Monday, March 6, 2023

इतनी सी जगह

📕            इतनी-सी जगह

  मिट्टी थी,पानी था,आग थी,
आकाश था,और आवश्यक हवा!
ये सब एक थाली भर अंँगनई में
पूरे वजूद में थे।
  डेढ़ कोठरी,हम तीन भाई,तीन
बहनें,
  हमारी जननी थीं।
घैलची,*  बस्ता रखने की तख्ती।
हम सब के लिए अपनी-अपनी
सांँस लेने की जगह थी।
  घुंँटन शब्द से परिचय नहीं
बहुत छोटी खिड़कियों से बहुत
प्रकाश आता था।
  आधी कोठरी के एकान्त को भी
लेता था अपनी ज़द में जहाँ,
यक्ष्मा ग्रस्त बड़ी दीदी अब-तब के
हाल में मामूली बिस्तर में फ़र्श पर
पड़ी रहतीं।      
  बर्तन धोते-धोते बीच-बीच में दीदी
को पूछती हुई ज़रा-सी ऊँची माँ की आवाज़ थी-
'कुछ चाहिए तो नहीं नीलम? बस
चुटकी भर। मैं आई।'
उस उतनी जगह में बीमार का नाम
सबसे नीरोग सम्बोधन था।
  मुक्ति के लिए उत्कंठित,सचेष्ट
ग़रीबी की शान्त ग़ुलामी
आज से कितनी भिन्न थी।

                        ••
  * घड़ा रखने की ऊंँची जगह।
                 गंगेश गुंजन.                                     #उचितवक्ताडेस्क। 

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