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मौसम वापस लौटेगा
भूले से विश्वास न कर।
कोई वचन निभाएगा
ऐसी कोई आस न कर।
जीवन रख आम ऐ दोस्त
इसको इतना ख़ास न कर।
एकान्तों में घर न बना
गांँव से दूर निवास न कर।
मरना ही है गर तुझको
यूँ लावारिस लाश न कर।
बहुत पुराना है सब कुछ
फेंट-फाँट के ताश न कर।
भटके हुए डरे हैं लोग
सोच के मन हताश न कर।
वोट पर्व के वायदों पर
भूले से विश्वास न कर।
बकबक करने दे उसको
तू तो यूंँ बकवास ना कर।
आया नहीं पत्र उसका
दिल अपना उदास ना कर।
टूट न जाने दे सपना
दिलकी ख़त्म प्यास ना कर।
हुआ सफ़र फिर इक नाकाम
मन गुंजन वनवास न कर।
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#उचितवक्ताडेस्क।
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