आ गया फिर फ़रेबे तबस्सुम में।
अबके ईश्वर ही बचाये उसे।
🌈
गंगेश गुंजन
🏊🏊♀️
लाचार बहुत हैं मगर इतने भी
नहीं कि,
हो भी न सकें तिनका इक डूबते
हुए का। 🌾
-गंगेश गुंजन
🌄🌾
लोकहित की चेतना और नैतिकता से विमुख नेतृत्व,बिना अंकुश हाथी के समान होता है।
🌾🌄
(उचितवक्ता डेस्क)
गंगेश गुंजन
🌅
आदमी को बड़ा तो वर्तमान बनाता है किन्तु उसे महान बनाती हैं भविष्य की सदियां। सभी बड़े महान नहीं बन जाते,जैसे हरेक महत्त्वपूर्ण वर्तमान इतिहास नहीं बनता।
🌻
(उचितवक्ता डेस्क)
गंगेश गुंजन
उत्तरदायित्व हीन सामर्थ्य,बिना
ब्रेक मोटर गाड़ी की तरह है।
🌫️
उचितवक्ता डेस्क
गंगेश गुंजन
🌘
हम अपने शहर के किस घर में
आ ठहरे हैं,
एक दस्तक के लिए तरसते हैं
दरवाज़े !
🍁🌿
गंगेश गुंजन
🌾🌾
कलाकार या लेखक की किसी विशिष्ट कृति के बाद यदि उसका व्यक्तित्व किंचित विचलित ही हो जाय तो उस कारण उसके कृतिकार की समस्त देन का महत्व कम नहीं हो जाता।
बड़ा साहित्यकार आदमी भी बड़ा हो,यह तो आदर्श है।यद्यपि आज तो महसूस हो रहा है कि यह मात्र मेरी मान्यता रह गयी है.परंतु यदि कोई कलाकार-साहित्यकार अपनी बड़ी कृति देकर बड़ा बना है तो उसमें मनुष्यता जन्य जीवन-मूल्य में आए किसी परिवर्तन के आधार पर उसे ख़ारिज नहीं किया जा सकता।
हर कलाकार के लिए महान् होना भी क्यों आवश्यक हो ?
🌻
(उचितवक्ता डेस्क)
गंगेश गुंजन
🌾🌾
कलाकार या लेखक की किसी विशिष्ट कृति के बाद यदि उसका व्यक्तित्व किंचित विचलित ही हो जाय तो उस कारण उसके कृतिकार की समस्त देन का महत्व कम नहीं हो जाता।
बड़ा साहित्यकार आदमी भी बड़ा हो,यह तो आदर्श है।यद्यपि यह मेरी मान्यता है. परंतु यदि कोई कलाकार-साहित्यकार अपनी बड़ी कृति देकर बड़ा बना है तो उसमें मनुष्यता जन्य जीवन-मूल्य हुए किसी परिवर्तन (दुर्गुण रहने) के आधार पर उसे ख़ारिज नहीं किया जा सकता। हर कलाकार के लिए महान होना भी क्यों आवश्यक हो ?
🌻
(उचितवक्ता डेस्क)
गंगेश गुंजन
। चरण स्पर्श ।
🙌 🙌
लाखों भक्तों,असंख्य श्रद्धालुओं के गोरे-गोरे हाथ भी स्पर्श करके काले चरणों को गोरा नहीं कर सकते।
इसी तरह चरण स्पर्श कर-कर के , असंख्य भक्त के अनगिनत श्रद्धालु काले हाथ भी गोरे चरणों को काला नहीं बना सकते। 🙌🙌🙌🙌
(उचितवक्ता डेस्ट)
गंगेश गुंजन
🌞
लाखों भक्त,असंख्य श्रद्धालुओं के
गोरे-गोरे हाथ भी चर्च स्पर्श करके
काले चरणों को गोरा नहीं कर
सकते।
🙌
(उचितवक्ता डेस्क)
गंगेश गुंजन
🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳
🌳🌳
पहाड़ोंके सुन्दर पेड़ों,वनस्प- तियों की हरियाली वहां मौजूद मिट्टी के कारण है,पत्थर- पहाड़ के कारण नहीं। मिट्टी का ऋण है पहाड़ पर।
⛰️
(उचितवक्ता डेस्क)
गंगेश गुंजन
पड़ोस से लेकर सड़क पर रिक्शा
खींच रहे आदमी का प्रसन्न चेहरा
दिख जाने तक ही मेरी उदासी की
उम्र है !
