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विचार और सांस्कृतिक विरासत
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कालजयी सामाजिक विचार भी मज़बूत
इमारत की तरह होते हैं। समय के साथ पुराने
भले पड़ते जाते हैं,उचित रखरखाव के अभाव
में वे कमजोर भी हो जा सकते हैं लेकिन
अपनी गहरी नींव पर मज़बूत टिके होने के
कारण हर तरफ़ जटिल-कठिन होते जा रहे
आज के हमारे जीवन में उपयोगी हो सकते
हैं। बिना बर्वाद किए हुए वैसी इमारत,समय
के अनुकूल आवश्यक मरम्मत परिवर्द्धन
करके सुविधा से रहने लायक बनाई ही जा
सकती है। उसे छोड़ देना तो इन्सान की
नादानी है।
अगर बाप-दादा की दी हुई सम्पत्ति का नया
उपयोग सम्भव है तो उनके विचार और
सांँस्कृतिक विरासत का क्यों नहीं ?
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#उचितवक्ताडेस्क।
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