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बड़ा है वृक्ष !
कड़कती लू-धूप में झुलसता हुआ
खड़ा रहता है।
बटोही को शीतल छाँव देता रहता है।
बड़ा है वृक्ष !
यह विशाल वृक्ष,अपनी
छाया से उठ कर जाते हुए उसी राहगीर को
साथ ले जाने/ थोड़ी छाँह भी दे देता है
अपनी क्या ?
दे ही देती है ग़रीब से ग़रीब माँ,
सफ़र में निकलते समय बेटे की थैली में
रास्ते के लिए बटखर्चा-रोटी, जैसे।
गंगेश गुंजन
[उचितवक्ता डेस्क]
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