🌿🌞🌿
गंगेश गुंजन
किसी उपलब्धि को अपनी नाक
से मत लगा लें। एनिस्थीसिया
होती है। इसे सूंघें नहीं। ध्यान रहे,
नाक से स्पर्श हुआ नहीं कि प्रबुद्ध
से प्रबुद्ध चेतना भी सुप्तावस्था में
चली जाती है !
💐
-उचितवक्ता डेस्क-
🌞
🌿🌾🌿
राह पर-चलते-चलते-चलते
ही जाना
यह ज़रूरी नहीं ऐसे मंजिल
भी पाना
एक थैला हो,कलम-कागज
पानी बोतल
भुने चने भी थोड़े साथ हों
मंजिल के लिए।
🌳 🌳 🌳
गंगेश गुंजन
। 🍂
सभी जाते हैं अपने दिन
यहां से लेकिन,
हरेक पल डरे-सहमे हुए
ता उम्र ज़िंदगी।
🍁
(आभार,महाकवि ग़ालिब) 💐!💐
गंगेश गुंजन
दिल्ली में 'मुफ़्त मेट्रो' प्रकरण विवाद !
🌿🌿
मैं क्या कहता हूं यदि यह राजनीतिक पार्टियां और राजनेता नहीं चाहते तो दिल्ली की प्रबुद्ध जनता खुद ही यह निर्णय नहीं कर सकती है कि हम मुफ़्त में मेट्रो रेल पर नहीं चढ़ेंगे। मैं तो श्रीधरन जी के सिद्धांत और प्रस्ताव से शत-प्रतिशत सहमत हूं।
अभाव बहुत हैं। यहाँ स्थानीय यातायात में बहुत समस्या है।लेकिन जनता मेट्रो-सेवा दान नहीं लेगी।भावी समय के पक्ष में देश की राजधानी दिल्ली का नागरिक होने के नाते भी हमें अपनी विशेष चेतना का साहस नहीं दिखाना चाहिए क्या ? जनता ही वर्तमान और भविष्य की राजनीति तय करती है।तो क्या इतने वर्षों में देश की राजधानी दिल्ली भी दूर देहात गांवों की तरह अविकसित,भ्रमित और चेतना के स्तर पर पिछड़ी हुई ही रह गई ?
और क्षमा करें यहां की घनेरों सामाजिक संस्थाएं, एनजीओ, राजनीति से बाहर की समाज सेवी संस्थाएं,लोग, इस बारे में अपेक्षित जन चेतना लाने का काम नहीं कर सकते हैं?संस्थाओं और बुद्धिजीवियों का भी यह कर्तव्य नहीं कि इसके बारे में राजनीतिक स्वार्थ से मुक्त होकर जनचेतना फैलाने में अपना यह फौरी कर्तव्य निभायें।
सत्ता और शासन की भाषा कैसी लुभावनी होती है,उसमें कैसी माया होती है उसे आप इतने दिनों से देख रहे हैं,भुगत रहे हैं।यह सत्ता और सरकार जब आपको ज़रा एक सुविधा भी दे देती है तो उस पर हम-आप मुग्ध हो जाते हैं। और आपकी इसी मुग्धावस्था का फ़ायदा उठाते हुए सरकारें बहुत कुशलता और चतुराई के साथ आप पर परोक्ष रूप से चार असुविधाएं दे डालती हैं- कराघात के रूप में।जिसे आप कितने वर्षों तक भुगतते रहते हैं।हम जनसाधारण को बरसों बरस इसकापता भी नहीं चल पाता।
तो आप ख़ुद के लिए नहीं तो आने वाली आपकी संतान के लिए,राजनीति की पवित्रता बहाल करने के हित में एक बार जनता को भी देश हित में या यह साहस दिखाना चाहिए। हमें दान बिल्कुल नहीं। आमदनी की ईमानदार मुकम्मल व्यवस्था चाहिए। यातायात सुविधा भी चाहिए अवश्य किंतु किसी चालाक राजनैतिक रास्ते से नहीं,आज की समझ और नये आर्थिक प्रबन्धन के तहत, बिल्कुल पारदर्शी,नागरिक अधिकारिता और संवैधानिक तर्कों केसाथ। लेकिन हम-आप भी सोचें, आपको दान चाहिए या सम्मान चाहिए ?
