🛖|
दु:ख आया अतिथि जैसा
लौट जाएगा तुरत वो
मगर जो आया तो आ के
मुझी में बस ही गया।
कांँच और पत्थर की यारी में
सियासत मस्त है।
घालमेल से इसने अपने सब
कुछ ज़हर किया।
बिना इश्क़ के उम्र गुज़ारी
नज़्म न एक लिखी
जाने वो कमबख़्त जिया भी तो
क्या खा कर जिया।
इतना जल उतरा गंगा से
यमुना का कहांँ गया
वे जानें वे मैंने तो इक गागर ही
भर लिया।
उनने-उननेे ग़ज़ल को अपना
कोई हुनर सौंपा
गुंजन ने एक उम्र,ज़ेह्न और
अपना जिगर दिया।
*
गंगेश गुंजन
#उचितवक्ताडेस्क।
३०दिसंबर,२०१५.
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