Friday, March 24, 2023

ग़ज़ल नुमा : दुःख दूजे में बाँट रहे हैं ।

                    🐾
      दु:ख दूजों में बाँट रहे हैं
      जीवन अपना काट रहे हैं।

      कितनों को आ-जाते देखा
      हम नावों के घाट रहे हैं।

      वक़्त अगर्चे वो भी गुज़रे
      बीमारों की खाट रहे हैं।

      वे तो ओछे दामों पर ही
      लगने वाली हाट रहे हैं।

      एक तराज़ू के दो पलड़े
      वस्तु एक पर बाट रहे हैं।

      गाँव एक ही दो दुनियाएंँ
      भूखी इक,के ठाट रहे हैं।

      हाथ नहीं उठता कुछ माँगें
      वे कल तक जो लाट रहे हैं।
                       .
               गंगेश गुंजन                                      #उचितवक्ताडेस्क।

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