💐💐💐💐💐!
यह कोई राजनीतिक बयान नहीं, मेरा,एक जनसाधारण,एक नागरिक का,अपने ही लोगों से आग्रह-अनुरोध है !
*
गंगेश गुंजन।२३ जून,'१९.
🌻
संविधान क्या संयुक्त परिवार के
रईस चटोरों का रसोई घर है जहाँ
हरेक की रुचि और पसन्द के
भोजन-व्यंजन बनाने और परोसे
जाने का पुख़्ता इंतज़ाम रहे ?
🌳🌾
(उचितवक्ता डेस्क)
गंगेश गुंजन
ऊंची जगह पर खड़ा होकर
आदमी कभी अपने को बड़ा
देखना चाहता है तो हास्यास्पद
हो जाता है। वह और छोटा बन
जाता है,जैसे पहाड़ पर चढ़ कर
खड़ा लंबे कद का आदमी भी
धरती पर खड़े मनुष्य को बहुत
छोटा दिखाई देता है।
आदमी का असल क़द
धरती पर ही पता चलता है।
🌄
(उचितवक्ता डेस्क)
गंगेश गुंजन
☀️
अभी दिन के 1:30 बज रहे होंगे।आसमान से आग बरस रही है! और देखें आगे पीच पर जाते हुए बच्चों की टोली !
आप ही कहें तो,इन्हें करुणा की राह लेनी चाहिए या क्रोध का मार्ग ?
!☀️!
गंगेश गुंजन
🌈🌈
आदमी और रचनाकार एक ही
होता है। ऐसा नहीं हो सकता कि
कोई रचनाकार तो परम श्रेष्ठ है
मगर आदमी ओछा हो।और जहां
ऐसा लगे तो अवश्य कोई लोचा है।
आदमी की श्रेष्ठता में या रचनाकार
में। ध्यान देने पर दीख जाएगा।
😎
(उचितवक्ता डेस्क)
गंगेश गुंजन
🌈🌈
काठक स्थान पर जहिये सं कीया सोना-चानीक बन' लगलैक
तहिये सं कीयाक वर्ग बदलि गेलैक हयत। तहिना जनउ।सोनाक
जनउ बनब अपना प्रकारक वर्गान्तरण छल। भने विदाइए रूप
मे देबाक वास्ते।तहिना सिनुरदानी ! वर्ग चरित्र एहिना बदलैत छैक।
ई अकारण नहिं जे आइ एहि सभ मे सं भरिसक सोना टा बांचल अछि।
☘☘
-उचितवक्ता डेस्क-
गंगेश गुंजन
🍂 हर सिम्त धोखा और फ़रेब
के समाज में,
घुंट जाये ना दम आदमी का
तो क्या हो । 🍁
गंगेश गुंजन
🔥
मासूम निर्दोष ग़रीब बच्चे मर
रहे हैं। हमारे सपने मर रहे हैं।
यों,हमारे विचार मर रहे हैं।
???
गंगेश गुंजन
🌸
सुख बहुत जल्द भूतकाल,अतीत
बन जाता है। दु:ख का वर्तमान
बहुत लम्बा होता है।
🌫️
गंगेश गुंजन
!🌺!
