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जैसे मेरा अवसरवादी बहुत
पुराना यार
काल सत्य भी ऐन वक़्त पर ऐसे
हुआ फ़रार।
*
विपदा में तो सभी छोड़ जाते हैं
अक्सर साथ
रोज़ाने रिश्ते साथी पर तुम भी
मेरे यार
कल भी हो ही आये हो तुम फिर
उसकी मजलिस से
इख़्लाक़न सजदा भी करके
आये हो दरबार।
लफ़्ज़-लफ़्ज़़ फ़र्माते हो ज्यों
दहके अंगारे हों
ऐसे इन्क़लाब ही थोथे कर जाते
हर बार।
महज़ इसी लफ़्फाज़ी से गर
जीती जाती जंग
करती क्यों ईजाद सल्तनत रोज़
नए हथियार।
भोले मीठे प्यारे शब्द काम तो
करते हैं
झूठ इश्क़ में,ले-दे कर तो बहुत
हुआ व्यापार
गाली और फ़ज़ीहत की कविता
लिख हो इल्हाम भले
सुल्तानों के समझाने काम आएँ
इल्म औज़ार। 💥
गंगेश गुंजन #उचितवक्ताडेस्क।
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