इस तरह टूटी फूटी रहकर
क्यों सताती रहती है मुझको।
ऐ मेरी ज़िन्दगी !
एकेक सांस किराया देकर
रहता हूं मैं तुझमें।कोई मुफ़्त में नहीं।
No comments:
Post a Comment