Friday, May 21, 2021

। सवाल विश्वसनीयता बनाम वफ़ादारी का ‌।

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  । सवाल विश्वसनीयता बनाम वफ़ादारी का ‌।
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फेसबुक पर कहीं पढ़ा है कि एक पार्टी छोड़कर  दूसरी पार्टी में जाने वाला आदमी विश्वसनीय कैसे हो सकता है ? वास्तव में यह मानना उचित है। लेकिन छूटते ही इस विषय पर मुझे समाधान बाबू का टेलीफोन आया। आपने पूछा -
विश्वसनीय क्यों नहीं हो सकता ? यह ज्वलन्त विचार आपने पढ़ा है?'
'हाँ,देखा तो है कहीं ।' मैंने जवाब दिया तो छूटते ही मुझ पर सवाल से टूट पड़े:
'और अगर कोई एक राजनीतिक पार्टी वाला दूसरी पार्टी में जाने पर विश्वसनीय नहीं रह जाते तो इसी तर्क से अर्थात और भी लोग तो अपनी वफादारी बदलते रहते हैं, कोई किसी वजह से,
कोई किसी वजह से। बुनियादी रूप से दोनों प्रकार के चैनेल बदलने वाले में कोई बड़ा अन्तर क्या हुआ। एक ही तो हुआ।
     देश,दुनिया के बुद्धिजीवी,वैज्ञानिक,प्रोफ़ेसर,
साहित्य-कार-कलाकार,पत्रकार और सैकड़ों की तादाद में आये दिन टीवी चैनेल एंकर धड़ल्ले से यहाँ छोड़ कर वहाँ ज्वाइन करते रहते हैं। और तो और अधिकतर शिक्षक भी जो बाकायदा किसी बिहार, उ.प्र.चणडीगढ़ विश्वविद्यालय के कुलपति हैं लेकिन जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय का कुलपति होने के लिए उतावले हैं अथवा ज.ने.वि. के कुलपति हैं लेकिन किसी विदेश के -ऑक्सफोर्ड, कैम्ब्रिज का कुलपति होने के लिए शालीन शैली मे तमाम सियासी पैरवी से लेकर अपने-अपने अंतरराष्ट्रीय संपर्कों का छान-पगहा क्यों तुड़ाते रहते हैं? और किस महान् आदर्श उद्देश्य में बड़े सम्पादक एंकर लोग इस अख़बार से उस अख़बार इस चैनेल से उस चैनेल जाते रहते हैं ?
    यह दौर बेहतरी की दौड़ का है। और इसमें जो जहाँ है उससे बेहतर चाहता है। अधिकतर भागा भागी इसकी है।
हालांकि अपनी बेहतरी की छलाँग के लोग किसी न किसी आदर्श का आवरण चढ़ा कर कहते हैं।
    बुनियादी मानवीय प्रेरणा इन सब की एक ही है जिसे अपने अपने पक्ष में और विरोध में एक दूसरे के लिए तर्क और गरिमा गढ़ भाषा में कहते हैं- उसने दल बदला तो दल बदलू और अविश्वसनीय और मैंने विश्वविद्यालय या चैनेल, अखबार बदला तो ग्रो करने !
    अब ऐसे समय में जब सबकुछ फ़ायदे और नुक्सान का सौदा है और समाज से लेकर सल्तनत सरकार तक इसकी अंतर्राष्ट्रीय मंडी है तो पाला बदल अपने खेल के लिए फ़क़त किन्हीं राजनीतिक पार्टियों और नेताओं को ही कमतर कर आँकना और कहना,केवल उन्हीं पर सवाल खड़े करने का कोई ठोस औचित्य नहीं बचा है।    
    यद्यपि ऐसे वक़्त भी कुछ निदाग लोग अवश्य ही हैं और सभी क्षेत्रों में पूरी प्रतिबद्धता और चेतना के साथ सृजन शील एवं सक्रिय हैं।
  कथित सभी में अपने अपने अनुपात का कमोवेश भेद हो सकता है।

        गुनाह आख़िर  तो  गुनाह  ठहरा
        पांँच उसके किसी के पचपन हों।
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              #उचितवक्ताडेस्क।


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