🌧️ ठंढ और बरसात !
दुःख देता है ये ठंढा मौसम
पेड़ों को भी
खड़े रहते हैं कि कोमल परिन्दे
कहाँ जाएँगे।
इक झीनी चादर में लावारिस
औ शीतलहर
रात भर रोये शजर आँसू टपके
हैं पत्तों से।
ग़म की बरसातें छातों से नहीं
गुज़रती हैं
और सबके पास होता है
मुकम्मल घर कहाँ !
२८दिसंबर,'२१.
#उचितवक्ताडेस्क।
गंगेश गुंजन
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