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भाषा
गुज़ारे लायक़ भाषा की भूमि
होती तो सब के पास है लेकिन
भाषा के असली गृहस्थ,कवि-
लेखक ही हैं।भाषा के गृहस्थ,
स्वामी नहीं।कुछ कवि-लेखक
भाषा के स्वामी जैसा बर्ताव
करते लगते हैं।
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उचितवक्ता डेस्क
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