!! करोना-बुलेटिन !!
। बच्चा, तोता (कोरोना)और पुलिस।
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आज एक बहुत मासूम और मार्मिक घटना घटी। पड़ोस में चार-पांच साल का एक बालक जोर-जोर से रो रहा था।ऐसा रोना कि सुनकर किसी को भी करुणा और चिंता हो आय।अभी तो पहली चिंता यही होने लगती है, कि कहीं इस इक्कीस दिना घर बंदी में शायद घर में दाना-पानी खत्म हो गया हो और बालक भूख से व्याकुल होकर बेसहारा रो रहा होगा। तब पड़ोसी लोग मन ही मन उसकी मां को कोसते हैं। 'उस अभागी को पहले ही इसका बंदोबस्त करके नहीं रख लेना चाहिए था? घर में छोटा बच्चा है।'
बच्चा रोते ही जा रहा है और बालकनी से हटने का नाम नहीं ले रहा। मां प्यार-दुलार और तब फटकार-मार से समझा कर बालक को घर में अंदर करना चाह रही है।लगातार परेशान हो रही है।वह अड़ा हुआ है।नहीं मानता।तब इसी बीच पड़ोस की एक अधेर माता काग़ज़ प्लेट में ढंक कर दो रोटी ले आकर देती हुई स्त्री को समझाती हैं :
'अकेली हो।घर में छोटा बालक है। सोच कर पहले ही इंतजाम कर रखना चाहिए था न?सब पर अभी कैसा बख़त है। लो यह। अभी खिला दो।फिर देखते हैं! अभी तो पन्द्रह दिन बाकी ही हैं।इस विपदा में पड़ोसी को पड़ोसी न देखें और आपस में सहायता नहीं करें तो कोई अच्छी बात है।' बोलती हुई अपने हाथ की तश्तरी स्त्री की तरफ़ बढ़ाने लगी तो उस मां ने उन्हें
अजीब ही आंखों से उन्हें देखा। पूछा:
' क्या है आंटी ?'
'बच्चे के लिए रोटी है। भूख से रो रहा है। सुना तो मुझसे रहा नहीं गया। सो ले आयी हूं।'
आंटी महिला ने उससे कहा।
'किसने कहा कि भूख से रो रहा है? यह रोटी के लिए नहीं रो रहा है।'
बालक की मांने जैसे तनिक अपमानित महसूस कर थोड़ा तीखे होकर ही उनसे कहा।
'लेकिन बालक रोटी के लिए नहीं रो रहा है,तो फिर क्यों रो रहा है? और सो भी इतनी देर से कि कलेजा फट जाए..'. प्रौढ़ महिला और भी अचंभित हो गयीं।
-नहीं आंटी,भूख से नहीं,यह तोता के लिए रो रहा है !' लाचार खीझ भरे स्वर में वह बोली।
'तोते के लिए ?' यह कारण सुनकर वे और भी परेशान हो उठीं।
'हां तोते के लिए। क्या करें,दाना पानी बदलते समय पिंजरा तनिक खुला रह गया और तोता उड़ गया। अब यह उसी के लिए रो-रो कर जिद कर रहा है।अभी ऐसे में कहां से तोता लाऊं।'
'तो समझाओ न बेटी। सुबह ला दोगी तोता ?' आंटी ने सुझाया।
'आन्टी वही तो समझा कर थक गई हूं।मानने को तैयार ही नहीं है।'
'अब इस समय शाम में तोता कहां ढूंढ़ें,कैसे मिलेगा। सुबह ला देंगे !' समझाओ ।
'तब से यही कह रही हूं। मगर अब वह दूसरी फिक्र में जिद किये जा रहा है कि तोता उड़ कर घर से बाहर निकल गया है। उसे कोरोना हो जाएगा।'
सुनकर उन आन्टी को तो आई ही,उस ग़ुस्से में भी मां को दबी हुई हंसी छूट गई।
'लाख समझाया कि पक्षी को कोरोना नहीं लगता है मेरा बच्चा। सिर्फ आदमी को लगता है। तब कहीं मान गया लेकिन फिर बिफरने लग पड़ा:
'मगर घर से बाहर निकलने के लिए उसे पुलिस तो पकड़ सकती है। पकड़ के पुलिस मेरा तोते को कहीं जेल में डाल दे। तब ? उसे कौन छुड़ा कर लाएगा ?'
...और अभी तोते के लिए इसी पुलिस और जेल की चिंता में परेशान रोते जा रहा है कि अभी के अभी तोता तलाशने जाइये…।
रो-रो कर थक चुका बालक अब भी हिचुक- हिचुक कर रोये जा रहा है।
बालक की ऐसी चिन्ता पर ममता से आन्टी का दिल भर आया। उसका सिर छूने जाती हैं तो फिर रोने लगता है मेरा तोता, मेरा तोता ला दो...
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