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गोद में बच्चा
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अभी कुछ दिन पहले एक
आदरणीया महिला ने मुझे
मित्रता का प्रस्ताव भेजा। उनकी
गोद में बहुत सुंदर लड़की थी
लड़की ही थी बच्ची मेरे मन में
आया कि उनको लिखूं कि यह
मैत्री सादर सहर्ष क़बूल है बशर्ते आप अपनी बच्ची थोड़ी देर के लिए मुझे गोदी में लेने के लिए दें।' परन्तु मेरा यह लिखना क्या Facebook शिष्टाचार के भीतर होता ?
लेकिन सच बात है दूसरी भी है और वह यह है कि...
मेरा एक अनुज मित्र है। मुझे बहुत प्रिय- यादवेंद्र। आप में से भी बहुतों का मित्र है। ऐसा गुणी है ही वह। (होंगे मैं जानबूझकर नहीं लिखता हूंँ।)
बहुत दिनों से उसकी भी फोटो में उसकी गोदी में एक ‘भुवन मोहन शिशु’ है। मैंने उसको लिखा- ‘थोड़ी देर के लिए मुझे इसे गोद में लेने दो।’ इसके बाद भाई ने ऐसा ‘पतनुकान’ ले लिया है कि पूछें मत। (मेरे इस अनुभव के लिए मैथिली का ‘पतनुकान’ शब्द ही एकमात्र पूरा कहने वाला शब्द लगा सो मुझे लाचारी यही लिखना पड़ा। पतनुकान का मोटामोटी अर्थ सिर्फ इतना ही कह सकता हूं ऊपर पेड़ के सघन पत्तों में छुप कर बचने वाली साहसी चतुराई।)। जवाब तो देना दूर उसके बाद तो उसका 'लेख- शब्द-दर्शन' भी दुर्लभ है। जब कि यादवेंद्र की गोद का वह बच्चा कहीं ना कहीं मेरा भी नाती पोता कुछ जरूर है !
गांँव देहात के सहज सरल जीवन में मेरा कई बार देखा हुआ है। किसी मांँ की गोद में प्यारे बच्चे को देखकर अगर उस आदमी ने प्यार से उसे फिर दोबारा देख लिया गोदी में लेने की इच्छा प्रकट की, तो वह मांँ बच्चे को झटपट फुर्ती से आंँचल में छुपाने लगती थी। छुपा लेती थी। मतलब होता था वह बच्चे को बुरी नजर लगने से बचाती थी। यह एक बार नहीं अनेक बार का अनुभव है।
सोचता हूंँ कहीं न कहीं उसके मन में भी मेरे गांँव या सभी ऐसे गांँव की वही कोई सरल-सहज मांँ तो नहीं जो जमाने की बुरी नजर से बचाने के लिए बच्चे को आंँचल में छुपाए रहती है छुपाती चलती है।
मगर जो भी हो यह बात है बहुत अच्छी।
इसे इसे बचाना चाहिए। इस भाव को महज़ कोई प्रचलित दकियानूसी मानना मुझे लगता है कुछ ज्यादा ही आधुनिक और बुद्धिवादी होना हुआ।
अंतत: कहीं यह,युग-युग से नितांत असुरक्षित शक्तिहीन नारी की अपराजेय मातृ-भावना ही है। अक्सर पुरुष भी साझा करते हैं।
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-गंगेश गुंजन 6 सितंबर 2017.
#उचितवक्ताडेस्क।
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