Monday, May 17, 2021

ठौर ठिकाने बिखर गये : ग़ज़लनुमा

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      ठौर ठिकाने बिखर गये
      बार-बार हम उजड़ गये।

      अक्सर अपनी बस्ती में
      अनगौआँ* से गुज़र गये।

      टूटे  पत्तों की मानिन्द
      अभी कहीं कब किधर गये।

      आठ अजूबा लगता है
      नेता जी जब सुधर गये।

      रोज़ देख कर दिल दहले
      इक श्मशान वो क़ब्र गये।

     गयी रात तो ग़ज़ब हुआ
     इक दस्तक से सिहर गये।

     कैसा है यह आलम भी
     जहांँ तहाँ हम ठहर गये।

     कल ही शाम तो देखा है
     आज सुबह वो किधर गये?

      सबसे बड़ा सुकून मिले
      सुनें जो लौटे घर गये।

      साथी वे याद आते हैं।
      अभी सुबह ही बिछुड़ गये।

      इस मनहूस सफ़र में कुछ
      यहाँ रहे ना घर गये।

      जी है देखूँ फिर जाऊँ
      बिखरे जो सब सँवर गये।
            * दूसरे गांँव वाला।
  
                  | 🌒 |
               गंगेश गुंजन

           #उचितवक्ताडेस्क।



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