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उलझा है सब !
बहुत दूर तक जाना था
बहुत दूर तक चलना था।
पाँव थके थे पहले से
और झटक कर बढ़ना था।
उसको तो एतबार नहीं
मुश्किल थी समझाना था।
अस्ल भेद तो भूल आये
जो बतला कर आना था।
उलझा था सब कुछ कितना
औ' तन्हा सुलझाना था।
थक कर भूल गया हूंँ सब
क्या कुछ ना ले आना था।
उनका तो अंदाज़ा है
इनको भी उलझाना था।
ख़बर-घरों के कोहरों से
कुछ तो छन कर आना था।
अब इस मंज़र में गुंजन
तुमको भी भरमाना था।
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गंगेश गुंजन
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