Monday, December 6, 2021

हुनर जो कहीं निभाना होता : ग़ज़ल नुमा

                    । |🌈|।
       हुनर जो भूलना कहीं होता। 

       भूलना निभाना नहीं होता।

      ख़ुशी का होता होगा गाना
      बिना दु:ख गाना नहीं होता।

      अग़र्चे सियासत में है तो हो
      दोस्ती में बहाना नहीं होता।

      वक़्त बदरंग लोग बेदिल हैं
      कहीं वो तराना नहीं होता।

      अगर बस्ती में ही मस्ती नहीं तो
      फ़िज़ा कुछ सुहाना नहीं होता।

      हरेक ग़म की है ज़ात अपनी
      कोई ग़म अजाना नहीं होता।

      साथ आओ हम मिलकर चीन्हें।
      एक गुंजन सयाना नहीं होता।
                        *
                 गंगेश गुंजन

           #उचितवक्ताडेस्क।

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