Sunday, November 3, 2019

बाक़ी उम्मीद है !

कोई बचा है देखता-सुनता-समझता है।

ख़त्म हो गई नहीं हैं ‌अभी सब उम्मीदें।


🌺🌺

गंगेश गुंजन (उचितवक्ता डेस्क)


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