनाव वार्त्ता : चुनाव परिणाम।

चुनाव वार्त्ता : चुनाव परिणाम ।
                    🌺🌺
ई तं आर अजगुत। आब आइ एक टा मैथिल युवक फोन कयलनि जे कका जी,अहीं कनी पप्पा के बुझबिअनु। ई समस्या ठाढ़ क’देलनिहें। हमरा सब बड़ मोश्किल मे छी!’
ऐ बयसक पप्पा-कका लेल किछु सुनला पर आइ काल्हि ड'रे भ' जाइत छैक। सबसं पहिने तं आने तरहक संदेह आ चिंता होअ लगैत छैक।पहिने जेना युवक बाल बच्चाक रहन-सहन चालि-चलन पर बाप-पित्ती के ध्यान राख’ पड़ै,आइ काल्हि तहिना बेटे-बेटी के अपन बाप-पित्तीक से सब ध्यान राख’ पड़ैत छैक। फूसि किए कहब, पहिने हमरो सैह भेल। ताहू पर शहर में तं आइ काल्हि ई वातावरण आओर व्याप्त छैक।पेंशन याफ्ता आदरणीया कतिपय बूढ़ी लोकनिक जीवन-शैली सेहो पुरुष-पात सं उन्नैस नहिं,बीसे भेटत। से किछु तेहन दुर्घटित तं नहि भ’ गेलनि ज्ञानू बाबू संग। इश्खी लोक तं पहिनहुं छलाह से तं बुझले अछि। ताहि पर सं बच्चाक माय सेहो पांच-छः बर्ष पहिने समाप्त भ’ गेलथिन। पुष्ट क' पेंशन भेटैत छनि। बेटा दिल्ली ल' अनलकनि। संयोग सं दिल्ली में तं आइ तारीख मे,कय टा भव्य सुव्यवस्थित मैथिल बस्ती सब विद्यापति पर्व सं गनगना रहलय। हिनक घर बुराड़ी तरफ़ कतहु छथि। घरडेरा मे जे गेलियनि तकर बाद नहि भेल संभव।फोन-वार्ता धरि निरंतर रहैये।
-कका जी,सुनि रहल छी ने ?'ओम्हर सं अगुतायल बोल कान मे पड़ल तं ध्यान भेल।
-हं हं,कहू ने। सुनि रहल छी। की भेल ? ज्ञानू बाबूक कोन समस्या कयलनि ?’
-देखयौ ने।पप्पे दुआरे मंटू-पिंटू दुनू भाइक उपनयन स्थिर कयलिअनिहें। जिद्द ठानि देलनि।-पोताक उपनयन करब-पोताक उपनयन करब कहि क’ अकच्छ क’ देलनि।हमरा छुट्टी नै। कोनो धरानी ब्यौंत कयल कारण दादाक मनोरथ !’
-तं समस्या की ? कोन बाधा ? आब तं तेरह जूने ने उपनयनक दिन यौ ।' हम कहलिअनि कि अगुता क’ ओ बीचहि मे कह’ लगलाह-
-सैह तं कहलौं कका।आब पप्पा कहैत छथि-हमर टिकट आगां बढ़ा क’ कटा दिया! आ गामक आरक्षण हयब सुसके छैक। टिकट लय मारामारी छैक। आब एतबा दिनक भीतर फेरो टिकट भेटतैक?
आब‌ अहीं कहू-दिने कतेक बांचल छैक? आ काज तं सबटा जाइए क’ कर’ पड़तै। बड़ुआ उद्योग सं ल' मड़बा बनयबा धरि। गाम में आब ख'ढ़ो हठात् भेटै छैक ? आ ज'न ? कय‌ गाम‌ घूम' पड़ि सकैत छैक। आब जं देरी हेतैक तं उपनयन शुभ-शुभ संपन्न भ' सकतैक? गछने रहथि जे हम अपने क’ लेब सब टा व्यौंत। पोता हमर अछि,मनोरथो हमरे थीक तं सब इंतिजामो हम अपने क’रब। लिआओनक पाहुन जकाँ चैन सं अबैत जाइ जायब कुमरम दिन अहाँ लोकनि! कनी रुष्टो भ’ गेलाह...
'सैह तँ पुछलौं जे बाधा की क’ रहल छथि ?' हम कनी खौंझाइते टोकलिअनि।
-आब कहैत छथि २३ तैस तारीखक बाद गाम जयताह। तखन एते व्यवस्थाक करबाक समय रहतै ? ककाजी अहीं एक रती कहियौन ने। हे लिय’! ओ हमरा फोनो धरा देलनि। किंचित खौंझायले हम पुछलिअनि-
-एना कियेक क'रहल छियै ज्ञानू बाबू ? किये ने जाय चाहै छियै?
तैस सं पहिने मृत्युयोग छैक वा भदवा-दिक्शूल ? आ सेहो आब ऐ युग मे के मानै छैक।’ हम बुझौलिअनि।
-‘कनी एलेक्शन रिजल्ट देखिये क’ जाएब।’ ओ निर्विकार भाव‌सं कहलनि।
‘ई तं विचित्रे‌ बात। पोताक उपनयन ठानि देलियैक सभटा काज पड़ल अछि आ अहाँ एलेक्शन रिजल्ट देखै लय टिकट कैंसिल करा रहल छी? सुनि क’ लोक हंसत। हम एकठ्ठे लोक निन्दा सं डरौलिअनि।
ओ निश्चिंत। सब भ’ जयतै।
-अच्छा छोड़ू। रिजल्ट गाममे नहि देखि सकैत छी? रेडियो-टीवी ओत’ कि कोनो नै छैक। गामे मे देखबचुनाव परिणाम।’ हम कहलिअनि।
-सोचलियै हमहूँ यौ। मुदा ककरा दलान पर जाक’ सुनब? दोसर जे गाम मे बिजली रहिते ने छैक। बहुत रिस्की भ’ जायत!’ चोटृहि कहलनि आ २३ तारीख क’ हमरो अपने कत’ आबि क’ एलेक्शन रिजल्ट देखबाक नोंत दैत,जान छोड़ायब जकाँ तइसे तारीख क’ भेंट होइए कहैत,प्रणाम करैत फोन राखि देलनि।
        आब एकर कोन जवाब ?
                      !🌺!
             (उचित वक्ता डेस्क)
                   गंगेश गुंजन 
                 २०.०५.२०१९.

