Wednesday, July 22, 2020

श्रेष्ठता का विचार

श्रेष्ठता पर विचार

सभी श्रेष्ठता अपनी गुणवत्ता पर ही टिकी हो यह ज़रूरी नहीं है। साहित्य में तो और भी नहीं। बहुत सूक्ष्म और कूटनीतिक स्तर तक बौद्धिक कुशलता से संस्थापित अधिकतर ऊंचाई और श्रेष्ठता भी अक्सर,संगठनात्मक प्रक्षेपण और प्रायोजित होती है। कभी विचारधारा, कभी पारस्परिक स्वार्थ और प्रवृत्ति मूलक योजना में। वैसे दुर्भाग्य से ऐसी तुच्छताओं के संकीर्ण संगठन साहित्य कलाएं और प्रबौद्धिक समाजों में अधिक ही सक्रिय रहते हैं।इनके कारण प्रतिगामी विचार और कार्य को अदृश्य और बहुत सूक्ष्म रूप में ताक़त मिलती रहती है। दिलचस्प कहें या दोहरा दुर्भाग्य, यह है कि मीडिया-माध्यमों में ये ही वर्ग, साहित्य की मशाल होने का भी दम भरते दृष्टिगोचर होते हैं।       

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              गंगेश गुंजन। २९.५.'१९.

          # उचितवक्ता डेस्क।

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