सब कुछ स्वप्न सरीखा है। जीवन में यह दीखा है।
पाकर मीठा छूट गया मिला बहुत जो तीखा है।
अनुभव बुद्धि समझ भी सब जीने का ही तरीक़ा है।
वह यूं आज देखता है उसका अलग सलीक़ा है।
आंखें सब की एक समान सपना अलग सभी का है।
हर इक दिल अपनी बस्ती रहना अलग सभी का है।
उसमें शान्त अंधेरा है इसमें एक झरोखा है।
सुख में जो रस्ता भूला दुःख में वो भी दीखा है।
दीप वही जो जलता है जीवन से यह सीखा है। *** ** गंगेश गुंजन [# उचितवक्ता डेस्क ]
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