Friday, May 17, 2019

देसी समाजवाद आएगा।

                     !🔥!

पक्की सड़क पर नंगे पांव जाती हुई किसी स्त्री-मजदूर को देख कर जिस दिन प्रबुद्ध प्रगतिशील लोग लज्जित होने लगेंगे और क्रोधित,उस दिन यहां देसी समाजवाद सम्भव‌ हो जाएगा।
                  🌾
             गंगेश गुंजन

अंतिम इच्छा


चुनाव-वार्त्ता
                 अंतिम इच्छा
                     🔥
सुबह-सुबह घबड़ाया सा एक युवक का टेलीफोन आया-दादा जी अचानक बहुत बीमार हो गये हैं।पापा भी बाहर हैं। अंकल प्लीज़ आप फौरन आ जाइए। जल्दी-जल्दी वहां पहुंचा तो दादा जी बेसुध से पड़े जे। बहुएं सेवा में लगी हुई थीं।पता चला सुबह बाथरूम से निकलते हुए अचानक गिर गए वैसे बाहरी चोट-वोट कोई खास नहीं दिख रही थी। लेकिन इस उम्र में चौकन्ना तो रहना ही चाहिए। काफी विचार विमर्श हुआ कि कहां भर्ती कराया जाए।यह अभी निर्णय हो ही रहा था कि तब तक बेटे,मेरे मित्र भी लौट आए। पिता के सिरहाने चिंतित बैठे सिर सहलाने लगे। फोन पर डॉक्टर से भी बरामद किया गया उनकी भी सलाह हुई-बेहतर है हास्पिटल में भर्ती कर दीजिए।’