वैसे जो कहिये,
पिता-दिवस,फादर्स डे-का यह
मुशायरा तो बेटियां ही लूट गईं !
! 🌺 !
(उचितवक्ता डेस्क)
गंगेश गुंजन
🌈
कुछ लेखक लेखिका,विशेष साहित्य-संसर्ग के वातावरण में विकसित और संस्थापित हुए होते हैं और कुछ (लेखक- लेखिकाएं) जो गुण में भी कम नहीं और संख्या में अधिकांश हैं, वे साहित्य के साधारण संसर्ग के वातावरण में पनपते और विकसित होते हैं साधारण संसर्ग में आये हुए ऐसे कोई-कोई लेखक-कवि अपवाद स्वरूप स्थापित भी हो जाते हैं।
। 🙄 ।
(उचितवक्ता डेस्क)
गंगेश गुंजन
😜
विद्यमान राजनीति व्यंग्यकार की
खेती-बारी और आखेट-भूमि है।
! 😜 !
(उचितवक्ता डेस्क)
गंगेश गुंजन
🌫️
प्रतीक्षा प्रेम की परीक्षा भी है
और परिणाम भी।
🍁
(उचितवक्ता डेस्क)
गंगेश गुंजन
🔥
देश के समाज एवं राजनीति की
तरह साहित्य और कलाओं में भी,
'प्रभु' और 'प्रजा' वर्ग,ये दो ही
मुख्य अस्तित्व में रहते हैं क्या !
🌾🌺🌾
गंगेश गुंजन
🔥
एक अच्छा इन्सान बुरा रचनाकार
नहीं हो सकता।जबकि एक अच्छा
लेखक,आदमी बुरा हो सकता है।
🌳
(उचितवक्ता डेस्क)
गंगेश गुंजन
🌈
कुछ लोग बड़ी कुर्सी पर बैठे हुए भी छोटे लगते हैं।
कुछ लोग छोटी कुरसी पर बैठ कर भी बड़े लगते हैं।
🌈
गंगेश गुंजन
ग़ज़ल
🌞 🌿
दर्द का रिश्ता गहरा है
दुःख का इस पर पहरा है
*
धोखा साँप की आँखों का
सुन्दर बड़ा सुनहरा है
*
देते हो आवाज़ किसे
छाछठ साल का बहरा है
*
जीवन का भी पाठ अजब
सबसे कठिन ककहरा है
*
वो क्यूँकर अब आएगा
संसद में जा ठहरा है
*
ताप बहुत है मौसम में
टिन की छत का कमरा है।
🍁
गंगेश गुंजन
🌳
मनुष्य का बड़ा होना इस बात
पर निर्भर है कि वह अपनी
तुच्छताओं और क्षुद्रताओं से
कितना ऊपर उठा है।
🌳
(उचितवक्ता डेस्क)
गंगेश गुंजन
🌳🌳
🌳🌳
।। लोकतंत्र ।।
किसी लोकतंत्र का क़द और चरित्र क्या है यह इस पृष्ठभूमि में भी आंका जाता है कि
साधारण जन नागरिक वहां की न्याय-व्यवस्था के अंतर्गत सम्मानपूर्ण अधिकारिता के साथ कितना आश्वस्त एवं सुरक्षित है।
🌾🌞🌾
। उचितवक्ता डेस्क ।
गंगेश गुंजन
🌿🌸
ऐन मन्दिर की बग़ल में
बच्ची रोप रही है एक नन्हा पेड़ !
देखिएगा एक दिन,
मन्दिर से बड़ा हो जाएगा
यह पेड़ !
🌳
गंगेश गुंजन
त्याग !
सभ्य समाज में बतौर एक मनुष्य
कोई कितना बड़ा या महान् है,
इसका थर्मामीटर है।
🌻
गंगेश गुंजन
🍁
मेरे सफ़र में साथ ख़ास कुछ
नहीं असबाब।
एक तो जुदाई है दूसरा मिलने
का ख़्वाब।
🍁
गंगेश गुंजन