Friday, December 10, 2021

हम तो रहते जाएँगे हम प्यार... ग़ज़लनुमा

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    हम तो रहते जायेंगे वो प्यार के
    बन्दे नहीं हैं
    जो बदल जाते हैं दु:ख में हम तो
    वो रस्ते नहीं हैं।

    एक बस्ती है मचलता मन इसे
    समझो न तन्हा
    साथ में देखो मेरे हमराह के मेले
    यहीं हैं।

    काफ़िले के ख़ून से सींचोगे
    कबतक ये मरुस्थल
    गाँव भर पनपे हैं बिरवे जो
    अकेले ही नहीं हैं।

    तुमने चिड़िया घर बसा के कर
    लिया हो जो कमाल
    हम तो हैं इनसान पिंजड़े में 
    कभी पलते नहीं हैं।

    रात की औक़ात पौ फटने से
    पहले तलक ही है
    और हम सूरज उगे तो शाम तक
    ढलते नहीं हैं।
                      *
                गंगेश गुंजन
[अपनी यह एक बहुत पुरानीरचना]

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