सो झटपट इन लोगों ने एम्बुलेंस को टेलीफोन किया। ऐसे में स्वाभाविक ही घर में थोड़ी बहुत अफरातफरी हो गई। कि तभी हम लोगों ने देखा कि दादाजी ने थोड़ी सी आंखें घुमाईं और जरा सी खुली आंख। सभी आशा और निश्चिंत फिर बेटे ने उनसे पूछा है क्या हुआ कैसे हैं आप पिताजी तू कुछ बोल नहीं पाए । टुकुर टुकुर देखते रहे फिर थोड़ी देर के बाद खुद ही पूछा -क्या हुआ है?’
-आप अचानक गिर गए थे।अभी एंबुलेंस आता है।आपको अस्पताल ले चलना है।’यह सुनकर मामूली सिर हिलाते उन्होंने फिर आंखें बंद कर लीं। सभी हैरत में पड़ गये। दादा तो अस्पताल जाने के लिए कभी तैयार नहीं होते।अभी कैसे मान गए?
खैर,तो अस्पताल में भर्ती कराया गया। थोड़ी देर में चेतना में लौट आये। डॉक्टर की सलाह हुई कि कुछ दिन अस्पताल में ही रखा जाय। दादा जी ने आंखें मूंद रखी थीं  लेकिन डॉक्टर के यह कहते ही बोल पड़े- ऐसा नहीं हो सकता कि 23 तारीख के बाद आकर भर्ती हो जाऊं डाक्टर साहब?' दादा जी डाक्टर से
लगभग प्रार्थना की तरह कर रहे थे।डॉक्टर तनिक खीझ उठे। बोले-जरूरत है आपको अभी। फिर आप  23 तारीख के बाद क्यों कह रहे है ?
-ज़रा इलेक्शन का रिजल्टबा ठो देख लेते डाक्टर साहब!'  दादाजी ने सहज भाव तपाक से कहा।
 डॉक्टर को हंसी छूट गई। बोले-'आप इतने क्रिटिकल हैं और आपको इलेक्शन के रिजल्ट की पड़ी है।धन्य है बाबा आप!’ फिर मुस्कुराते हुए पापा‌की ओर मुड़ते हुए‌ बोले-’अब इलेक्शन रिजल्ट तक इन्हें कुछ नहीं ही होने वाला है।आप ले ही‌ जा सकते हैं।’
     हमलोग सभी तो चिंता मुक्ति से हतप्रभ थे।   😄

         -उचितवक्ता डेस्क-

Thursday, May 16, 2019

महा अंधकार भी

                       🌞
    महा अंधकार भी,दीये भर प्रकाश    
    तक को निगल नहीं पाता।लेकिन
    घने से घने अन्धेरे को दीपक की 
    मामूली लौ चीड़ देती है।        
                       🌻
                  गंगेश गुंजन

ग़ज़ल

                     ग़जल
                       🌾
हो भी रहा है और कुछ कर भी रहे हैं लोग।
हर हाल में जीते हुए, मर भी रहे हैं लोग।
राजा के तर्क-तरीक़ों-बातों से इत्तिफ़ाक़।
रख भी रहे हैं और कुछ डर भी रहे हैं लोग।
देखें तो सालों साल में क्या कुछ भया नया।
जम्हूरियत के तमाशे कर भी रहे हैं लोग।
अफ़सोसके मौक़े हैं बहुत क़ौम के भीतर।
इक इनक़लाबकी तरफ़ बढ़भी रहे हैं लोग।                                         ये सियासत हुई के कोई सुनहरी क़ैंची।
सब अपने नाप कपड़े सी- कतर रहे हैं लोग। 
कुछ भर रहे उन्नीस में उन्चास की आहें।                                      कुछ ख़ुद को नहीं रहनुमा बदल रहे हैं लोग।                                    लगता तो है सब तैर रहे एक ही दरिया।                                    इक और भरम देशहित लड़ भी रहे हैं लोग।
                       🌳
                 गंगेश गुंजन

Wednesday, May 15, 2019

प्रकाश से ‌ही संभव है

                   ⚪
       प्रकाश से ही संभव है
अंधकार के चीथड़े उड़ा देना !
                   ⚪
             गंगेश गुंजन

