. राजधानी का रंगमंच .
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सिद्ध से सिद्ध प्रसिद्ध अभिनेता
देर तक मंच पर विराज जाय तो
अभिनय-मूक हो ही सकता है,
पटकथा और चरित्र के हक में मंच
पर रहना ही हो अपरिहार्य तो
एक सीमा तक ही चुप रहकर
रह सकता है- किरदार ।
चुप्पी साधने का अभिनय करते
हुए इतना थक जाता है कि
उबासियों का बिस्तर हो जाता है ।
सो लेते हैं उसी पर कितने।आराम
से
पता भी नहीं चलता उसे।
महान हो मंच पर कितना भी
अभिनेता
देर तक रहकर भद्द ही पिटवाता है
हूट कर दिए जाने तक झेल जाय
तो वह उत्कृष्ट कलाकार विदूषक
हो जाता है
कुछ कला-प्रवीण आलोचक
मानते ही हैं,
अभिनय प्रवण परिपक्व ही चरम
पर अपने परिणत प्रतिष्ठित होता
है, श्रेष्ठ विदूषक!
सिर्फ़ सियासत का मामला नहीं
है यह।
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प्रार्थना में उस चरम पर पहुंँचने से
पहले
अपनी भूमिका सही सलामत कर
गुज़रे,
देर तक मंच पर रखा न जाय,
अभिनय-विभोर होने पर वह भूल
जाता-
रंगमंच पर है !
लेखक निर्देशक से प्रार्थना करते हैं
दया करके तब लेखक निर्देशक
पत्थर मूरत कर देता है
अकसर कर देता है,लेकिन देखें
दुर्भाग्य-
पत्थर मूर्ति भी तो यंत्र तकनीकीय
होना हुआ नहीं रहता इसलिए और
हास्यास्पद और दयनीय हो जाता
है
पटकथा की मृत्यु में कितना ही
जमना चाह ले
पुतलियांँ बारीक डगमगाती ही रह
गईं
प्रकाश-व्यवस्था ने सार्वजनिक कर
दीं उसकी आंँखें।
प्रकाश जहांँ भी हो,करता है
प्रकाश का ही काम
यहाँ रंगकर्म का यही तकाजा,
अभ्यास और अदा है।
इस थिएटर में अखिल भारत है
अभिमंचित हर नाटक यहांँ
अखिल भारतीय है !
अखिल वैश्विक इरादे और
अभियान पर !
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दया करें या दुःख यहांँ
एक से एक दिग्गज बड़े लोग जो-
व्यवसाय उद्योगी से लेकर कतिपय
प्रबौद्धिक लेखक-कवि भी संभव
हैं-भ्रष्ट चौपट!
सत्ता-नियंता-नायकों का सफल
प्रतिपक्ष मंच-अभिनय
कर करके विभूषित विदूषक हैं!
चालू है संगठित रंगकर्म ।
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राष्ट्र् के स्टील-फ्रीज़्ड अभिनेता
कई मदों में सम्मान सुशोभित
वरिष्ठ नागरिकों में इत्मीनान से हैं
बैठे चैन की उबासियांँ ले रहे हैं।
मंच आकर्षक लाल अंधेरे में डूब
रहा है,
सुपूर्वाभ्यसित परदा कलात्मक
उत्कर्ष पर गिरने को है
दिव्य रहस्य के स्याह आलोक में
•
एक अभी-अभी जवान हुआ
पांँचवांँ अट्ठारह साल का नौजवान
हिकारत से पूछता है-
‘ये लोग कौन हैं ?’
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गंगेश गुंजन
#उचितवक्ताडेस्क।
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