Tuesday, May 14, 2019

विपक्ष लेखक का प्रारब्ध

🌾🌾
विपक्ष समाज का एक जीवन-मूल्य है,कोई इच्छित परिस्थिति नहीं।अतः नियति।
*
विपक्ष की नियति ही विपक्ष है। जिन्हें अपने विपक्ष होने का अभिमान है उनकी आयु सत्ता परिवर्तन तक की है। इसलिए अन्य कई झोलदार लोकतान्त्रिक विशेषणों की तरह विपक्ष भी प्राय: जुमला भर बच गया लगता है। मुक्तिबोध का ‘पार्टनर तुम्हारी पालिटिक्स क्या ‌है’ का यह समय नहीं बचा है।ज्योंही लोकतंत्र में आप किसी राजनीति विशेष दल के पक्ष में किसी सत्तासीन दल का विपक्ष कर रहे हैं तो उस मौजूदा सत्ता शासन का अंत और आपके पक्ष का सत्ता ग्रहण के साथ ही आपका ‘विपक्ष’ भी सत्तासीन पक्ष में तिरोहित भर होता है,जैसे महानगर का कोई नाला किसी महानद में।उदात्त रूपक में लें तो जैसे,नदी समुद्र में !
    विपक्ष अभी तक एक मात्र कविता है और विचार। कवि भी लेकिन,समष्टिक नहीं। विचार कभी भी,किसी एक विचारधारा का दूसरी विचारधारा में विलयन कराने ले जाने भर के लिए पालकी नहीं ढोता है। विचार राजनीतिक दलों की पालकी का कहार नहीं बन सकता। चरित्र मुक्त बौद्धिक बयानों में शोला कभी शबनम दिखना नाटक के एक दृश्य-प्रदर्शन भर की तरह है। लोकतंत्र की यह भी सुन्दरता है। 
कविता ही विपक्ष है।                    🌈🌾                                              -गंगेश गुंजन।२८.४.’१९.

Sunday, May 12, 2019

... साफ़ कहूंगा !

          🌸    🌸   🌸
    सुंदर को सुंदर न कहूँ तो पाप 
    करूंगा।
    दुश्मन में भी जो सुंदर है साफ़
    कहूँगा।
                    🌸
               गंगेश गुंजन

Sunday, May 5, 2019

शे'र : कहां दिखता कभी ईश्वर.

                    🌻
    
कहां दिखता है कभी ईश्वर या ख़ुदा कोई।   
महज़ एहसास भर में देखिये,कितना दम है !
                      🌻
                 गंगेश गुंजन

Saturday, May 4, 2019

कवि !

                 । कवि ।
पानी नहीं हूँ जहां रखा वही हो गये। 
अक्षर हूँ उगूंगा तो कोई सृष्टि लेकर।
                     🌻
                गंगेश गुंजन

बालिग़ प्रेम !


                  🌻🌻
                     🌿
बालिग़ होकर प्रेम सद्गृहस्थ हो जाता है।कहीं का नहीं रहता है।गृहस्थी में ही प्रेम की यह परिणति होती है।
                   🌿               
        🌻🌻 गंगेश गुंजन

Friday, May 3, 2019

मत पत्र

              । मत-पत्र ।
                     🌻
        लोकतंत्र की राजनीति में सत्ता-परिवर्तन तबे पर सिंक रही रोटी 
     पलटने जैसा नहीं है,अच्छा है।
                     🌻
            उचित वक्ता डेस्क

Thursday, May 2, 2019

मैत्री अऔर अनुग्रह


                       🌸
      मैत्री जब अनुग्रह दिखने लगे तो      
      उस प्रगाढ़ संबंध पर भी पुनर्विचार करने में तनिक भी देर नहीं करनी चाहिए।
                       🌸
                  गंगेश गुंजन

Wednesday, May 1, 2019

महान


                     🌳
कवि को महान् कविता नहीं,उसकी महान कविता बनाती है।
                     🌻
                गंगेश गुंजन

मज़दूर दिवस

            मज़दूर दिवस
                  🌺
एक घूंट  प्यास का चुकाया है दाम
उम्र भर  बेच  बाप-दादा  का  नाम ।

औसत  सुख  के लिए बहाये हैं ख़ून
रोटी की वजह किए जल्लादी काम।

हम भी चल-चल के थके हारे  बहुत
हमको भी चाहिए था दो पल विश्राम।

कौन  सुने  कौन छुए अपने ये  घाव
जो इस जीवन ने दिए हमें ठाम-ठाम।

ज़ंजीरी   सभ्यता  के  थे  वे   मोहरे
और मैं बना रहा था  एक रहे आम।                
                🌻
          गंगेश गुंजन.